जो कोई भी इस प्रार्थना का पाठ करना चाहे, वह खड़ा होकर ईश्वर की ओर उन्मुख हो, और जब वह अपने स्थान पर खड़ा हो, वह दायें और बायें देखे, मानो अपने स्वामी, परम दयावान, सहानुभूतिकर्ता की दया की प्रतीक्षा में हो। तब वह कहे:
हे तू, जो समस्त नामों का स्वामी और आकाशों का सृजनकर्ता है! मैं उनके माध्यम से तुझसे याचना करता हूँ जो तेरे सर्वमहिमावान, परमउदात्त, अदृश्य सार के उद्गमस्थल हैं कि मेरी प्रार्थना को ऐसी ज्वाला बना दे जो उन पर्दों को जला डाले जिन्होंने तेरे सौन्दर्य से मुझे वंचित रखा है, और एक ऐसा प्रकाश जो तेरी उपस्थिति के महासागर की ओर मुझे ले जाये।
तब वह अपने हाथ ईश्वर - पावन आौर परमोच्च है वह - कि प्रार्थना में उठाये और कहे:
हे तू, समस्त विश्व की कामना और राष्ट्रों के प्रियतम! तू मुझे अपनी ओर उन्मुख होते हुये देख रहा है, और तेरे अतिरिक्त अन्य सभी के प्रति आसक्ति से मुक्त, मैं तेरी डोर थामे हुए हूँ, जिसके स्पंदन से समस्त सृष्टि आन्दोलित हो उठी है। हे मेरे स्वामी! मैं तेरा सेवक और तेरे सेवक का पुत्र हूँ! देख, मैं तेरी इच्छा और आकाँक्षा को पूरा करने के लिये उठ खड़ा हुआ हूँ और तेरी सुप्रसन्नता के अतिरिक्त मेरी और कोई कामना नहीं है। तेरी दया के महासागर और तेरी अनुकम्पा के दिवानक्षत्र के नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू अपने सेवक के साथ वह कर जिसकी तू इच्छा करता और चाहता है। तेरी शक्ति की सौगन्ध! जो समस्त उल्लेख और प्रशंसा से परे हैं। जो भी तेरे द्वारा प्रकट किया गया है वह मेरे हृदय की कामना और मेरी आत्मा को प्रिय है। हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मेरी आशाओं और मेरे कर्मों को न देख, बल्कि केवल अपनी इच्छा को देख, जिसने धरती और आकाशों को घेर रखा है। हे सभी राष्ट्रों के स्वामी! तेरे सर्वमहान नाम की सौगन्ध! मैंने वही चाहा है जो तूने चाहा है और उसी से प्रेम करता हूँ, जिससे तू प्रेम करता है।
तब वह घुटने के बल धरती पर माथा टेक कर कहे:
तू अपने सिवाय किसी अन्य के वर्णन और स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य की समझ से परे है।
तब वह खड़ा हो जाये और कहे:
हे मेरे स्वामी, मेरी प्रार्थना को जीवंत जल की एक निर्झरनी बना दे ताकि मैं तब तक जीवित रहूँ जब तक तेरी सत्ता कायम है और तेरे लोकों के प्रत्येक लोक में तेरी चर्चा कर सकूँ।
तब वह पुनः अपने हाथों को प्रार्थना में उठाये और कहे:
हे तू, जिसके वियोग में हृदय और आत्मायें द्रवित हो गई हैं और जिसके प्रेम की ज्वाला से सम्पूर्ण संसार दमक उठा है! और तेरे उस नाम से जिसके द्वारा तूने समस्त सृष्टि को अपने अधीन किया है, तुझसे याचना करता हूँ कि जो तेरे पास है उससे मुझे वंचित न कर, हे तू जो समस्त जनों पर शासन करता है। तू देखता है, हे मेरे स्वामी! इस अनजान को तेरी विराटता के वितान तले, तेरी दया की परिधि में, अपने सर्वोच्च निवास की ओर शीघ्रता से जाते हुये और पथ भटके पथिक को तेरी क्षमा के सागर की याचना करते हुये और इस पतित को तेरी महिमा के प्रांगण की आकांक्षा लिये और इस दीन-हीन को तेरी सम्पदा की चमक की ओर निहारते हुए। अधिकार तेरा है, तू जो चाहे आदेश दे सकता है। मैं साक्षी हूँ कि तू अपने कर्मों में स्तुत्य है और तेरे आदेशों का पालन किया जाना ही चाहिये और तू अपने आदेश में सदा ही अप्रतिबंधित रहा है।
तब वह अपने हाथों को ऊपर उठाये और तीन बार महानतम नाम का उच्चारण करे। फिर अपने घुटनों पर हाथों को रखकर वह ईश्वर - पावन और परमोच्च है वह - के सम्मुख घुटनों के बल झुक जाये, और कहे:
तू देखता है, हे मेरे ईश्वर, कि किस प्रकार मेरी चेतना मेरे अंगों और प्रत्यंगों में तेरी आराधना की आकाँक्षा लिये और तेरे स्मरण और गुणगान की लालसा लिये स्पंदित हुई है; किस प्रकार यह उसकी साक्षी है जिसका साक्ष्य तेरे आदेश की जिह्वा ने तेरी वाणी के साम्राज्य और ज्ञान के आकाश में दिया। ऐसी अवस्था में, हे मेरे ईश्वर, तेरे पास जो कुछ भी है वह मुझे तुझसे मांगना प्रिय लगता है, ताकि मैं अपनी दरिद्रता दिखा सकूं और तेरी उदारता और तेरी सम्पदाओं का गुणगान कर सकूं और अपनी शक्तिहीनता की घोषणा कर सकूं और तेरी शक्ति तथा सामर्थ्य को व्यक्त कर सकूं।
तब वह खड़ा हो जाये और दो बार अपने हाथों को प्रार्थना में ऊपर उठाये और कहे:
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सर्वशक्तिशाली, सर्वउदार! तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू ही आदि और अन्त का आदेशकर्ता है। हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! तेरी क्षमाशीलता ने मुझे साहस दिया है और तेरी दया ने मुझे शक्ति दी है; तेरी पुकार ने मुझे जगाया है और तेरे अनुग्रह ने मुझे खड़ा किया है और तुझ तक पहुँचने की राह दिखलाई है। अन्यथा मैं कौन हूँ, कि मैं तेरी निकटता के नगर के द्वार तक पहुँचने का साहस जुटा पाता या फिर, तेरी इच्छा के आकाश से प्रस्फुटित प्रकाश की ओर उन्मुख हो पाता ? देखता है तू, हे मेरे स्वामी, तेरी कृपा के द्वार पर यह तुच्छ प्राणी दस्तक दे रहा है और यह क्षणभंगुर जीव तेरी उदारता के हाथों अनन्त जीवन की सरिता की खोज कर रहा है। हर काल में तेरा ही आदेश रहा है, हे तू जो समस्त नामों का स्वामी है, हे आसमानों के रचयिता, तेरी इच्छा के प्रति मेरी स्वीकृति और सहर्ष समर्पण!
तब वह तीन बार हाथों को उठाकर कहे:
ईश्वर प्रत्येक महान से महानतर है!
तब वह घुटनों के बल और, धरती पर अपना माथा टेकते हुए कहे:
तू इससे परे है कि तेरे निकटजनों की स्तुति तेरी निकटता के आकाश तक पहुँच सके अथवा तेरे प्रति समर्पित जनों के हृदय-पखेरू तेरे द्वारा की दहलीज तक पहुँच सकें। मैं साक्षी हूँ कि तू समस्त गुणों से पावन और समस्त नामों से पवित्र रहा है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नही, परम उदात्त, सर्वमहिमाशाली।
तब वह बैठ जाये और कहे:
मैं प्रमाणित करता हूँ, कि वह, जिसे सभी सृजित वस्तुओं ने, उच्च जन समूह ने, सर्वोच्च स्वर्ग के निवासियों ने और उन सबसे परे सर्वमहिमाशाली क्षितिज से स्वयं भव्यता की जिह्वा ने प्रमाणित किया है कि तू ही ईश्वर है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं और यह कि जिसे प्रकट किया गया है वह गूढ़ रहस्य, संचित प्रतीक है जिसके द्वारा ’भ‘ और ’व‘ अक्षर परस्पर जोडकऱ मिला दिये गये है। मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह वही है जिसका नाम सर्वोच्च की लेखनी द्वारा लिपिबद्ध किया गया है और जिसका उल्लेख ईश्वर की पुस्तकों में किया गया है जो ऊपर सिंहासन और नीचे धरती का स्वामी है।
तब वह सीधा खड़ा हो जाये और कहे:
हे सभी प्राणियों के स्वामी और सभी दृश्य-अदृश्य वस्तुओं के मालिक! तू देखता है मेरे आँसुओं को और मेरी आह भरने को, और सुनता है तू मेरी कराह और मेरी चित्कार को, और मेरे हृदय के विलाप को। तेरी शक्ति की सौगंध! मेरे अतिक्रमणों ने मुझे तेरे समीप आने से रोका है और मेरे पापों ने मुझे तेरी पावनता के प्रांगण से बहुत दूर कर दिया है। हे मेरे स्वामी, तेरे प्रेम ने मुझे समृद्ध बनाया है और तेरे वियोग ने मुझे नष्ट कर दिया है और तुझसे दूरी ने मुझे क्षीण कर दिया है। इस वीराने में तेरे पदचापों के माध्यम से, और इन शब्दों के द्वारा कि “मैं यहीं हूँ”, “मैं यहीं हूँ”, जिन शब्दों का तेरे प्रियजनों ने इस विराटता में उच्चारण किया है, मैं तेरे प्रकटीकरण के श्वांसों के माध्यम से और तेरे अवतरण के प्रभात की मृदुल बयारों के माध्यम से, मैं तुझसे याचना करता हूँ कि ऐसा विधान कर कि मैं तेरे सौन्दर्य के दर्शन कर सकूँ, और जो कुछ भी तेरे पावन ग्रंथ में है उसका अनुपालन कर सकूँ।
तब वह महानतम् नाम का तीन बार उच्चारण करे, और घुटनों पर हाथों को रखते हुए झुके और कहे:
स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर, कि तेरा स्मरण करने और तेरा यशगान करने में तूने मेरी सहायता की है, तूने ही दिया है उसका ज्ञान जो तेरे चिह्नों का उद्गमस्थल है, तूने ही बनाया है इस योग्य मुझे कि तेरे स्वामित्व के समक्ष विनत हो सकूँ और तेरे ईश्वरत्व के प्रति विनम्र रह सकूँ और तेरी महिमा की जिह्वा द्वारा जो कुछ भी उच्चारा गया है उसे स्वीकार कर सकूँ।
तब वह खड़ा हो जाये और कहे:
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मेरे पापों के बोझ से मेरी कमर झुक गई है; मेरी लापरवाही ने मुझे बर्बाद कर दिया है। जब कभी भी मैं अपने दुष्कर्मों और तेरी दयालुता के विषय में सोचता हूँ तो मेरा हृदय, अन्दर-ही-अन्दर द्रवित हो उठता है, और रक्त मेरी शिराओं में उद्वेलित हो जाता है। तेरे सौन्दर्य की सौगन्ध, हे तू, विश्व की कामना! लज्जित हूँ मैं तेरी ओर देखने में, याचना भरे अपने हाथों को तेरी कृपा के आकाश की ओर फैलाने में। तू देखता है, मेरे आँसू तेरा स्मरण करने में तेरा गुणगान करने में कैसे अवरोध बने हैं, हे तू जो ऊपर सिंहासन और नीचे धरती का स्वामी है! तेरे साम्राज्य के चिह्नों और तेरे प्रभुत्व के रहस्यों द्वारा मैं तुझसे याचना करता हूँ कि हे सबके स्वामी! कि अपने प्रियजनों के साथ अपनी अनुकम्पा और गरिमा के अनुरूप व्यवहार कर, हे गोचर और अगोचर के सम्राट!
तब वह तीन बार महानतम् नाम का उच्चारण करे, और घुटनों के बल धरती पर माथा टेक कर कहे:
स्तुति हो तेरी, हे हमारे ईश्वर, कि तूने हम तक वह भेजा है जो तेरी समीपता की ओर हमें आकर्षित करता है और तेरे ग्रंथों और तेरी पुस्तकों में उल्लिखित प्रत्येक उत्तम वस्तु हमें प्रदान करता है। हे मेरे स्वामी, हम याचना करते हैं, हमें व्यर्थ विचारों और निरर्थक कल्पनाओं के समूहोंतीर्थ से बचा। तू, सत्य ही, शक्तिशाली, सर्वज्ञ है।
तब वह अपना सिर उठाये, और बैठ जाये, और कहे:
हे मेरे ईश्वर, मैं उसका साक्षी हूँ जिसके साक्षी हैं तेरे प्रियजन और स्वीकार करता हूँ मैं उसको, जिसे सर्वाच्च स्वर्ग के निवासियों ने और तेरे शक्तिशाली सिंहासन की परिक्रमा करने वालों ने स्वीकार किया है। धरती और आकाश के साम्राज्य तेरे है, हे लोकों के स्वामी!
बहाउल्लाह द्वारा प्रकट की गई दैनिक अनिवार्य प्रार्थनाएँ संख्या में तीन हैं। प्रत्येक बहाई को चाहिये कि इनमें से कोई एक प्रार्थना को वह चुन ले और अनिवार्य रूप से उसका पाठ प्रतिदिन करे। अनिवार्य प्रार्थना का पाठ उनके साथ दिये गये विशेष निर्देशों के अनुसार ही किया जाना चाहिये।
”अनिवार्य प्रार्थनाओं के संदर्भ में ’सुबह‘ ’दोपहर‘ और ’संध्या‘ का अर्थ है सूर्योदय से दोपहर तक, दोपहर से सूर्यास्त तक और सूर्यास्त से लेकर सूर्यास्त के दो घंटे पश्चात तक का समय।“
चैबीस घंटे में एक बार, दोपहर से संध्या के बीच इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिये।
मैं साक्षी हूँ, हे मेरे ईश्वर! कि तुझे जानने तथा तेरी आराधना करने हेतु तूने मुझे उत्पन्न किया है। मैं इस क्षण अपनी शक्तिहीनता और तेरी शक्तिमानता, अपनी दरिद्रता तथा तेरी सम्पन्नता का साक्षी हूँ।
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू ही है संकट में सहायक, स्वःनिर्भर।
(चौबीस घंटे में एक बार किये जाने के लिये)
जो कोई भी इस प्रार्थना का पाठ करना चाहे, वह खड़ा होकर ईश्वर की ओर उन्मुख हो, और, जब वह अपने स्थान पर खड़ा हो, वह दायें और बायें देखे, मानो अपने स्वामी, परम दयावान, सहानुभूतिकर्ता की दया की प्रतीक्षा में हो। तब वह कहे:
हे तू, जो समस्त नामों का स्वामी और आकाशों का सृजनकर्ता है! मैं उनके माध्यम से तुझसे याचना करता हूँ जो तेरे सर्वमहिमावान, परमउदात्त, अदृश्य सार के उद्गमस्थल हैं कि मेरी प्रार्थना को ऐसी ज्वाला बना दे जो उन पर्दों को जला डाले जिन्होंने तेरे सौन्दर्य से मुझे दूर रखा है, और एक ऐसा प्रकाश जो तेरी उपस्थिति के महासागर की ओर मुझे ले जाये।
वह तब अपने हाथ ईश्वर - पावन और परमोच्च है वह - कि प्रार्थना में उठाये और कहे:
हे तू, समस्त विश्व की कामना और राष्ट्रों के प्रियतम ! तू मुझे अपनी ओर उन्मुख होते हुये देख रहा है, और तेरे अतिरिक्त अन्य सभी के प्रति आसक्ति से मुक्त, मैं तेरी डोर थामे हुए हूँ,, जिसके स्पंदन से समस्त सृष्टि गतिमान हो उठी है। हे मेरे स्वामी ! मैं तेरा सेवक और तेरे सेवक का पुत्र हूँ! देख, मैं तेरी इच्छा और आकाँक्षा को पूरा करने के लिये उठ खड़ा हुआ हूँ और तेरी सुप्रसन्नता के अतिरिक्त मेरी कोई कामना नहीं है। तेरी दया के महासागर और तेरी अनुकम्पा के दिवानक्षत्र के नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू अपने सेवक के साथ वह कर जिसकी तू इच्छा करता और चाहता है। तेरी शक्ति की सौगन्ध ! जो समस्त उल्लेख और प्रशंसा से परे हैं। जो भी तेरे द्वारा प्रकट किया गया है वह मेरे हृदय की कामना और मेरी आत्मा को प्रिय है। हे ईश्वर, मेरे ईश्वर ! मेरी आशाओं और मेरे कर्मों को न देख, बल्कि केवल अपनी इच्छा को देख, जिसने धरती और आकाशों को घेर रखा है। हे सभी राष्ट्रों के स्वामी ! तेरे सर्वमहान नाम की सौगन्ध ! मैंने वही चाहा है जो तूने चाहा है और उसी से प्रेम करता हूँ, जिससे तू प्रेम करता है।
तब वह घुटने के बल धरती पर माथा टेक कर कहे:
तू अपने सिवाय किसी अन्य के वर्णन से परे है और स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य की समझ से परे है।
तब खड़ा हो जाये और कहे:
हे मेरे स्वामी, मेरी प्रार्थना को जीवंत जल की एक निर्झरनी बना दे ताकि मैं तब तक जीवित रहूँ जब तक तेरी सत्ता कायम है और तेरे लोकों के प्रत्येक लोक में तेरी चर्चा कर सकूँ।
तब वह पुनः अपने हाथों को प्रार्थना में उठाये और कहे:
हे तू, जिसके वियोग में हृदय और आत्मायें द्रवित हो गई हैं और जिसके प्रेम की ज्वाला से सम्पूर्ण संसार दमक उठा है, और तेरे उस नाम से जिसके द्वारा तूने समस्त सृष्टि को अपने अधीन किया है, तुझसे याचना करता हूँ कि जो तेरे पास है उससे मुझे वंचित न कर, हे तू जो समस्त जनों पर शासन करता है। तू देखता है, हे मेरे स्वामी ! इस अजनबी को तेरी विराटता के वितान तले, तेरी दया की परिधि में, अपने सर्वोच्च निवास की ओर शीघ्रता से जाते हुये, और पथ भटके पथिक को तेरी क्षमा के सागर की याचना करते हुये, और इस पतित को तेरी महिमा के प्रांगण की आकांक्षा लिये, और इस दीन-हीन को तेरी सम्पदा की चमक की ओर निहारते हुए। अधिकार तेरा है, तू जो चाहे आदेश दे सकता है। मैं साक्षी हूँ कि तू अपने कर्मों में स्तुत्य है और तेरे आदेशों का पालन किया जाना ही चाहिये और तू अपने आदेश में सदा ही अप्रतिबंधित रहा है।
तब वह अपने हाथ ऊपर उठाये और तीन बार महानतम नाम का उच्चारण करे। फिर अपने घुटनों पर हाथ रखकर वह ईश्वर - पावन और परमोच्च है वह - के सम्मुख घुटनों के बल झुक जाये, और कहे:
तू देखता है, हे मेरे ईश्वर, कि किस प्रकार मेरे अंग-प्रत्यंग में मेरी चेतना तेरी आराधना की आकाँक्षा लिये और तेरे स्मरण और गुणगान की लालसा लिये स्पंदित हुई है; किस प्रकार यह उसकी साक्षी है जिसका साक्ष्य तेरे आदेश की जिह्वा ने तेरी वाणी के साम्राज्य और ज्ञान के आकाश में दिया। ऐसी अवस्था में, हे मेरे ईश्वर, तेरे पास जो कुछ भी है वह मुझे तुझसे मांगना प्रिय लगता है, ताकि मैं अपनी दरिद्रता दिखा सकूं और तेरी उदारता और तेरी सम्पदाओं का गुणगान कर सकूं और अपनी शक्तिहीनता की घोषणा कर सकूं और तेरी शक्ति तथा सामर्थ्य को व्यक्त कर सकूं।
तब वह खड़ा हो जाये और दो बार अपने हाथ प्रार्थाना में ऊपर उठाये और कहे:
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सर्वशक्तिशाली, सर्वउदार! तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू ही आदि और अन्त का आदेशकर्ता है। हे ईश्वर, मेरे ईश्वर ! तेरी क्षमाशीलता ने मुझे साहस दिया है और तेरी दया ने मुझे शक्ति दी है; तेरी पुकार ने मुझे जगाया है और तेरे अनुग्रह ने मुझे खड़ा किया है और तुझ तक पहुँचने की राह दिखलाई है। अन्यथा मैं कौन हूँ, कि मैं तेरी निकटता के नगर के द्वार तक पहुँचने का साहस जुटा पाता या फिर, तेरी इच्छा के आकाश से प्रस्फुटित प्रकाश की ओर उन्मुख हो पाता ? देखता है तू, हे मेरे स्वामी, तेरी कृपा के द्वार पर यह तुच्छ प्राणी दस्तक दे रहा है और यह क्षणभंगुर जीव तेरी उदारता के हाथों अनन्त जीवन की सरिता की खोज कर रहा है। हर काल में तेरा ही आदेश रहा है, हे तू जो समस्त नामों का स्वामी है, हे आसमानों के रचयिता, तेरी इच्छा के प्रति मेरी स्वीकृति और सहर्ष समर्पण !
तब वह तीन बार हाथ उठाकर कहे:
प्रत्येक महान से ईश्वर महानतर है !
तब वह घुटनों के बल धरती पर अपना माथा टेकते हुए कहे:
तू इस से परे है कि तेरे निकट जनों कि स्तुति तेरी निकटता के आकाश तक पहुँच सके अथवा तेरे प्रति समर्पित जनों के हृदय-पखेरू तेरे प्रवेश मार्ग के द्वार तक पहुँच सकें। मैं साक्षी हूँ कि तू समस्त गुणों से पावन, और समस्त नामों से पवित्र रहा है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, परम उदात्त, सर्व महिमाशाली।
तब वह बैठ जाये और कहे:
मैं प्रमाणित करता हूँ, कि वह, जिसे सभी सृजित वस्तुओं ने, उच्च जन समूह ने, सर्वोच्च स्वर्ग के निवासियों ने और उन सबसे परे सर्वमहिमाशाली क्षितिज से स्वयं भव्यता की जिह्वा ने प्रमाणित किया है कि तू ही ईश्वर है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं और यह कि जिसे प्रकट किया गया है वह गूढ़ रहस्य, संचित प्रतीक है जिसके द्वारा ’भ‘ और ’व‘ अक्षर परस्पर जोडे़ और बुन दिये गये है। मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह वही है जिसका नाम सर्वोच्च की लेखनी द्वारा लिपिबद्ध किया गया है और जिसका उल्लेख ईश्वर की पुस्तकों में किया गया है जो ऊपर सिंहासन और नीचे धरती का स्वामी है।
तब वह सीधा खड़ा हो जाये और कहे:
हे समस्त प्राणियों के स्वामी और सभी दृश्य-अदृश्य वस्तुओं के मालिक ! तू देखता है मेरे आँसुओं को और मेरी आहों को जो मैं भरता हूँ और सुनता है तू मेरी कराह और मेरे चित्कार को और मेरे हृदय के विलाप को। तेरी शक्ति की सौगंध ! मेरे अतिक्रमणों ने मुझे तेरी समीप आने से रोका है और मेरे पापों ने मुझे तेरी पावनता के प्रांगण से बहुत दूर कर दिया है। हे मेरे स्वामी, तेरे प्रेम ने मुझे समृद्ध बनाया है और तेरे वियोग ने मुझे नष्ट कर दिया है और तुझसे दूरी ने मुझे क्षीण कर दिया है। इस वीराने में तेरे पदचापों के माध्यम से, और इन शब्दों के द्वारा कि “मैं यहीं हूँ”, “मैं यहीं हूँ”, जिन शब्दों का तेरे प्रियजनों ने इस विराटता में उच्चारण किया है, मैं तेरे प्राकट्य के श्वांसों के माध्यम से, और तेरे प्रकटीकरण के प्रभात की मृदुल बयारों के माध्यम से, मैं तुझसे याचना करता हूँ कि ऐसा विधान कर कि मैं तेरे सौन्दर्य के दर्शन कर सकूँ, और जो कुछ भी तेरे पावन ग्रंथ में है उसका अनुपालन कर सकूँ।
तब वह महानतम् नाम का तीन बार उच्चारण करे और घुटनों पर हाथ रखते हुए झुके और कहे:
स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर, कि तेरा स्मरण करने और तेरा यशगान करने में तूने मेरी सहायता की है, तूने ही दिया है उसका ज्ञान जो तेरे चिह्नों का उद्गमस्थल है, तूने ही बनाया है इस योग्य मुझे कि तेरे स्वामित्व के समक्ष विनत हो सकूँ और तेरे ईश्वरत्व के प्रति विनम्र रह सकूँ और तेरी महिमा की जिह्वा द्वारा जो कुछ भी उच्चारा गया है उसे स्वीकार कर सकूँ।
तब वह खड़ा हो जाये और कहे:
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मेरे पापों के बोझ से मेरी कमर झुक गई है; मेरी लापरवाही ने मुझे बर्बाद कर दिया है। जब कभी भी मैं अपने दुष्कर्मों और तेरी हितेषिता के विषय में सोचता हूँ तो मेरा हृदय, अन्दर-ही-अन्दर द्रवित हो उठता है, और रक्त मेरी शिराओं में उद्वेलित हो जाता है। तेरे सौन्दर्य की सौगन्ध, हे तू, विश्व की कामना! लज्जित हूँ मैं तेरी ओर देखने में, याचना भरे अपने हाथ तेरी कृपा के आकाश की ओर फैलाने में। तू देखता है, मेरे आँसू तुझे याद करने में तेरा गुणगान करने में कैसे अवरोध बने हैं, हे तू जो सर्वोच्च सिंहासन और धरती का स्वामी है ! तेरे साम्राज्य के चिह्नों और तेरी प्रभुत्व के रहस्यों द्वारा मैं तुझसे याचना करता हूँ कि हे सबके स्वामी! कि अपने प्रियजनों के साथ अपनी अनुकम्पा और गरिमा के अनुरूप व्यवहार कर, हे गोचर और अगोचर के सम्राट !
तब वह तीन बार महानतम् नाम का उच्चारण करे और घुटनों के बल धरती पर माथा टेक कर कहे:
स्तुति हो तेरी, हे हमारे ईश्वर ! कि तूने हम तक वह भेजा है जो हमें तेरी निकटता की ओर आकर्षित करता है और तेरे ग्रंथों और तेरे लेखों में उल्लिखित प्रत्येक उत्तम वस्तु हमें प्रदान करता है। हम याचना करते हैं, हे मेरे स्वामी, हमें व्यर्थ विचारों और निरर्थक कल्पनाओं से बचा। तू, सत्य ही, शक्तिशाली, सर्वज्ञ है।
तब वह अपना सर उठाये, बैठ जाये और कहे:
हे मेरे ईश्वर, मैं उसका साक्षी हूँ जिसके साक्षी तेरे प्रियजन हैं, और स्वीकार करता हूँ मैं उसको, जिसे सर्वाच्च स्वर्ग के निवासियों ने और तेरे शक्तिशाली सिंहासन की परिक्रमा करने वालों ने स्वीकार किया है। धरती और आकाश के साम्राज्य तेरे ही हैं, हे समस्त लोकों के स्वामी !
तू महिमावंत है, हे मेरे ईश्वर! मैं धन्यवाद देता हूँ तुझे कि तूने मुझे उसका ज्ञान कराया, जो तेरी दया का उद्गमस्थल है, जो तेरी अनुकम्पा का उदयस्थल है और जो तेरे धर्म का कोषागार है। जिस नाम के स्मरण मात्र से उनके चेहरे दीप्तिमान हो उठते हैं, जो तेरे समीप हैं और उनके हृदय-पखेरू तुझ तक पहुँचने के लिये तड़प उठते हैं, जो तेरे भक्त हैं। मैं तेरे उस नाम के सहारे याचना करता हूँ कि यह वर दे कि प्रतिपल, प्रत्येक परिस्थिति में तेरी डोर को थामे रहूँ और तुझे छोड़कर अन्य सबकी आसक्ति से मुक्त हो जाऊँ और तेरे प्रकटीकरण की ओर एकटक देखता रहूँ और तूने जो अपनी पातियों में विहित किया है उसका अनुपालन कर सकूँ। हे मेरे ईश्वर! मेरे बाह्य और अन्तर्मन को अपनी अनुकम्पा और प्रेममय दया के परिधान से सुसज्जित कर। मुझे सुरक्षित रख और तुझे जो कुछ भी अप्रिय है उससे दूर रख और अपनी आज्ञाओं के अनुपालन में कृपापूर्ण मेरी और मेरे प्रियजनों की सहायता कर और मेरे अंदर जो भी विषय-प्रवृत्ति और दुष्काम भाव हैं उन पर विजय पाने में मेरी सहायता कर।
तू सत्य ही, समस्त मानवजाति का ईश्वर है, और इहलोक और परलोक का स्वामी है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सर्वज्ञ,
हे मेरे ईश्वर ! मुझे अपने निकट आने की और अपने प्रांगण की पावन परिधि में रहने की अनुमति दे। तुझसे दूर रहकर मैं निष्प्राण हो गया हूँ; अपने अनुग्रह के पंखों की छाया तले विश्राम करने दे, तुझसे वियोग की ज्वाला ने मेरे हृदय को द्रवित कर दिया है। मुझे, उस सरिता के निकट ला जो सत्य ही जीवन है। तेरी खोज में मेरी आत्मा निरंतर प्यास से दग्ध हो गई है। हे मेरे ईश्वर ! मेरी आहें, मेरी वेदना की तीक्ष्णता और मेरे आँसू तेरे प्रति मेरे प्रेम के प्रतीक हैं। उस गुणगान के माध्यम से जिसका बखान तू ने किया, मैं याचना करता हूँ, ऐसी अनुकम्पा कर कि मैं उन लोगों में गिना जाऊँ जिन्होंने तेरे दिवस में तुझे पहचाना है और तेरी प्रभुसत्ता स्वीकार की है। हे मेरे ईश्वर! अपनी प्रेममयी दयालुता के जीवंत जल का अपनी दया के करों से पान करने में सहायता कर, ताकि मैं तुझे छोड़, सब कुछ को पूरी तरह भूला दूँ और पूरी तरह तुझमें ही रम जाऊँ। तू जो चाहे करने में समर्थ है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, संकट में सहायक, स्वनिर्भर। तू सर्वशक्तिमान है; हे तू, जो सभी सम्राटों का सम्राट है, तेरी ही महिमा का गुणगान हो।
तेरे ही नाम की स्तुति हो,, हे मेरे ईश्वर! तेरी आज्ञा से और तेरी इच्छा के अनुकूल सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त, तेरी अनुकम्पा के परिधान की सुरभि के सहारे और तेरे दिव्य इच्छा के सूर्य के सहारे, जो तेरे दया के क्षितिज पर तेरी शक्ति और प्रभुसत्ता के साथ प्रकाशमान हुआ है, मैं याचना करता हूँ कि मेरे हृदय से व्यर्थ-कल्पनाओं और निरर्थक धारणाओं को धो डाल, ताकि तन-मन से मैं तेरी ओर उन्मुख हो सकूँ। हे तू, जो सम्पूर्ण मानवजाति का स्वामी है! मैं तेरा सेवक और तेरे सेवक का पुत्र हूँ ! हे मेरे ईश्वर ! मैंने तेरी अनुकम्पा की बांह पकड़ ली है और तेरी स्नेहिल कृपा की डोर को दृढ़ता से थाम लिया है। मेरे लिये शुभ पदार्थों का विधान कर जो तेरी हैं और अपने आशीष के आकाश से, अपने अनुग्रह के आकाश से भेजे गये सहभोज में सम्मिलित होने दे। तू सत्य ही, सभी लोकों का स्वामी है और उन सबका ईश्वर है, जो धरती और आकाश पर हैं।
हे ईश्वर! तेरे धर्म की ऊष्मा ने अनेक अचेत हृदयों को प्रदीप्त किया है और तेरी वाणी के माधुर्य ने अनेक सोये हुए लोगों को जगाया है। न जाने कितने ऐसे अनजाने लोग हैं, जिन्होंने तेरी एकता के तरुवर की छाया में आश्रय चाहा है और न जाने कितने ऐसे प्यासे लोग हैं जो तेरे इस दिवस में तेरी जीवंत जलधारा की ओर आकुल हो दौड़ पड़े हैं।
वह धन्य है जो तेरी ओर उन्मुख हुआ है और जिसने तेरी मुख-ज्योति के उद्गमस्थल की उपस्थिति पाने की शीघ्रता की है। धन्य है वह जो पूर्ण स्नेह से तेरे प्राकट्य के उदयस्थल की ओर, तेरी प्रेरणा के निर्झरस्रोत की ओर उन्मुख हुआ है। धन्य है वह जिसने तेरे पथ में तेरी उदारता और कृपा से प्राप्त अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है। धन्य है वह जिसने तुझे पाने की उत्कट चाह में तेरे सिवा अपना सर्वस्व त्याग दिया है। धन्य है वह जिसने तेरी अंतरंग घनिष्ठता का सुख पाया है और जो सिवाय तेरे सब कुछ से विरक्त हो गया है।
मैं याचना करता हूँ, हे मेरे नाथ ! उसके माध्यम से जो तेरा ’नाम‘ है, तेरी ही सत्ता से जो उसके कारागार के क्षितिज पर उदित हुई है, कि तू सबको वह प्रदान कर जो तू उचित समझता है और जो तेरे परम पद के अनुरूप है। वस्तुतः, तेरी शक्ति सर्वोपरि है।
हे मेरे ईश्वर, मैं नहीं जानता, कि वह कौन सी अग्नि है जो तूने अपनी धरा पर प्रज्वलित की है। धरती कभी भी इसके तेज को आच्छादित नहीं कर सकती और न जल इसकी अग्नि को बुझा सकता है। संसार के समस्त निवासी भी इसके वेग को बाधित करने में असमर्थ हैं। वह जो इसके निकट खिंच आया है और इसकी गर्जना को जिसने सुना है उसे प्राप्त आशीर्वाद महान हैं।
हे मेरे ईश्वर, कुछ को, तूने अपनी शक्तिदायिनी कृपा के द्वारा इसकी ओर आने के योग्य बनाया है, जबकि दूसरों को इस कारण जो तेरे दिवस में उनके हाथों ने किया है, पीछे रखा है। जिसने भी शीघ्रता से इसकी ओर पग बढ़ाये हैं और तेरे सौन्दर्य को निहारने की उत्कंठा में जो भी तुझ तक पहुँचा है, उसने तेरे पथ में अपना जीवन न्योछावर कर दिया है और तेरे अतिरिक्त अन्य सब कुछ से पूर्णतया अनासक्त होकर तुझ तक पहुँच गया है।
मैं याचना करता हूँ कि उस ज्वाला से जो तेरी सृष्टि में प्रज्ज्वलित हुई है, उन पर्दों को विदीर्ण कर दे, जिन्होंने मुझे तेरी भव्यता के सिंहासन के सम्मुख उपस्थित होने और तेरे प्रवेश-द्वार पर खड़ा होने से रोक रखा है। हे मेरे ईश्वर! मेरे लिये अपने ग्रंथ में विहित प्रत्येक उत्तम वस्तु का विधान कर और मुझे अपनी दया की शरण से दूर हटाये जाने का दुःख न दे। तू जैसा चाहे वैसा करने में सक्षम है; तू निश्चय ही, सर्वशक्तिशाली, परम उदार है।
स्तुति हो तेरी हे मेरे ईश्वर! मैं तेरे उन सेवकों में से एक हूँ जिन्होंने तुझ पर और तेरे चिन्हों पर विश्वास किया है। तू देखता है कि कैसे तेरी दया के द्वार की ओर मैं अपना ध्यान लगाये हुए हूँ और तेरी स्नेहमयी कृपा की ओर उन्मुख हो गया हूँ। मैं तुझसे याचना करता हूँ, तेरी परम श्रेष्ठ उपाधियों और परम उदात्त गुणों के नाम से, कि मेरे सम्मुख अपने वरदानों के द्वार खोल दे और तब जो शुभ हो वह करने में मेरी सहायता कर। हे तू, जो सभी नामों और गुणों का स्वामी है!
हे मेरे ईश्वर! मैं दरिद्र हूँ, तू सर्वसम्पन्न है! मैं तेरी ओर उन्मुख हूँ और स्वयं को तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से मुक्त कर लिया है। मैं विनती करता हूँ तुझसे कि मुझे अपनी मृदुल दया के पवन झकोरों से वंचित मत कर और जो कुछ तूने अपने चुने हुए सेवकों के लिये निश्चित किया है, उसे मुझ तक आने से न रोक।
हे मेरे ईश्वर, मेरे नेत्रों से पर्दा हटा दे, जिससे जो भी तूने अपने प्राणियों के लिये चाहा है, मैं उसे पहचान पाऊँ और तेरे सृजन के सभी मूर्त रूपों में तेरी सर्वसामर्थ्यमय शक्ति के प्रकटीकरणों को खोज पाऊँ। हे मेरे प्रभु, मेरी आत्मा को अपने परम सामर्थ्यमय चिन्हों से उल्लसित कर दे और मुझे मेरी भ्रष्ट और अधम इच्छाओं की गर्त से बाहर निकाल। तब मेरे लिये इहलोक और परलोक के समस्त शुभ मंगल का विधान कर। तुझमें जो चाहे वह करने की सामर्थ्य है। तुझ सर्वमहिमावान के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, जिसकी सहायता की कामना सभी मानव करते हैं।
हे मेरे ईश्वर, मैं धन्यवाद देता हूँ तुझे, कि तूने मुझे मेरी निद्रा से जगाया और मुझे गतिमान कर दिया है और मेरे अंदर वह देख पाने की लालसा जगाई है जिसे समझने में तेरे अधिकांश सेवक विफल रहे हैं। इसलिये, हे मेरे ईश्वर, अपने प्रेम और प्रसन्नता के लिये तेरी जो भी कामना है, वह देखने योग्य मुझे बना। तू वह है जिसकी सामर्थ्य और सत्ता की शक्ति की समस्त वस्तुएँ साक्षी हैं।
तू सर्वशक्तिमान, कल्याणकारी है; तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है !
तेरे स्वामी, सृष्टिकर्ता, सर्वपरिपूरक, परम उदात्त के नाम से जिसकी याचना सभी मनुष्य करते हैं, कहोः ”हे मेरे ईश्वर! तू, जो समस्त धरती और आकाशों का रचयिता है, हे दिव्य लोक के स्वामी! तू भलीभाँति मेरे हृदय के रहस्यों को जानता है, जबकि तेरा अस्तित्व तेरे अतिरिक्त अन्य सभी के ज्ञान से परे है। मेरा जो भी है, वह सब तू देखता है, जबकि तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा नहीं कर सकता है। अपने अनुग्रह से मेरे लिये वह प्रदान कर जो मुझे तेरे सिवा अन्य सबसे स्वतंत्र कर दे। ऐसा कर कि मैं इहलोक और परलोक में अपने जीवन के सुफल प्राप्त करूँ। मेरे सम्मुख अपने अनुग्रह के द्वार खोल दे और कृपापूर्वक मुझे अपनी स्नेहिल दया और वरदानों से विभूषित कर।
हे तू, जो असीम अनुकम्पाओं का स्वामी है। जो तुझसे प्रेम करते हैं, उन्हें अपनी दिव्य सहायता से आवृत कर और हमें अपने उपहारों और उदारताओं का दान दे। तू हमारे लिये पर्याप्त बन। हमारे पापों को क्षमा कर दे और हम पर दया कर। तू ही हमारा स्वामी और सभी सृजित वस्तुओं का स्वामी है। तेरे अतिरिक्त हम अन्य किसी का आह्वान नहीं करते और तेरे अतिरिक्त अन्य किसी के अनुग्रहों की याचना नहीं करते। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सर्वसम्पन्न, सर्वोच्च!
हे मेरे स्वामी, अपने दिव्य संदेशवाहकों पर, उन पावन और सदाचारी जनों पर अपने आशीष प्रदान कर। सत्य ही तू, अद्वितीय, सर्ववशकारी ईश्वर है।
हे स्वामी! मैं तेरी शरण में आना चाहता हूँ, और तेरे समस्त चिन्हों की ओर मैं अपना हृदय लगाये हुए हूँ।
हे स्वामी! चाहे यात्रा में हूँ या घर में, और अपने व्यवसाय अथवा अपने कार्य में; मैं अपनी सम्पूर्ण आस्था तुझमें ही रखता हूँ।
तब मुझे अपनी पर्याप्त सहायता प्रदान कर जो मुझे समस्त वस्तुओं से स्वतंत्र कर दे, हे तू जो अपनी दया में सर्वोत्तम है!
हे स्वामी! मुझे मेरा अंश प्रदान कर, जैसा तू चाहता है और जो भी तूने मेरे लिए नियत किया है उसमें मुझे संतुष्ट कर दे। आदेश देने का सम्पूर्ण अधिकार तेरा ही है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मेरे पात्र को समस्त वस्तुओं से अनासक्ति से भर दे, और अपनी भव्यता और दानशीलता के कारण प्रेम की मदिरा से मुझे उल्लसित कर दे, मुझे वासनाओं और कामनाओं के आघातों से मुक्त कर, मेरे इस निम्नतम के बांधनों को तोड़ डाल, परम आनन्द के साथ मुझे अपने अलौकिक लोक में ले चल और अपनी सेविकाओं के बीच मुझे अपनी पावनता की सांसों के द्वारा नवस्फूर्ति दे।
अपने आशीषों के प्रकाश से मेरे मुखड़े को दीप्तिमान कर, अपनी सर्वसमर्थ शक्ति के दर्शन से मेरे नेत्रों को नवज्योति प्रदान कर और अपने उस ज्ञान के द्वारा, जो सर्वसम्पूर्ण है, मुझे आह्लादित कर दे। हे तू, जो इहलोक और परलोक के साम्राज्य का राजाधिराज है! हे तू सत्ता और शक्ति के स्वामी! मेरी आत्मा को नवस्फूर्ति प्रदान करने वाले महान आनन्द के समाचारों से मुझे आनन्दविभोर कर दे, ताकि मैं तेरे प्रतीकों और तेरी शिक्षाओं का प्रसार दूर-दूर तक कर सकूँ, तेरे विधानों का पालन कर सकूँ और तेरी वचनों को यशस्वी बना सकूँ। तू निश्चय ही, शक्तिशाली, सर्वप्रदाता, सुयोग्य, सर्वशक्तिमान है।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तू मेरी आशा और मेरा प्रियतम, मेरा सर्वोच्च लक्ष्य और कामना है ! अत्यन्त विनीत भाव से और सम्पूर्ण समर्पण के साथ मैं तूझसे याचना करता हूँ, मुझे अपनी धरती पर अपने प्रेम की एक मीनार बना, अपने प्राणियों के मध्य अपने ज्ञान का दीप बना और अपने साम्राज्य में अपनी दिव्य कृपा की ध्वजा बनने दे।
मुझे अपने ऐसे सेवकों में गिन जिन्होंने स्वयं को तेरे अतिरिक्त अन्य सबसे अनासक्त कर लिया है, स्वयं को इस संसार की क्षणभंगुर वस्तुओं से पवित्र कर लिया है और अपने आपको निरर्थक, कपोल कल्पनाओं की दुहाई देने वालों के इशारों से मुक्त कर लिया है।
अपने लोक की चेतना की सम्पुष्टि के द्वारा मेरे हृदय को आनन्दविभोर कर दे और अपनी सर्वशक्तिमय महिमा के साम्राज्य से मुझ पर निरन्तर बरसने वाली दिव्य सहायता के समूहों के दर्शन से मेरे नेत्रों को दीप्तिमान कर दे।
तू सत्य ही, सर्वसामर्थ्यशाली, सर्वमहिमामय, सर्वशक्तिमंत है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! हम तेरे सेवक हैं जो भक्तिपूर्वक तेरे पावन मुखड़े की ओर उन्मुख हुए हैं, जिन्होंने इस महिमामय दिवस में तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से स्वयं को अनासक्त कर लिया है। हम इस आध्यात्मिक सभा में, अपने विचारों और चिन्तन में, एक बनकर उपस्थित हुए हैं और मानवजाति के मध्य तेरी वाणी का यशोगान करने के लिये हमारे उद्देश्य एक हो गये हैं। हे स्वामी! हमारे ईश्वर! हमें अपने दिव्य मार्गदर्शन के चिन्ह, मनुष्यों के मध्य अपने उदात्त धर्म की ध्वजाएँ, अपनी सशक्त संविदा के सेवक बना, हे तू हमारे परमोच्च स्वामी ! हमें अपने अब्हा साम्राज्य में अपनी दिव्य एकता की अभिव्यक्तियाँ, और सर्वत्र चमकते दीप्तिमान सितारे बना। स्वामी! हमें अपनी अद्भुत कृपा की विराट तरंगों से तरंगित सागर बनने में हमारी सहायता कर, तेरे सर्वमहिमामय शिखरों से प्रवाहित सरितायें, अपनी दिव्य धर्म के तरूवर पर लगे सुमधुर फल तेरी दिव्य अंगूर-वाटिका में तेरे उदारता की समीरों से झूमते हुए तरूवर बना। हे ईश्वर! हमारी आत्माओं को अपनी दिव्य एकता के छंदों पर आश्रित कर दे, हमारे हृदय तेरी कृपा से आनंदित जिससे कि हम समुद्र की तरंगों के समान एक हो जायें, तेरे देदीप्यमान प्रकाश कि किरणों के समान एक-दूसरे में विलीन हो जायें; कि हमारे विचार, हमारे मत, हमारी अनुभूतियाँ एक वास्तविकता बन जायें, जो सम्पूर्ण विश्व में एकता की भावना को व्यक्त करें। तू कृपालु, उदार, प्रदाता, सर्वशक्तिमान, दयावान, करूणामय है।
आरोग्य
आरोग्य के लिये जिन प्रार्थनाओं को प्रकट किया गया है, वे भौतिक एवं आध्यात्मिक, दोनो प्रकार से निरोग रहने के लिये हैं। इसलिये, आत्मा और शरीर दोनों के स्वास्थ्य लाभ के लिये ये प्राथनाएँ की जानी चाहिये।)
हे मेरे ईश्वर! अपनी अनन्तता की सुवासित जलधाराओं में से मुझे पान करने दे और अपने अस्तित्व के वृक्ष के फलों का स्वाद चखने योग्य मुझे बना, हे मेरी आशा! मुझे अपने प्रेम के स्फटिक निर्मल झरनों से घूंट भरने दे मुझे, हे मेरी महिमा! और अपने अनन्त मंगल विधान की छत्रछाया में मुझे विश्राम करने दे, हे मेरी ज्योति! अपनी निकटता के उपवन में, अपने सान्निध्य में, मुझे विश्राम करने योग्य बना, हे मेरे प्रियतम! और अपने सिंहासन की दाहिनी भुजा पर मुझे बैठा, हे मेरी कामना अपने उल्लास के सुवासित झकोरों का एक झोंका मुझ पर से बह जाने दे, हे मेरे लक्ष्य! अपने सत्य के आकाश की ऊँचाइयों में मुझे प्रवेश पाने दे, हे मेरे आराध्य! अपनी एकता की दिव्य कोकिला की मधुर स्वर-लहरी को सुन पाने का अवसर दे मुझे, हे देदीप्यमान ईश्वर! अपनी शक्ति और सामर्थ्य की चेतना से मुझे अनुप्राणित कर दे, हे मेरे विश्वम्भर! अपने प्रेम में मुझे अटल बना, हे मेरे सहायक! और अपनी सुप्रसन्नता के पथ में मेरे पगों को अडिग रख, हे मेरे स्रष्टा! अपनी अमरता के उपवन में, अपने मुखारविन्द के सम्मुख सदा निवास करने दे मुझे, हे तू जो सदासर्वदा मुझ पर दयालु है! और अपनी महिमा के आसन पर मुझे प्रतिष्ठित कर, हे तू, जो मेरा स्वामी है! अपनी प्रेममयी कृपा के आकाश तक मुझे उड़ान भरने दे, हे मेरे जीवनाधार! और अपने मार्गदर्शन के सूर्य से मेरा पथ आलोकित कर, हे मनमोहन! अपनी अदृश्य चेतना से मेरा साक्षात्कार करा, हे तू जो मेरा उद्गम है और मेरी सर्वोपरि इच्छा है; और अपने सौन्दर्य की सुरभि के सार तक मुझे लौटने दे, हे तू जो मेरा ईश्वर है! तुझे जो प्रिय है, वह करने में तू समर्थ है। तू, सत्य ही, परम उदात्त, सर्वमहिमामय, सर्वोच्च है।
हे मेरे ईश्वर, मुझमें एक शुद्ध हृदय का सृजन कर, और मुझमें एक प्रशांत अंतःकरण का नवीनीकरण कर, हे मेरी आशा! अपनी शक्ति की चेतना से मुझे अपने धर्म में दृढ़ कर, हे मेरे परम प्रियतम, अपनी महिमा के प्रकाश से मेरे समक्ष अपना पथ आलोकित कर, हे तू, मेरी आकांक्षा के लक्ष्य! अपनी सर्वातीत शक्ति से अपनी पावनता के आकाश तक मुझे ऊपर उठा, हे मेरे अस्तित्व के स्रोत और अपनी शाश्वतता के समीरों से मुझे आनन्दित कर दे, हे तू, जो मेरा ईश्वर है! अपने अनन्त स्वर माधुर्य से मुझे प्रशांति प्रदान कर, हे मेरे सखा, और तेरे पुरातन स्वरूप की सम्पदा मुझे तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से विमुक्त कर दे, हे मेरे स्वामी! और तेरे अविनाशी सार की अभिव्यक्ति के सुसामाचार से मुझे आह्लादित कर दे, हे तू जो प्रकटों में परम प्रकट और निगूढ़ों में परम निगूढ़ है!
वह कृपालु, सर्वउदार है! हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तेरी पुकार ने मुझे अपनी ओर आकृष्ट किया है और तेरी महिमा की लेखनी ने मुझे जाग्रत किया है। तेरे पावन वचन के निर्झर ने मुझे आनन्दविभोर कर दिया है और तेरी प्रेरणा की मदिरा ने मुझे सम्मोहित कर दिया है। हे ईश्वर! तू देखता है मुझे, तेरे अतिरिक्त अन्य सबसे विरक्त, तेरे आशीषों की डोर से बंधा हुआ और तेरी अनुकम्पा के चमत्कारों के लिये आकुल-व्याकुल मन-प्राण लिये, तेरी स्नेहसिक्त कृपा के उमड़ते सागर और तेरे संरक्षण के दमकते प्रकाश के नाम से मैं तेरी विनती करता हूँ कि तू ऐसा वर दे जो मुझे तेरे समीप ले जाये और तेरे नाम-रत्न का धनी बना दे। मेरी जिह्वा, मेरी लेखनी, मेरा तन-मन तेरी शक्ति, तेरी सामर्थ्य, तेरी अनुकम्पा और तेरी कृपा का प्रमाण दे रहे हैं कि तू ही ईश्वर है और तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, शक्तिसम्पन्न, सामर्थ्यवान।
हे मेरे ईश्वर, मैं इस क्षण साक्षी देता हूँ अपनी निरीहता और तेरी सर्वोपरि सत्ता, अपनी दुर्बलता और तेरी शक्तिमानता की। मैं नहीं जानता कि मेरे लिये क्या है लाभकारी और क्या है हानिकर। तू, सत्य ही, सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ है। हे मेरे ईश्वर, मेरे स्वामी, तू मेरे लिये उसका विधान कर जो मुझे तेरे पुरातन आदेश में संतुष्टि की अनुभूति कराये और मुझे तेरे प्रत्येक लोक में समृद्धि दिलाये। तू, सत्य ही, दयालु, और प्रदाता है।
हे स्वामी! मुझे अपनी सम्पदा के महासागर और अपनी कृपा से दूर मत हटा और मेरे लिये इहलोक तथा परलोक के शुभ-मंगल का विधान कर। वस्तुतः, तू दया के परमोच्च सिंहासन का स्वामी है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, एकमेव, सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ!
हे मेरे स्वामी! अपने सौंदर्य को मेरा भोज्य, अपनी निकटता को मेरा जीवन-जल, अपनी सुप्रसन्नता को मेरी आशा, अपनी स्तुति को मेरा दैनिक कर्म, अपने स्मरण को मेरा साथी, अपनी सम्प्रभुता शक्ति को मेरा सहायक, अपने आलय को मेरा आश्रयस्थल और अपने उस स्थान को मेरा निवास बना जहाँ वैसे लोगों का प्रवेश वर्जित है जो एक पर्दे के कारण तुमसे परे हैं।
सत्य ही तू, सर्वसामर्थ्यमय, सर्वमहिमामय, सर्वशक्तिशाली है।
तेरे ही नाम की स्तुति हो, हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं तेरा वह सेवक हूँ जिसने तेरी करुणामयी दया के आँचल को थाम लिया है और जो तेरी असीम दातारपन के आंचल से लिपट गया हूँ। तेरे नाम से जिसके द्वारा तूने सृष्टि की समस्त दृश्य तथा अदृश्य वस्तुओं को अपने अधीन किया है और जिसके द्वारा यह श्वांस, जो वस्तुतः जीवन ही है, समस्त सृष्टि में प्रवाहित की गई है, मैं याचना करता हूँ कि तू धरती तथा आकाश को आवृत करने वाली अपनी शक्ति से मुझे सबल बना और समस्त विपदाओं एवं रोगों से मेरी रक्षा कर। मैं साक्षी देता हूँ कि तू ही समस्त नामों का स्वामी है और तू वैसी ही आज्ञा देने वाला है जो तुझे प्रिय हो, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सर्वशक्तिशाली, सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ!
हे मेरे स्वामी! मेरे लिये उसका विधान कर जो तेरे प्रत्येक लोक मे मेरे लिये कल्याणकारी हो। और तब मेरे लिये वह भेज जो तूने अपने चुने हुए प्राणियों के लिये निर्धारित किया है: ऐसे प्राणी, जिन्हें न तो दोष देने वालों का दोषारोपण, न ही अधर्मियों का कोलाहल और न ही तुझसे विमुख प्राणियों की आसक्तियाँ तेरी ओर उन्मुख होने से रोक सकी है।
तू सत्य ही, अपनी सर्वोपरि सत्ता से, संकट में सहायक है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, परम बलशाली, सर्वशक्तिमान।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! यह तेरा सेवक तेरी ओर बढ़ चला है। तेरे प्रेम के पथ में विचरण कर रहा है। तेरी उदारताओं की आशा करते हुए तेरे साम्राज्य पर भरोसा रखे हुए और तेरे वरदानों की मदिरा से मदहोश होकर तेरे प्रेम की मरूभूमि में भावना के उन्माद में भटक रहा है, तेरे अनुग्रहों की अपेक्षा रखे हुए। हे मेरे ईश्वर! अपने प्रति अनुराग की उसकी प्रचंडता को, तेरी स्तुति की इस निरंतरता को और तेरे प्रति प्रेम की प्रखरता को बढ़ा दे।
निश्चय ही तू परम उदार, भरपूर कृपा का स्वामी है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है। सदा क्षमाशील, सर्वदयामय।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! अपने प्रियजनों को अपने धर्म में अडिग रहने, अपने पथ पर चलने और ईश्वरीय धर्म में अडिग रहने में सहायता कर; अहम् और वासना के आवेग को दमित करने की शक्ति प्रदान कर ताकि वे दिव्य मार्गदर्शन के पथ का अनुसरण कर सकें। तू शक्तिशाली, महिमावान, स्वनिर्भर, दाता, दयालु, सर्वसमर्थ और सर्वप्रदाता है।
(जब भी तुम परामर्श के लिये सभाकक्ष में प्रवेश करो, तो ईश्वर के प्रेम से धड़कते हृदय और मात्र उसके स्मरण के अतिरिक्त अन्य सभी कुछ से मुक्त हुई जिह्वा से इस प्रार्थना का पाठ करो, जिससे कि वह सर्वशक्तिमान सर्वोच्च विजय प्राप्त कराने में अनुग्रहपूर्वक तुम्हारी सहायता करे।)
हे तू दिव्य साम्राज्य के स्वामी! हमारे शरीर यहाँ अवश्य एकत्र हैं, लेकिन हम मंत्रमुग्ध हैं, तुम्हारे प्रेम ने हमारे मन-प्राण को हर लिया है; हम तेरे देदीप्यमान मुखड़े की किरणों से आनंदित हो उठे हैं। भले ही हम दुर्बल हैं, किन्तु तेरे सामर्थ्य और शक्ति के प्रकटन की प्रतीक्षा करते हैं। भले ही हम दरिद्र हैं, सम्पत्ति और साधन से हैं हीन, फिर भी हम तेरे दिव्य साम्राज्य की निधियों से समृद्धि पाते हैं। भले ही हम हैं बूंद मात्र है, फिर भी तेरे महासिंधु की अतल गहराइयों से हम अपना भाग ग्रहण करते हैं! हम धूलकण मात्र हैं, फिर भी, तेरे सूर्य की भव्य महिमा से कांति पाते हैं। हे पालनहार ईश्वर! अपनी सहायता भेज, ताकि यहाँ एकत्रित प्रत्येक व्यक्ति एक प्रकाशित दीप बन जाये, हर एक आकर्षण का केन्द्रबिन्दु और तेरे दिव्य प्रांगण में पुकार लगाने वाला हरकारा बन जाये, ताकि हम इस अधम लोक को तेरे स्वर्ग का दर्पण बना सकें।
(आध्यात्मिक सभा की बैठक की समाप्ति पर यह प्रार्थना करें)
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! अपनी एकता के अदृश्य साम्राज्य से तू देखता है कि तुझमें सम्पूर्ण आस्था, तेरे चिन्हों में सम्पूर्ण विश्वास के साथ और तेरी संविदा एवं इच्छा के प्रति अडिग होकर, तेरे प्रति आकर्षित होकर, तेरे प्रेम की अग्नि से प्रदीप्त, तेरे धर्म के प्रति निष्ठावान बन हम इस आध्यात्मिक सभा में एकत्रित हुए। हम तेरी बगिया के सेवक हैं, तेरे धर्म के प्रसारक, तेरे मुखारबिंदु के प्रति समर्पित साधक, तेरे प्रियजनों के प्रति विनम्र, तेरे द्वार पर विनत हैं और तुझसे याचना करते हैं कि अपने प्रियजनों की सेवा करने का अवसर दे, शक्ति दे कि हम तेरी आराधना कर सकें, तेरे प्रति समर्पित रह सकें और तुझसे सम्भाषण कर सकें।
हे हमारे स्वामी! हम निर्बल हैं, तू सबल है; हम प्राणविहीन हैं, तू प्राणाधार चेतना है; हम अभावों से घिरे हैं, तू दाता, रक्षक, शक्तिशाली है।
हे हमारे स्वामी! अपने कृपालु मुखारविन्द की ओर हमें उन्मुख कर, अपनी असीम कृपा से, अपने दिव्य सहभोज में हमें सम्मिलित कर, अपने सर्वोपरि देवदूतों द्वारा हमें सहायता दे और आभालोक के साम्राज्य के पावन जनों के द्वारा हमारी सेवा को स्वीकार कर।
सत्य ही, तू उदार और कृपालु है; उदारताओं का स्वामी है। सत्य ही, तू क्षमाशील और करुणामय है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! हम तेरे सेवक हैं जो भक्तिपूर्वक तेरे पावन मुखड़े की ओर उन्मुख हुए हैं, जिन्होंने इस महिमामय दिवस में तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से स्वयं को अनासक्त कर लिया है। हम इस आध्यात्मिक सभा में, अपने विचारों और चिन्तन में, एक बनकर उपस्थित हुए हैं और मानवजाति के मध्य तेरी वाणी का यशोगान करने के लिये हमारे उद्देश्य एक हो गये हैं। हे स्वामी! हमारे ईश्वर! हमें अपने दिव्य मार्गदर्शन के चिन्ह, मनुष्यों के मध्य अपने उदात्त धर्म की ध्वजाएँ, अपनी सशक्त संविदा के सेवक बना, हे तू हमारे परमोच्च स्वामी ! हमें अपने अब्हा साम्राज्य में अपनी दिव्य एकता की अभिव्यक्तियाँ, और सर्वत्र चमकते दीप्तिमान सितारे बना। स्वामी! हमें अपनी अद्भुत कृपा की विराट तरंगों से तरंगित सागर बनने में हमारी सहायता कर, तेरे सर्वमहिमामय शिखरों से प्रवाहित सरितायें, अपनी दिव्य धर्म के तरूवर पर लगे सुमधुर फल तेरी दिव्य अंगूर-वाटिका में तेरे उदारता की समीरों से झूमते हुए तरूवर बना। हे ईश्वर! हमारी आत्माओं को अपनी दिव्य एकता के छंदों पर आश्रित कर दे, हमारे हृदय तेरी कृपा से आनंदित जिससे कि हम समुद्र की तरंगों के समान एक हो जायें, तेरे देदीप्यमान प्रकाश कि किरणों के समान एक-दूसरे में विलीन हो जायें; कि हमारे विचार, हमारे मत, हमारी अनुभूतियाँ एक वास्तविकता बन जायें, जो सम्पूर्ण विश्व में एकता की भावना को व्यक्त करें। तू कृपालु, उदार, प्रदाता, सर्वशक्तिमान, दयावान, करूणामय है।
स्तुत्य है तू, हे मेरे नाथ! मेरे परमेश्वर! मैं याचना करता हूँ तुझसे, तेरे उस महान नाम के द्वारा जिससे तूने अपने सेवकों को सक्रिय बनाया है और अपने नगरों का निर्माण किया है; तेरी परम श्रेष्ठ उपाधियों के द्वारा और तेरे पावन गुणों के द्वारा मैं याचना करता हूँ तुझसे कि अपने इन सेवकों की सहायता कर ताकि ये तेरी बहुमुखी उदारता की ओर ध्यान केन्द्रित कर तेरी प्रज्ञा के वितानों की ओर उन्मुख हो सकें। उन रोगों को दूर कर जिन्होंने मानवात्माओं को हर दिशा से आक्रांत किया है और सबको अपनी छत्रछाया देने वाले तेरे उस नाम के आश्रय में स्थित स्वर्ग की ओर देखने में बाधा दी है। वह नाम जिसे तूने उस स्वर्ग और इस धरती पर विद्यमान सभी के लिये नामों का सम्राट होने का विधान किया है। तू जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ है, तेरे हाथों में सभी नामों का साम्राज्य है, तेरे अतिरिक्त कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है, सामर्थ्यशाली, प्रज्ञामय।
मैं एक दीन-हीन प्राणी हूँ। हे मेरे नाथ, मैं तेरी सम्पदाओं से जुड़ा हूँ। मैं रुग्ण हूँ, मैं तेरी आरोग्यदायी शक्ति की डोर को कस कर पकड़े हुए हूँ, मुझे सभी ओर से घेरे हुए इन रोगों से मुक्त कर और मुझे अपनी अनुकम्पा और दया के जल से पूरी तरह से निर्मल कर दे। अपनी क्षमाशीलता और अक्षय सम्पदाओं के द्वारा मुझे अपने अतिरिक्त अन्य सबकी आसक्ति से छुटकारा दे। तेरी जैसी इच्छा हो वैसा करने में और जिससे तुझे प्रसन्नता हो उसे पूरा करने में सहायता दे। तू सत्य ही, इस जीवन का और अगले जीवन का स्वामी है। तू सत्य ही सदा क्षमाशील, परम दयामय है।
हे ईश्वर, मेरे परमेश्वर! मैं तुझसे तेरी आरोग्यदायी शक्ति के उस महासिंधु के नाम पर और तेरे अनुग्रह के उस दिवानक्षत्र के प्रभापुंजों के नाम पर और तेरे उस नाम पर जिसके द्वारा तूने अपने सेवकों को अपने अधीन किया है और तेरे उस परमोच्च शब्द की सर्वव्यापी शक्ति के नाम पर, और तेरी इस परम उदात्त लेखनी की शक्ति के नाम पर और तेरी उस दया के नाम पर जो स्वर्ग और धरती पर विद्यमान सब की सृष्टि से पहले उद्भूत हुई थी, तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे अपनी कृपा के जल से सभी व्याधियों, रोगों, सभी निर्बलता और दुर्बलता से मुक्त कर दे।
देखता है तू, हे मेरे स्वामिन्, अपने इस आराधक को तेरी अक्षय सम्पदाओं के द्वार पर राह देखते हुए और तेरी उदारता की डोरी थाम आस लगाये हुए। मैं अनुनय करता हूँ तुझसे कि उसे उन वस्तुओं से वंचित मत कर जिन्हें वह तेरी कृपा के महासिंधु और तेरी स्निग्ध कृपालुता के दिवानक्षत्र से मांगता है।
तू जैसा चाहे करने में सशक्त है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमेश्वर नहीं है, सदा क्षमाशील, परम उदार।
(आरोग्य के लिये जिन प्रार्थनाओं को प्रकट किया गया है, वे शारीरिक और आध्यात्मिक, दोनो प्रकार से निरोग रहने के लिये हैं। इसलिये, आत्मा और शरीर के स्वास्थ्य लाभ के लिये ये प्राथनाएँ की जानी चाहिये।)
तेरा नाम ही मेरा आरोग्य है, हे मेरे ईश्वर! तेरा स्मरण ही मेरी औषधि है। तेरा सामीप्य ही मेरी आशा, तेरा प्रेम ही मेरा सहचर है। मुझ पर तेरी अनुकम्पा ही मेरी निरोगता है और इहलोक तथा परलोक दोनों में मेरी आपद सहायक है। वस्तुतः, तू ही है सर्वप्रदाता, सर्वज्ञ एवं सर्वप्रज्ञ।
Long healing Prayer
वह है रोगनिवारक, वही है परिपूरक सहायक, क्षमाशील, सर्वकरुणामय !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परम महान !
हे निष्ठावान, हे गरिमावान, तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आह्वान करता हूँ तेरा, हे सम्राट, हे उन्नतिदाता, हे न्यायकर्ता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे अनुपम, हे अनन्त, हे एकमेव ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परम प्रशंसित, हे पावन हे सहायक ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, सर्वदर्शी, हे महाप्रज्ञ, हे परम महान ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सौम्य, हे भव्य, हे निर्णायक ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे प्रियतम, हे चिरवांछित, हे परमानन्द ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परम शक्तिमंत, हे प्राणाधर, हे सामर्थ्यवान ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे अधिनायक, हे स्वयंजीवी, हे सर्वज्ञ | तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आह्वान करता हूँ तेरा, हे चेतना, हे प्रकाश, हे परम प्रत्यक्ष ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सर्वसुलभ, हे सर्वज्ञात, हे सर्वनिगूढ़ ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे अगोचर, हे विजेता, हे वरदाता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सर्वशक्तिमंत, हे सहायक, हे आवरणदाता! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे स्वरूपदाता, हे पालनहार, हे संहारकर्ता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे उदीयमान, हे एकत्रकर्ता, हे उन्नायक ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे पूर्णकर्ता, हे अप्रतिबंधित, हे कृपालु ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परोपकारी, हे बंधनकारी, हे सृष्टिकर्ता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परमउदात्त, हे परम सौदंर्य ! तू परम दयालु, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे न्यायशील, हे दयाशील, हे परम उदार ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सर्वबाध्यकारी, हे चिरशाश्वत, हे परम ज्ञाता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे महभव्य , हे युग-प्राचीन, हे महामना ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सुसंरक्षित, हे सच्चिदानन्द, हे मनोवांछित ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सर्वदयालु, हे सर्वकृपालु, हे कल्याणीकारी! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सब केसहायक, हे सबके आहवान ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे प्रकटकर्ता, हे रूद्र, हे परम सौम्य ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे मेरी आत्मा, हे मेरे प्रियमत, हे मेरी आस्था ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे प्यास बुझाने वाले, हे भावातीत प्रभु, हे परम अनमोल ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे महानतम् स्मरण, हे सर्वोत्तम नाम हे प्रचीनतम् मार्ग ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे सर्वाधिक प्रशंसित, हे परम पावन, हे पवित्रम् ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे निबंधक हे परामर्शदाता, हे मुक्तिदाता ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे बन्धु, हे अरोग्यदाता, हे सम्मोहक ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे प्रताप, हे सौन्दर्य, हे परम कृपालु ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे परम विश्वासी, हे सर्वोत्तम प्रेमी, हे आदित्य! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे ज्योतिदाता, हे दिप्तिदाता , हे आनन्द के संवाहक ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे कृपालु प्रभु, हे परम करुणामय, हे परम दयालु ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
आहवान करता हूँ तेरा, हे ध्रुव, हे जीवनधार, हे असित्व-मूल ! तू परिपूरक, तू रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन !
तेरा नाम ही मेरा आरोग्य है, हे मेरे ईश्वर, और तेरा स्मरण ही मेरी औषधि है। तेरा सामीप्य ही मेरी आशा, और तेरा प्रेम ही मेरा सहचर है। मुझ पर तेरी दया ही मेरी निरोगता और इहलोक तथा परलोक दोनों में मेरी सहायक है। सत्य हीः, तू ही है सर्वउदार, सर्वज्ञ एवं सर्वप्रज्ञ।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं तुझसे तेरी आरोग्यदायी शक्ति के महासिंधु के नाम से और तेरे अनुग्रह के दिवानक्षत्र के प्रभापुंजों के नाम से और तेरे नाम से जिसके द्वारा तूने अपने सेवकों को अपने अधीन किया है और तेरे परमोच्च शब्द की सर्वव्यापी शक्ति के नाम से और तेरी परम उदात्त लेखनी की शक्ति के नाम से और तेरी दया के नाम से जो आकाश और धरती पर विद्यमान सबकी सृष्टि से पहले उद्भूत हुई थी, तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे अपनी कृपा के जल से समस्त व्याधियों, रोगों, निर्बलता और दुर्बलता से मुक्त कर दे।
तू देखता है, हे मेरे स्वामी, अपने इस आराधक को तेरी अनुकम्पा के द्वार पर राह देखते हुए और तेरी उदारता की डोरी थाम आस लगाये हुए। मैं अनुनय करता हूँ तुझसे कि उसे उन वस्तुओं से वंचित न कर जिन्हें वह तेरी कृपा के महासिंधु और तेरी स्निग्ध कृपालुता के दिवानक्षत्र से मांगता है।
तू जैसा चाहे वैसा करने में सक्षम है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, सदा क्षमाशील, परम उदार।
हे मेरे ईश्वर! हे मेरे ईश्वर! अपने सेवकों के हृदयों को एक कर दे और उन पर अपना महान उद्देश्य प्रकट कर। जिससे वे तेरे आदेशों का अनुपालन करें और तेरे नियमों पर अटल रहें। हे ईश्वर! तू उनके प्रयासों में उनकी सहायता कर और उन्हें अपनी सेवा करने की शक्ति प्रदान कर। हे ईश्वर! उन्हें उनके ऊपर न छोड़; उनके पगों का, अपने ज्ञान के प्रकाश द्वारा मार्गदर्शन कर और उनके हृदयों को अपने प्रेम से आनंदित कर दे। सत्य ही, तू उनका सहायक और उनका स्वामी है।
वह रोगनिवारक, संतुष्टिदाता, सहायक, सर्वक्षमाशील सर्वकरुणामय है!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे परम महान! हे निष्ठावान, हे गरिमावान, तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सम्राट, हे उन्नत्तिदाता, हे न्यायकर्ता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे अनुपम, हे अनन्त, हे एकमेव! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे अति प्रशंसित, हे पावन, हे सहायक! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वज्ञ, हे महाप्रज्ञ, हे परम महान! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे दयावान, हे भव्य, हे आदेशकर्ता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे प्रियतम्, हे चिरवांछित, हे परमानन्द! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी !
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे परमशक्तिशाली, हे पालनहार, हे सामर्थ्यवान! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे शासक, हे स्वनिर्भर, हे सर्वज्ञ! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे चेतना, हे प्रकाश, हे परम प्रत्यक्ष! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वसुलभ, हे सर्वज्ञात, हे सर्वनिगूढ़! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे अगोचर, हे विजेता, हे वरदाता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे सर्वशक्तिमंत हे सहायक, हे आवरणदाता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे स्वरूपदाता, हे पालनहार, हे संहारकर्ता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे उदीयमान, हे एकत्रकर्ता, हे उन्नायक! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे पूर्णकर्ता, हे अप्रतिबंधित, हे उदार! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे परोपकारी, हे बंधनकारी, हे सृष्टिकर्ता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे उदात्त, हे सौन्दर्यवान, हे परम उदार! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे न्यायकर्ता, हे दयावान, हे उदार! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वसम्मोहक, हे चिरशाश्वत, हे परम ज्ञाता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे महा भव्य, हे युगातीत, हे परम उदार! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सुसंरक्षित, हे आनन्द के स्वामी, हे वांछित! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वदयालु, हे सभी के प्रति संवदेनशील, हे सर्वकल्याणकारी! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सबके आश्रयदाता, हे सबकी शरणस्थली! हे सबके सुरक्षादाता, तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सबके सहायक, हे सबके द्वारा प्रार्थीत, हे सचेतक! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे प्रकटकर्ता, हे विनाशकर्ता, हे सर्व-दयावान! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे तू मेरी आत्मा, हे तू मेरे प्रियतम, हे तू मेरी आस्था! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे प्यासहर्ता, हे ज्ञानातीत स्वामी, हे परम अनमोल! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे महानतम् स्मरण, हे सर्वोत्तम नाम, हे प्राचीनतम् मार्ग! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वाधिक प्रशंसित, हे परम पावन, हे परम पुनीत! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे बंधन मुक्त करने वाले, हे परामर्शदाता, हे मुक्तिदाता! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे मित्र, हे चिकित्सक, हे सम्मोहक! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे महिमा, हे सौन्दर्य, हे उदार! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वाधिक विश्वसनीय, हे सर्वोत्तम प्रेमी, हे प्रभात के स्वामी! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे ज्योतिदाता, हे दीप्तिदाता, हे हर्ष के संवाहक! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे उदारता के स्वामी, हे परम करुणामय, हे परम दयालु! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे अटल, हे जीवन प्रदाता, हे अस्तित्व के मूल! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे सर्वभेदी, हे सर्व द्रष्टा ईश्वर, हे वाणी के स्वामी! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे प्रत्यक्ष, फिर भी अप्रत्यक्ष, हे अदृश्य, फिर भी कीर्तिमान, हे दर्शक जिसकी खोज सभी करते हैं! तू पर्याप्त, तू रोगनिवारक, तू चिरस्थायी, हे तू चिरस्थायी!
मैं आह्वान करता हूँ तेरा हे प्रेमियों के प्राणहर्ता, हे दुष्टों पर कृपालु ईश्वर! हे संतुष्टिदाता।
मैं आह्वान करता हूँ तेरा, हे संतुष्टिदाता, हे रोगनिवारक, तू चिरन्तन, हे तू चिरन्तन!
हे चिरस्थायी, मैं तेरा आह्वान करता हूँ, हे चिरस्थायी! तू सदाचिरस्थायी, हे तू चिस्थायी!
पावन है तू हे मेरे ईश्वर! मैं याचना करता हूँ तुझसे तेरी उदारता के नाम से जिससे कृपा और करुणा के द्वार खोले गये, जिससे शाश्वत सिंहासन पर तेरी पावनता का मंदिर स्थापित हुआ है। मैं तुझसे उस करुणा के नाम से याचना करता हूँ, जिससे तूने अपनी उदारताओं और भेटों के सहभोज में समस्त सृष्टि को आमंत्रित किया था! मैं तुझसे उस अनुग्रह के नाम से याचना करता हूँ, जिस अनुग्रह के कारण तूने उत्तर दिया था ”ऐसा ही हो।“ तूने यह उत्तर दिया, अपने ही ”आत्मस्वरूप“ में धरती और आकाश के समस्त निवासियों की ओर से, तब, जब उषाकाल में तेरी भव्यता और शक्ति प्रकट हुई और तेरे साम्राज्य की सत्ता प्रत्यक्ष की गई। तेरे इन परम सौन्दर्यवान नामों से मैं तुझसे पुनः याचना करता हूँ, तेरे इन उदात्त गुणों के नाम से, तेरे परम उदात्त स्मरण और तेरे निर्मल सौंदर्य के नाम से, तेरे निगूढ़ शिविर के नाम से, निगूढ़ आलोक और तेरे उस ’नाम‘ के नाम से जो, हर सुबह, हर शाम कष्टों के परिधान से लिपटा रहा, कि इस आशीर्वादित पाती के संवाहक की तू रक्षा कर और उसकी भी रक्षा कर जो इसका पाठ करे, जो इसे प्राप्त करे और जो उस घर से गुजरे जहाँ यह पाती रखी गई हो। इसके माध्यम से तू प्रत्येक रोगी को आरोग्य प्रदान कर, रूग्ण-विपन्न का हर संकट, हर व्यथा से बचा, प्रत्येक अनचाही पीड़ा, दुःख से त्राण दे, उनका मार्गदर्शन कर, जो तेरा मार्गदर्शन चाहते हैं, चाहते हैं पथ तेरी क्षमा का।
तू सत्य ही शक्तिशाली, सर्व-परिपूरक, रोगनिवारक, संरक्षक, प्रदाता, सर्वदयालु, सर्वउदार, सर्वकृपालु है।
हे मेरे ईश्वर! हे मेरे ईश्वर! अपने सेवकों के हृदयों को एक कर दे और उन पर अपना महान उद्देश्य प्रकट कर। जिससे वे तेरे आदेशों का अनुपालन करें और तेरे नियमों पर अटल रहें। हे ईश्वर! तू उनके प्रयासों में उनकी सहायता कर और उन्हें अपनी सेवा करने की शक्ति प्रदान कर। हे ईश्वर! उन्हें उनके ऊपर न छोड़; उनके पगों का, अपने ज्ञान के प्रकाश द्वारा मार्गदर्शन कर और उनके हृदयों को अपने प्रेम से आनंदित कर दे। सत्य ही, तू उनका सहायक और उनका स्वामी है।
ईश्वर करे, कि एकता की ज्योति सारी पृथ्वी पर छा जाये और ”साम्राज्य ईश्वर का है“ यह मुहर इसके समस्त जनों के ललाट पर अंकित हो जाये।
स्तुति हो तेरी, हे ईश्वर कि तूने मानवजाति के प्रति अपने प्रेम को प्रकट रूप दिया है। हे तू जो हमारा जीवन और हमारी ज्योति है, अपने पथ में अपने सेवकों का मार्गदर्शन कर और हमें तुझमें समृद्ध बना और तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से हमें मुक्त रख।
हे ईश्वर! हमें अपनी एकता की शिक्षा दे और अपनी एकता की हमसे अनुभूति करा जिससे कि हम तेरे अतिरिक्त अन्य कुछ न देखें, तू दयालु और उदारता का स्वामी है।
हे ईश्वर! अपने प्रियजनों के हृदयों में अपने प्रेम की ज्वाला प्रज्ज्वलित कर, जिससे कि वे तेरे अतिरिक्त, अन्य सभी विचारों को भस्मसात कर दें।
हे ईश्वर! हमारे सम्मुख अपनी परमोच्च अनन्तता को प्रकट कर, कि तू सदैव रहा है और सदा रहेगा और तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है। सत्य ही तुझ में हम विश्रांति और शक्ति पायेंगे।
हे तू, जो सम्राटों का सम्राट है! मैं साक्षी देता हूँ कि तू ही समस्त सृष्टि का स्वामी है और समस्त दृश्य-अदृश्य प्राणियों का शिक्षक है। मैं साक्षी देता हूँ कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तेरी शक्ति के अधीन है और पृथ्वी की समस्त शक्तियाँ भी तुझे प्रकंपित नहीं कर सकतीं और न ही तेरे उद्देश्य को पूरा करने में सम्राटों और राष्ट्रों की शक्ति तुझे रोक सकती है। मैं स्वीकार करता हूँ कि सम्पूर्ण विश्व को नवजीवन देने और लोगों के बीच एकता की स्थापना करने तथा उनकी मुक्ति के अतिरिक्त तेरी कोई और इच्छा नहीं है।
हे दयालु ईश्वर! तूने समस्त मानवजाति को एक ही मूल कुटुम्ब से उत्पन्न किया है। तूने ऐसा निश्चित किया है कि सभी मनुष्य एक ही कुटुम्बी हैं। तेरे पवित्र सान्निध्य में सब तेरे ही सेवक हैं और समस्त मानवजाति तेरी ही छत्रछाया में आश्रित है। सब तेरी उदारताओं के सहभोज में एकत्रित हैं। सब तेरे मंगल विधान की ज्योति से प्रकाशित हैं।
हे ईश्वर ! तू सब पर कृपालु है, तूने सबको आजीविका दी है, सबको आश्रय दिया है, सबको जीवन प्रदान किया है; तूने सबको प्रतिभा और गुणों से सम्पन्न किया है; सब तेरी कृपा के महासागर में निमग्न हैं। हे तू दयालु स्वामी ! सबको एक कर दे। धर्मों को सहमत होने दे, राष्ट्रों को एक राष्ट्र बना दे, ताकि वे सब परस्पर एक-दूसरे को, एक ही परिवार के सदस्यों की भाँति देखें और सम्पूर्ण वसुधा को एक ही कुटुम्ब मानें। वे सब मिलकर सद्भाव के वातावरण में रहें। हे ईश्वर! मानवजाति की एकता का ध्वजा उन्नत कर दे। हे ईश्वर! परम् महान शांति स्थापित कर। सबके हृदयों को मिलाकर एक कर दे। हे तू दयालु पिता, हे ईश्वर, अपनी स्नेह-सुरभि से हमारे हृदयों को उल्लास से भर दे। अपने मार्गदर्शन के प्रकाश द्वारा हमारे नेत्रों को प्रदीप्त कर। अपने शब्दों के स्वरमाधुर्य से हमारे कानों को झंकृत कर दे और अपने मंगल विधान के संरक्षण के दुर्ग में आश्रय प्रदान कर। तू सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान्, क्षमावंत, मानवजाति की दोषों को अनदेखा करने वाला है।
हे स्वामी, मेरे ईश्वर, तू महिमावंत है! मैं याचना करता हूँ तुझसे तेरे प्रियजनों के नाम से और तेरे विश्वासपात्रों के नाम से और उसके नाम से जिन्हें तूने अपने आदेश से प्रकटकर्ता और अपने दिव्य संदेशवाहकों की मुहर नियत किया है, कि अपने स्मरण को मेरा सहचर, अपने प्रेम को मेरी आकांक्षा, अपने मुखारविन्द को मेरा लक्ष्य, अपने नाम को मेरा मार्गदर्शक दीपक, अपनी सर्वोपरि इच्छा को मेरी कामना और अपनी प्रसन्नता को मेरा आनन्द बना दे।
हे मेरे ईश्वर! मैं पतित हूँ, और तू सदा क्षमाशील है। जैसे ही मैंने तुझे पहचाना, मैं तेरी स्नेहमयी कृपा के परमोच्च प्रांगण तक पहुँचने के लिये शीघ्रता से बढ़ चला। मेरे स्वामी, मुझ क्षमा कर, मेरे पाप कर्म ने मुझे तेरी सुप्रसन्नता की राह पर चलने और तेरी एकमेवता के महासिंधु के तट तक पहुँचने से बाधा पहुँचायी है।
हे मेरे स्वामी! ऐसा कोई भी नहीं है जो मुझसे कृपापूर्ण व्यवहार करे, या जिसकी ओर मैं उन्मुख हो सकूँ। ऐसा कोई नहीं है जो मुझ पर ऐसी करुणा करे कि मैं उसकी दया के लिये आतुर होऊँ। मैं तेरी कृपा की निकटता की याचना करता हूँ, मुझे त्याग मत। अपनी उदारता और अपने आशीषों के प्रवाहों को मुझ तक आने से न रोक। हे मेरे स्वामी, मेरे लिये, उसका विधान कर जिसका विधान तूने अपने चुने हुये प्रियजनो के लिये किया है और मेरे लिये वह अंकित कर जो तूने अपने प्रियजनों के लिये अंकित किया है। मेरी दृष्टि समस्त कालों में, हर समय तेरे अनुग्रहमय मंगल विधान के क्षितिज पर टिकी रही है और मेरे नेत्र तेरी करुणामयी कृपा के प्रांगण की ओर निहारते रहे हैं। मुझसे वैसा ही व्यवहार कर, जो तेरे लिये शोभनीय हो। वह जिसकी सहायता की याचना समस्त मानव करते हैं, शक्ति का ईश्वर, महिमाशली ईश्वर, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है।
हे स्वामी, मेरे ईश्वर तू महिमावंत है! जितनी बार भी मैं तेरा नाम लेने का प्रयत्न करता हूँ, मैं अपने प्रबल पापों और तेरी इच्छा के विरूद्ध किये गये अपने कर्मों को याद करता हूँ मैं अपने आपको तेरी स्तुति कर पाने में शक्तिहीन पाता हूँ। लेकिन तेरी अनुकम्पा में मेरा सम्पूर्ण भरोसा, तुझमें मेरी आशा को पुनर्जीवन देता है और मेरा यह भरोसा कि कुछ भी हो जाये तू कृपा ही देगा, मुझे तेरी ओर उन्मुख होने, तेरी स्तुति करने में और याचना भरे हाथ तेरी ओर फैलाने में समर्थ बनाता है। हे मेरे स्वामी! मैं तेरी उस दया की याचना करता हूँ जो समस्त सृजित वस्तुओं से श्रेष्ठतर है और जिसके साक्षी वे सभी लोग हैं जो तेरे नाम के महासिंधु की अतल गहराइयों में निमग्न हैं। हे मेरे स्वामी! मुझे मेरे ऊपर ही न छोड़, क्योंकि मेरा मन दुष्कर्मों में प्रवृत्त हो जाता है। अपनी सुरक्षा के दुर्ग में मुझे शरण दे, मेरी रक्षा कर! मैं वह हूँ, हे मेरे ईश्वर! जो तेरी इच्छा के अनुरूप चलने की कामना रखता है, मैंने उसका ही चयन किया है जो तेरे विधानों और तेरी इच्छा के अनुरूप है। मैंने वही चाहा है जो तेरे आदेश और निर्णय के प्रतीक है। हे ईश्वर! मेरे ऊपर इतनी अनुकम्पा कर; हे तू जो उन हृदयों का प्रिय है, जो तेरी कामना करते हैं ! तेरे धर्म के प्रकटीकरण, तेरी प्रेरणा के दिवास्रोत, तेरी भव्यता के प्रवक्ता, तेरे ज्ञान के कोषागार के नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि अपने पावन निवास से मुझे वंचित दूर न कर, अपने मंदिर और मण्डप वितान से मुझे दूर न रख। वर दे, हे मेरे स्वामी! कि तुम्हारे गरिमामय प्रांगण तक पहुँच पाऊँ, उसकी परिक्रमा करूँ और तेरे द्वार पर विनम्र खड़ा रह सकूँ।
तू वह है, जिसकी शक्ति शाश्वत है। तेरे ज्ञान से परे कुछ भी नहीं हैं। तू सत्य ही शक्ति का ईश्वर, महिमा और प्रज्ञा का ईश्वर है। ईश्वर की स्तुति हो, जो समस्त लोकों का स्वामी है।
तेरे नाम की स्तुति हो, हे मेरे ईश्वर! और समस्त वस्तुओं के ईश्वर! मेरे गौरव, और सभी वस्तुओं के गौरव! मेरी कामना और समस्त वस्तुओं की कामना! मेरी शक्ति और समस्त वस्तुओं की शक्ति! मेरे सम्राट, और समस्त वस्तुओं के सम्राट! मेरे स्वामी और समस्त वस्तुओें के स्वामी! मेरे लक्ष्य और समस्त वस्तुओं के लक्ष्य! मुझे गति देने वाले और समस्त वस्तुओं के गतिदाता!
मैं तुझसे याचना करता हूँ कि अपनी मृदुल कृपा के महासिंधु से मुझे वंचित नहीं रख और न ही अपनी निकटता के तटों से अति दूर ही रख। तेरे अतिरिक्त मुझे कुछ भी लाभ नहीं देता है। तेरी समीपता से बढ़कर और किसी से अन्य कुछ प्राप्य नहीं है। मैं विनती करता हूँ तुझसे तेरी विपुल समृद्धि के नाम से, जिसके द्वारा तू स्वयं को छोडकर सब कुछ दान कर देता है, कि मुझको उनमें गिन जिन्होंने अपना मुखड़ा तेरी ओर कर लिया है और तेरी सेवा में उठ खड़े हुए हैं। हे मेरे स्वामी, अपने सेवकों और अपनी सेविकाओं को क्षमा का दान दे। तू सदा क्षमाशील, और परम कृपालु है !
हे ईश्वर, मेरे स्वामी! अपनी कृपा के माध्यम से उन सबसे हमारी रक्षा कर जो तेरे लिये घृणित है और हमें कृपापूर्वक वह प्रदान कर जो तेरे लिये शोभनीय हो। हमें अपनी उदारता का और अधिक अंश प्रदान कर और हमें आशीर्वाद प्रदान कर। हमसे जो कुछ भी हुआ है उसके लिये हमें क्षमा कर और हमारे पापों को धो डाल तथा अपनी कृपापूर्ण क्षमाशीलता के माध्यम से हमें क्षमा कर। वस्तुतः तू सर्वोदात्त, स्वयंजीवी है।
तेरा प्रेममय विधान धरती और आकाश में समस्त सृजित वस्तुओं को घेरे हुए है और तेरी क्षमा समस्त सृष्टि को पार कर गई है। प्रभुसत्ता तेरी है; तेरे ही हाथ में सृजन एवं प्रकटीकरण के साम्राज्य हैं; अपने हाथ में तू समस्त सृजित वस्तुओं को धारण किये हुए है तथा तेरी ही मुट्ठी में क्षमाशीलता के नियत परिमाण कैद हैं। अपने सेवकों में से तू जिसे चाहे उसे क्षमा कर देता है। वस्तुतः तू सदा क्षमाशील, सर्वप्रेममय है। तेरे ज्ञान से बाहर कुछ भी नहीं रह सकता और ऐसा कुछ भी नहीं है जो तुझसे छिपा हो।
हे ईश्वर, मेरे स्वामी! अपनी शक्ति के सामर्थ्य से हमारी रक्षा कर, हमें अपने उमड़ते हुए अद्भुत महासागर में प्रवेश करा और हमें वह प्रदान कर जो तेरे लिये अति प्रिय हो।
तू परम शासक, बलशाली, कर्ता, उदात्त, सर्वप्रेममय है!
हे स्वामी, तेरी स्तुति हो। हमारे अपने पापों को क्षमा कर दे, हम पर दया कर और अपने पास वापस लौटने में हमारी सहायता कर। हमें, अपने अतिरिक्त किसी अन्य पर भरोसा न करने दे और अपनी उदारता के माध्यम से, कृपापूर्वक हमें वह प्रदान कर जो तुझे प्रिय है, जो तेरी इच्छा हो और जो तेरे योग्य हो। उसके पद को उदात्त कर जिसने तुझमें सच्चा विश्वास किया है, तथा अपनी कृपापूर्ण क्षमाशीलता माध्यम से उन्हें क्षमा कर। वस्तुतः तू संकट में सहायक, स्वः-निर्भर है।
मैं तुझसे क्षमा की याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे उल्लेख के अतिरिक्त किसी अन्य उल्लेख के लिये और तेरी प्रशंसा के अतिरिक्त किसी अन्य प्रशंसा के लिये और तेरी निकटता के आनन्द के अतिरिक्त किसी अन्य आनन्द के लिये और तुझसे संलाप के सुख के अतिरिक्त किसी अन्य सुख के लिये और तेरे प्रेम एवं तेरी सुप्रसन्नता के आनन्द के अतिरिक्त किसी अन्य आनन्द के लिये और उन समस्त वस्तुओं के लिये जो मुझसे सम्बद्ध हैं, जिनका तुझसे कोई सम्बन्ध नहीं है, हे तू जो स्वामियों का स्वामी है, वह जो द्वारों के द्वार खोलता है साधन प्रदान करता है।
स्तुति हो तेरी, हे ईश्वर! मैं कैसे तेरा उल्लेख कर सकता हूँ जबकि तू समस्त मानवजाति की प्रशंसा से परे, परम पावन है। महिमामण्डित हो तेरा नाम, हे ईश्वर, तू सम्राट है, अनन्त सत्य है; तू वह जानता है जो धरती और आकाश में है और सभी कुछ तेरी ही ओर वापस लौट जाना है। तूने एक स्पष्ट परिमाण के अनुरूप ईश्वर द्वारा आदेशित प्रकटीकरण को भेजा है। प्रशंसित है तू, हे स्वामी! धरती और आकाश, तथा जो कुछ भी इनके मध्य है, के देवदूतों के माध्यम से तू जिसे चाहे अपने आदेश से विजयी बनाता है। तू प्रभुसत्तासम्पन्न, अनन्त सत्य, अपराजेय शक्ति का स्वामी है।
महिमावंत है तू, हे स्वामी! जो तेरी क्षमा की याचना करते हैं तू अपने ऐसे सेवकों के पापों को सर्वदा क्षमा कर देता है। मेरे पापों को तथा उनके पापों को धो डाल जो भोर के समय में तुझसे क्षमा याचना करते हैं, जो दिन के समय और रात्रि बेला में तुझसे प्रार्थना करते हैं, जिन्हें ईश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी की लालसा नहीं है, जो वह सब कुछ अर्पित कर देते हैं जो ईश्वर ने उन्हें कृपापूर्वक प्रदान किया है, जो प्रातः काल में तथा संध्या बेला में तेरी स्तुति करते हैं और जो अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह नहीं हैं। हे ईश्वर, तेरे नाम की स्तुति हो।
हे तू क्षमाशील स्वामी ! तू ही अपने इन सभी सेवकों की शरण है। तू ही रहस्यों का ज्ञाता है, सर्वज्ञानी ! हम बेसहारे हैं, तू ही शक्तिमान है, सर्वसमर्थ ! हम पतित हैं, तू पतितपावन है, हे कृपालु, हे दयालु स्वामी ! हमारे दोषों की ओर न देख, हमें अपनी दया और कृपा दे। हमारे दोष अनेक हैं, तू असीम दया का सागर है; हम दुर्बल हैं, दुःख से भरे हैं, तू सदासहाय है! हमें शक्ति दे, समर्थ बना। हमें इस योग्य बना कि हम तेरी पावन देहरी तक पहुँच सकें। हमारे हृदय प्रकाशित कर दे, हमें देखने योग्य दृष्टि प्रदान कर, सुनने योग्य कान दे, मृतप्राय जनों को पुनर्जीवित कर, रोगियों को रोग मुक्त कर। निर्धन को धन, भयाक्रान्तों को शांति और सुरक्षा दे। अपने साम्राज्य में हमें स्वीकार कर, अपने मार्गदर्शन से हमारे अन्तर्मन को आलोकित कर दे। तू बलशाली और सर्वसमर्थ है। तू ही उदार और दयालु है।
हे सर्वषक्तिमान परमात्मा !
मैं पापी हूँ किन्तु तू करुणामय है, मैं भूलों के अंधकार में भटक रहा हूँ, किन्तु तू क्षमाशीलता का प्रकाश है। हे तू उदार प्रभु मेरे पापों को क्षमा कर दे। मुझे अपनी निधियाँ प्रदान कर। मेरे दोषों को देखा-अनदेखा कर दे। मुझे शरण दे। अपने धैर्य के व्योम में मुझ डुबो ले तथा मुझे समस्त व्याधियों तथा रोगों से छुटकारा प्रदान कर। मुझे शुद्धि तथा पवित्रता प्रदान कर तथा पावन धारा में से अपना भाग ग्रहण करने दे ताकि खेद एवं शोक लुप्त हो जाये। हर्ष तथा आनन्द का आगमन हो जाये। और स्वीकार कर कि भय का स्थान साहस ले ले। निसंशय तू क्षमाशील है, अत्यंत करुणानिधान है और तू ही उदारस्वरूप एवं प्राण दाता है
ईश्वर के समस्त मित्रों को...यथासम्भव दान देना चाहिये, उनके द्वारा समर्पित राशि, चाहे कितनी भी अल्प क्यों न हो। ईश्वर किसी भी आत्मा पर उसकी क्षमता से अधिक भार नहीं डालता। ऐसे दान सभी केन्द्रों एवं समस्त अनुयायियों से आने चाहिये...”हे ईश्वर के मित्रों ! तुम आश्वस्त रहो कि इन योगदानों के बदले तुम्हारी खेती-बाड़ी, तुम्हारे उद्योग और व्यापार को सुंदर उपहारों और दानों का कई गुना आशीर्वाद प्राप्त होगा। निःसंदेह जो सद्कर्म करता है, पुरस्कार में वह दस गुना प्राप्त करेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवंत स्वामी उन्हें अत्यधिक सम्पुष्टि प्रदान करता है, जो उसके पथ में अपनी सम्पदा व्यय करते हैं।“
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! अपने सच्चे प्रेमियों के मस्तक को तेजवान बना और निश्चित विजय के देवदूतों के समूहों से उन्हें सहारा दे। अपने सीधे पथ पर उनके पगों को अडिग बना दे, और अपनी पुरातन उदारता से उनके समक्ष अपने आशीषों के द्वार खोल दे, क्योंकि जो कुछ तूने उन्हें प्रदान किया है, वे तेरे मार्ग में व्यय करते हैं, तेरे धर्म की रक्षा करते हैं, तेरे स्मरण में विश्वास रखते हैं, तेरे प्रेम के निमित्त अपने हृदयों को अप्रित करते हैं, और जो कुछ उनके पास है, उसे वे तेरे सौंदर्य की आराधना और तुझे प्रसन्न करने की विधियों की खोज में देने से इन्कार नहीं करते।
हे मेरे स्वामी! उनके लिए एक प्रचुर अंश, एक नियत पुरस्कार और निश्चित पारितोषिक का विधान कर।
वस्तुतः तू ही पालनहार, सहायक, अतिशय दाता, उदार, प्रदात-प्रदाता है।
गर्भवती माताओं के लिये
हे सर्वकृपालु की सेविकाओं! बच्चों की प्रारम्भिक अवस्था से ही उन्हें प्रशिक्षित करने का उत्तरदायित्व तुम पर है और इसमें तनिक भी लापरवाही बरतने की अनुमति नहीं दी गई है।
हे ईश्वर! मेरे स्वामी! तूने अपनी इस समर्पित सेविका पर जो अनुग्रह किया है उसके लिये मैं तेरे प्रति प्रशंसा और आभार प्रकट करती हूँ। यह तेरी दासी तेरी प्रार्थना और अभ्यर्थना करती है, क्योंकि सत्य ही तूने अपने प्रत्यक्ष साम्राज्य की ओर मार्गदर्शन किया है, इस क्षणभंगुर जगत में अपने आह्वान के योग्य बनाया है और उन चिन्हों के दर्शन कराये हैं जो समस्त पदार्थों पर तेरी विजय के प्रमाण प्रकट करते हैं।
हे स्वामी! जो मेरी कोख में है उसे मैं तुझे समर्पित करती हूँ। अपनी कृपा और उदारता से उसे अपने साम्राज्य में प्रशंसा योग्य और सौभाग्यशाली संतान बना, ताकि तेरी शिक्षाओं के अधीन वह विकास करे। वस्तुतः तू कृपालु है, निश्चय ही तू महान अनुग्रहों का स्वामी है।
हे मेरे ईश्वर! मैं तेरी कृपा से इस प्रभात वेला में जाग उठा हूँ, और तुझ में ही अपना सम्पूर्ण विश्वास अर्पित कर अपना निवास छोड़ा है और स्वयं को तेरे संरक्षण में सौंप दिया है। अपनी दया के आकाश से तू मुझ पर अपने आशीष भेज और मुझे अपने घर सुरक्षित लौटने में वैसे ही समर्थ बना, जैसे तूने मुझे घर से प्रस्थान करते समय, अपनी सुरक्षा में रखकर, अपनी ओर उन्मुख होने के योग्य बनाया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, एक और केवल एक, अतुलनीय, सर्वज्ञ तथा सर्वप्रज्ञ।
(यह पाती बाब और बहाउल्लाह की सामधियों पर पढ़ी जाती है। उनकी बरसी पर भी अक्सर इस पाती का पाठ किया जाता है।)
हे तू भव्यता के प्रकटावतार, अनन्तता के सम्राट! स्वर्ग और धरा पर जो कुछ भी है उन सबका तू स्वामी है; तुझ पर ही आश्रित है वह कीर्ति, जो तेरी दिव्य आत्मा से उदित हुई है और वह गरिमा जो, तेरे दीप्तिमान सौन्दर्य से चमकी है। मैं साक्षी देता हूँ कि तुझसे ही ईश्वर का प्रभुत्व और साम्राज्य, उसकी भव्यता और उसकी शोभा प्रकट हुई थी और चिरंतन आभा के दिवा नक्षत्रों ने अपनी कांति बिखेरी थी, तेरी अकाट्य आज्ञा के स्वर्ग में और सृष्टि के क्षितिज पर अगोचर का सौन्दर्य चमका है। मैं पुनः साक्षी देता हूँ कि तेरी लेखनी के स्पंदन मात्र से तेरा विधान, ’तेरा अस्तित्व हो’, प्रभावशाली हो उठा और ईश्वर के गूढ़ रहस्य प्रकट हो गये, सभी चीज़ों को अस्तित्व प्रदान किया गया और सभी प्रकटीकरण पृथ्वी पर भेजे गये हैं।
मैं यह भी साक्षी देता हूँ कि तेरे सौन्दर्य के द्वारा तीर्थ यात्रा की पाती ही उस आराध्य का सौन्दर्य अनावृत हुआ है और तेरे मुखड़े से ही उस ईष्ट का मुखड़ा प्रभासित हुआ है। अपने एक शब्द से तूने अपनी सम्पूर्ण सृष्टि के बीच अपना यह निर्णय सुना दिया है कि जो भी तेरे भक्त होंगे वे गरिमा के शिखर पर पहुँचेंगे और जो नास्तिक होंगे वे पतन की गर्त में गिरेंगे।
मैं साक्षी देता हूँ कि जिसने तुझे जाना है, उसने ईश्वर को जाना है और जिसे तेरा सान्निध्य मिला है उसे परमात्मा का सान्निध्य मिला है। सौभाग्य होगा उसका जिसने तुझमें और तेरे चिन्हों में विश्वास किया है, और तेरी सम्प्रभुता के समक्ष नत हुआ है और तुझसे मिलकर जिसका गौरव बढ़ा है और जिसे तेरी कृपा के आनन्द की अनुभूति हुई है, और जिसने तेरी परिक्रमा की है, और तेरे सिंहासन के समक्ष जो खड़ा है। दुर्भाग्य होगा उसका, जिसने तेरे मार्ग का उल्लंघन किया है और तुझे अस्वीकार किया है, और तेरे चिन्हों को नकारा है और तेरी सम्प्रभुता को चुनौती दी है, और तेरे विरोध में उठ खड़ा हुआ है और तरे मुखड़े के समक्ष अपना अहंकार जतलाया है, और तेरे प्रमाणों का खण्डन किया है और जो तेरे शासन और साम्राज्य से दूर भाग गया है और जिनकी गिनती उन अविश्वासियों में हुई है जिनके नाम तेरे आदेश की उँगलियों से तेरी पवित्र पातियों में अंकित हुए हैं। अतः, हे मेरे परमेश्वर, मेरे प्रियतम्! अपनी कृपा और दया की दाहिनी भुजा से मुझ पर अपने अनुग्रह के पावन समीर प्रवाहित कर कि वह मुझे स्वयं मुझसे और संसार से दूर खींच कर, तेरी निकटता और सान्निध्य के दरबारों तक ले जाये। तू जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ है। तू सत्य ही सभी वस्तुओं से सर्वोपरि रहा है।
परमेश्वर का स्मरण और उसकी स्तुति, परमेश्वर का तेज और उसकी आभा तुझ पर विराजे; हे तू, जो उसका सौन्दर्य है। मैं साक्षी देता हूँ कि सृष्टि की दृष्टि ने तुझ जैसा अत्याचार-पीड़ित कभी नहीं देखा होगा; अपने जीवन के प्रत्येक दिन तू विपदाओं के महासिंधु के तल में डूबा रहा। एक समय तू ज़ंजीरों और बेड़ियों से जकड़ा था, दूसरे समय तुझे शत्रुओं की तलवारों ने धमकाया, फिर भी, बावजूद इन सबके, तूने मनुष्य को पालन करने के लिये वे विधान दिये जो सर्वज्ञ, सर्वप्रज्ञ के द्वारा तुझकों मिले थे।
ऐसा हो जाये कि मेरी चेतना उन यातनाओं की बलि चढ़ जाये, जो तूने सही और मेरी आत्मा उन तीर्थ यात्रा की पाती कष्टों को भेंट चढ़ जाये, जो तूने भोगें हैं। मैं परमेश्वर से विनती करता हूँ तेरे और उन सबके नाम पर, जिनके मुखड़े, तेरे मुखड़े के प्रकाश से प्रकाशित हुए हैं और जिन्होंने तेरे प्रेम के वशीभूत आदेशित होकर सभी आज्ञाओं का अनुपालन किया है, कि तू अपने और अपने प्राणियों के बीच का पर्दा हटा दे, और मुझे इहलोक और परलोक के शुभमंगल का दान दे। तू, सत्य ही, सर्वशक्तिमान, सर्वप्रशंसित सर्वगरिमामय, सर्वक्षमाशील, सर्वदयालु है।
हे मेरे स्वामी, मेरे प्रभु! जब तक तेरा परम महान नाम रहे और तेरा परम पावन धर्म रहे तू अपने आशीष इस दिव्य तरूवर और इसकी शाखाओं, और इसकी डालियों और इसकी पत्तियों और इसकी तनाओं और इसकी प्रशाखाओं को देता रह। आक्रमणकारी के षड़यंत्रों और विपदा के तूफानों से इसकी रक्षा कर। सत्य ही तू सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिशाली है। हे मेरे स्वामिन! मेरे परमात्मन्, तू अपने सेवकों एवं सेविकाओं को भी आशीष दे जिन्हें तेरा सान्निध्य प्राप्त हुआ है। सत्यमेव, तू सर्वकृपालु है, जिसकी कृपा अनन्त है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सदा क्षमाशील, परम उदार।
यह प्रार्थना अब्दुल-बहा द्वारा प्रकट की गई है और उनकी समाधि पर पढ़ी जाती है। यह व्यक्तिगत प्रार्थना के रूप में भी प्रयुक्त की जाती है।
”...जो भी इस प्रार्थना को गहन भक्ति और विनम्रता से पढ़ेगा वह इस सेवक के हृदय को प्रसन्नता, आनन्द और उल्लास प्रदान करेगा,...यह साक्षात् उससे मिलन के समान होगा।“
वह सर्व-महिमावान है!
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! दीन और अश्रुपूर्ण मैं अपने याचक हाथ तेरी ओर उठाये हूँ और अपना मुखड़ा तेरी देहरी की उस धूल से मंडित करता हूं, जो ज्ञानवानों के ज्ञान और उन सबकी स्तुति से परे है, जो तेरा महिमागान करते हैं। अपने द्वार पर खड़े अपने दीन और विनीत सेवक को दयापूर्वक देख, उस पर अपने करुणामय नेत्रों की दयादृष्टि डाल और अपनी अनन्त कृपा के महासागर में उसे निमग्न कर दे।
स्वामी! तेरा यह तुच्छ और निम्न सेवक, तेरे वशीभूत और तुझसे याचनारत तेरे हाथों में बंदी, उत्साहपूर्वक तुझे प्रार्थनारत, तुझमें आस्थावान, तेरे सम्मुख अश्रूपूर्ण, तेरा आह्वानकर्ता और तुझसे विनती करता हुआ कह रहा है:
हे स्वामी, मेरे ईश्वर! मुझे अपने प्रियजनों की सेवा करने की कृपा प्रदान कर, अपने प्रति मेरे सेवाभाव को दृढ़ कर, अपनी पावनता के प्रांगण में, आराधना और प्रार्थना के प्रकाश से मेरे ललाट को आलोकित कर दे, और अपनी महिमा के साम्राज्य की प्रार्थना की ज्योति प्रदीप्त कर दे। अपने दिव्य प्रवेश द्वार पर स्वार्थविहीन रहने में मेरी सहायता कर और अपनी पावन परिधि में समस्त वस्तुओं से अनासक्त होने में मुझे समर्थ बना। स्वामी! निःस्वार्थता के पात्र से मुझे पान करा, और इसका ही परिधान पहना और इसके सागर में निमग्न कर दे। मुझे अपने प्रियजनों के मार्ग की धूल बना, और मुझे ऐसा आशीष दे कि मैं, अपनी आत्मा को उस धरा के लिये बलिदान कर सकूँ जो तेरी राह में तेरे चुने हुये जनों के पगों से सम्मानित हुई, हे सर्वोच्च महिमा के स्वामी।
इस प्रार्थना के द्वारा तेरा यह सेवक दिन-रात तेरा आह्वान करता है, इसके हृदय की अभिलाषा पूर्ण कर दे, हे स्वामी! इसके हृदय को प्रकाशित कर दे, इसके अंतर्मन को आनंदित कर दे, इसकी ज्योति जला दे, ताकि यह तेरे धर्म और तेरे सेवकों की सेवा कर सके।
तू दाता, दयालु, परम उदार, कृपालु, दयावान, करूणामय है।
महिमावंत हो तेरा नाम, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! तेरी शक्ति के द्वारा, जिसने समस्त सृष्टि को आवृत्त किया है और तेरी उस स्वामित्व के नाम से, जो सम्पूर्ण सृष्टि से परे है और तेरे विवेक में लुप्त उस शब्द के नाम से, जिसके द्वारा तूने आकाश और धरती की सृष्टि की है, मैं याचना करता हूँ, ऐसा वर दे कि तेरे लिये अपने प्रेम में हम दृढ़ रह सकें, तेरी प्रसन्नता के अनुकूल आज्ञा पालन में अडिग बनें, तेरे मुखड़े को निरंतर नेत्रों से निहार सकें और तेरी महिमा की स्तुति कर सकें। हे मेरे ईश्वर ! चहुँओर तेरे प्राणियों के मध्य तेरे नाम के प्रकाश फैलाने और तेरे साम्राज्य में तेरे धर्म की रक्षा करने की हमें शक्ति दे। सदा रहा है तेरा स्वतंत्र अस्तित्व सदा रहा है और तू सदासर्वदा ऐसा ही रहेगा, तेरे प्राणी तेरा स्मरण करें, न करें! तुझको ही मैने अपनी पूरी आस्था समर्पित की है, तेरी ओर ही मैं उन्मुख हुआ हूँ, तेरे प्रेममय विधान की डोर को मैंने दृढ़ता से थाम रखा है और तेरी कृपा की छत्रछाया की ओर मैंने अपने पाँव बढ़ाये हैं। मुझे अपने द्वार के बाहर रख कर निराश मत कर, हे मेरे ईश्वर! अपनी दया मुझसे दूर मत रख, क्योंकि मैं केवल तेरी ही कामना करता हूँ। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, सदा क्षमाशील, सर्वकृपालु। स्तुति हो तेरी हे तू, जो उनका प्रियतम है, जिन्होंने तुझे जाना है।
हे तू, जिसकी निकटता मेरी कामना है, जिसका सान्निध्य मेरी आशा है, जिसका स्मरण मेरी आकांक्षा है, जिसकी महिमा का प्रांगण मेरी मंजिल है, जिसका निवास ही मेरा लक्ष्य है, जिसका नाम मेरा रोग-निवारक है, जिसका प्रेम मेरे हृदय की शक्ति है, जिसकी सेवा मेरी सर्वोच्च अभिलाषा है; मैं तेरे नाम के द्वारा जिसके द्वारा तूने, तुझे पहचानने वालों को अपने ज्ञान की परम उदात्त ऊँचाइयों तक उड़ने में समर्थ बनाया है, और भक्तिपूर्वक तेरी आराधना करने वालों को अपने अनुग्रह की परिधि में पहुँचने की शक्ति दी है, तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे तेरे मुखारविंद की ओर उन्मुख होने में, तुझ पर अपनी दृष्टि स्थिर रखने में, और तेरी महिमा की चर्चा करने में सहायता दे।
मैं वह हूँ, हे मेरे नाथ! जिसने तेरे अतिरिक्त सब कुछ भुला दिया है और जो तेरी कृपा के दिवास्रोत की ओर उन्मुख हो गया है, जिसने तेरे प्रांगण की निकटता पाने की आशा में, तेरे अतिरिक्त अन्य सब का परित्याग कर दिया है। देख मुझे उस आसन की ओर निहारते हुए जो तेरे मुखारबिंद के प्रकाश की भव्यता से प्रकाशमान है। इसलिये, हमारे प्रियतम, मुझ तक वह भेज जो मुझे तेरे धर्म में दृढ़ रहने के योग्य बनाये, जिससे नास्तिकों के संदेह, मुझे तेरी ओर उन्मुख होने में बाधक न बन सकें।
वस्तुतः, तू ही शक्ति का ईश्वर, संकट में सहायक, सर्वप्रतापशाली, सामर्थ्यशाली है!
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं पश्चाताप में तेरी ओर मुड़ा हूँ। वस्तुतः तू ही क्षमादाता, करुणामय है। हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं तेरे पास लौट आया हूँ और सत्य ही, तू ही सदा क्षमाशील, कृपालु है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं तेरी कृपा की डोर से बंध गया हूँ। तेरे ही पास आकाश और धरती की सभी सम्पदाओं का अक्षय भण्डार है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैंने तेरी ओर आने की शीघ्रता की है और सत्य ही, तू ही क्षमा करने वाला और कृपा का स्वामी है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं तेरी कृपा की दिव्य मदिरा का प्यासा हूँ। और सत्य ही तू दाता, कृपालु, सर्वसामर्थ्यवान, सर्वशक्तिशाली है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! मैं साक्षी देता हूँ कि तूने अपना धर्म प्रकट किया है, अपना वचन पूरा किया है और अपनी कृपा के आकाश से उसे अवतरित किया है, जिसने तेरे कृपापात्रों के हृदय तेरी ओर खींच लिये हैं। सौभाग्य होगा उसका जिसने तेरी मजबूत डोर को दृढ़ता से थाम लिया है और तेरे देदीप्यमान परिधान की छोर से जो दृढ़ता से बंधा है।
हे समस्त अस्तित्व के स्वामी, गोचर और अगोचर के सम्राट ! मैं तेरी शक्ति, तेरी भव्यता और तेरी सम्प्रभुता के नाम पर याचना करता हूँ कि अपनी महिमा की लेखनी द्वारा मेरा नाम अपने उन श्रद्धालु भक्तों की श्रेणी में अंकित कर दे, जिन्हें पापियों के लम्बे लेख तेरे मुखारबिंद के प्रकाश की ओर उन्मुख होने से रोक नहीं पाये हैं। हे प्रार्थना सुनने वाले और उसका प्रत्युत्तर देने वाले ईश्वर !
स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर। मेरे परम् प्रियतम! अपने धर्म में मुझे दृढ़ बना और वर दे कि मैं उनमें गिना जाऊँ जिन्होंने तेरी संविदा का उल्लंघन नहीं किया है और न ही अपनी व्यर्थ कल्पना के देवों का अनुसरण किया है। मुझे समर्थ बना कि तेरे सान्निध्य में मैं सत्यतः का दामन थाम सकूँ, अपनी दया का दान दे और मुझे अपने उन सेवकों में शामिल होने दे जो भय नहीं करते, न ही चिन्तातुर होते हैं। मुझे मेरे हाल पर न छोड़, हे ईश्वर, न ही मुझे उसे पहचानने से वंचित कर जो तेरा ही प्रतिरूप है और न ही मुझे उनमें गिन जो तुझसे विमुख हो चुके हैं। हे मेरे ईश्वर! मुझे उनमें गिन जिन्होंने तेरे सौन्दर्य को पहचाना है, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर करने का सौभाग्य प्राप्त किया है और जो अपने समर्पण का एक पल भी सम्पूर्ण सृष्टि के साम्राज्य के बदले देना पसंद नहीं करेंगे। हे ईश्वर, दया कर, विशेषरूप से तब जब तेरी धरती के अधिकांश लोग राह भटक गये हैं, घातक दोषों से भर गये हैं। हे मेरे ईश्वर, मुझे वह दे जो तेरी दृष्टि में शोभनीय है। तू, सत्य ही, सर्वशक्तिशाली, उदार, करुणामय और सदा क्षमाशील है।
वर दे, हे मेरे ईश्वर! कि मैं उनमें न गिना जाऊँ जो कान रहते सुन नहीं पाते, आँख रहते देख नहीं पाते, जिह्वा होते हुए भी मूक बने बैठे हैं और जिनके हृदय कुछ भी समझने में विफल हो गये हैं। हे ईश्वर, मुझे अज्ञानता की अग्नि और स्वार्थी इच्छाओं से मुक्त कर, अपनी सर्वोच्च दया की परिधि में रहने दे और मुझे वह दे जो तूने चुने हुये जनों के लिये निर्धारित किया है। तू जैसा चाहे करने में समर्थ है। सत्य ही तू, संकट में सहायक, स्वयंजीवी है।
तू स्तुत्य और महिमावंत है, हे ईश्वर! तेरी निकटता प्राप्त करने का दिवस शीघ्र आये, ऐसा कर दे। अपने प्रेम और प्रसन्नता की शक्ति से हमारे हृदय उल्लसित कर दे जिससे हम स्वेच्छा से तेरी इच्छा और आदेश के प्रति समर्पित हो सकें, ऐसी दृढ़ता प्रदान कर। वस्तुतः तेरे ज्ञान की परिधि में वह सब हैं, जिनका सृजन तूने किया है और जिनका सृजन तू करेगा। तेरी शक्ति उन सबकी समझ से परे है, जिनको तूने अस्तित्व दिया है और जिन्हें तू अस्तित्व देगा। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, जिसकी आराधना मेरी कामना है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, जो स्तुत्य है। तेरी सुप्रसन्नता के अतिरिक्त मुझे कोई भी प्रिय नहीं है।
वस्तुतः; तू ही सर्वोपरि शासक, परम् सत्य, संकट में सहायक, स्वःनिर्भर है।
हे स्वामी, मेरे ईश्वर्! अपने प्रियजनों को अपने धर्म में अडिग रहने, अपने पथ पर चलने, ईश्वर के धर्म में दृढ़ रहने में सहायता दे। उन्हें अपनी कृपा प्रदान कर कि वे अहंकार और वासना के आघातों को सह सकें और तेरे दिव्य मार्गदर्शन का अनुसरण कर सकें। तू शक्तिशाली, कृपालु, स्वनिर्भर, उदात्त, करुणामय, सर्वसमर्थ, सर्वदयालु है।
दिवंगतों के लिये इस प्रार्थना का पाठ केवल वैसे मृतकों के लिये करें जिनकी उम्र पंद्रह वर्ष से अधिक है। ”यह एकमात्र प्रार्थना है, जो समूह में कही जाती है। यह प्रार्थना एक अनुयायी द्वारा कही जाती है जबकि अन्य सभी जो उस स्थान पर उपस्थित हैं, खड़े रहते हैं। इस प्रार्थना का पाठ करते समय किब्ले की ओर मुँह करना आवश्यक नहीं है।“
हे मेरे ईश्वर! ये तेरा सेवक है और तेरे सेवक का पुत्र है जिसने तुझ पर और तेरे चिन्हों में आस्था रखी है और जो तेरी ओर उन्मुख हुआ है तथा जो तेरे अतिरिक्त अन्य सब कुछ से अनासक्त हो चुका है। तू सत्य ही उन सब से, जो दया करते हैं, परम दयालु हैं।
हे तू, जो मनुष्यों के पापों को क्षमा करता है और उनके दोषों पर पर्दा डालता है, इसके साथ वैसा ही व्यवहार कर, जैसा कि तेरी उदारता के आकाश और तेरी कृपा के महासागर को शोभा देता है। अपनी ज्ञानातीत दया की परिधि में, जो धरती और आकाश की स्थापना से पहले भी विद्यमान थी, इसे प्रवेश दे। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, तू है सदा क्षमाशील; परम उदार !
(इसके बाद महानतम नाम (अल्लाह-हो-अब्हा) अभिवादन का एक बार उच्चारण करने के बाद 19-19 बार दिये गये छंदों का निम्न प्रकार पाठ करें)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर की आराधना करते हैं।
(19 बार)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर के सम्मुख नमन करते हैं।
(19 बार)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर के प्रति आस्थावान हैं।
(19 बार)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर की स्तुति करते हैं।
(19 बार)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।
(19 बार)
अल्लाह-हो-अब्हा (एक बार)
हम सब सत्य ही, ईश्वर के प्रति धैर्यवान हैं ।
(19 बार)
(यदि दिवंगत आत्मा नारी है, तो प्रार्थना करने वाला कहे ”यह तेरी सेविका और तेरी सेविका की पुत्री है“ इत्यादि!)
महिमा हो तेरी, हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! अपनी अनन्त प्रभुसत्ता की शक्ति के सहारे जिसे तूने ऊपर उठाया है उसे गिरने न दे और जिसे तूने अपनी अनन्तता के मण्डप तले प्रवेश के योग्य बनाया है उसे अपने से दूर न रख। हे मेरे ईश्वर! क्या तू उसे अपने से दूर रखेगा, जिसे तूने अपनी प्रभुता की छाया दी है ? हे मेरी आकांक्षा! क्या तू उसे अपने से दूर कर देगा जिसके लिये तू आश्रय रहा है। जिसे तूने ऊपर उठाया है उसे तू नीचे नहीं गिरा सकता, जो तुझे याद करता रहा, क्या तू उसे भुला सकता है?
महिमा हो, सर्व महिमा हो तेरी! तू वह है जो अनन्तकाल से सम्पूर्ण सृष्टि का सम्राट रहा है और रहा है इसका गतिदाता और तू ही सदा रहेगा सभी सृजित वस्तुओं का स्वामी तथा नियंता। तू महिमावंत है, हे मेरे ईश्वर! यदि तू अपने सेवकों पर दया करना छोड़ देगा तो कौन उन पर दया करेगा? यदि तू अपने प्रियजनों को सहायता देना बंद कर देगा तो कौन है दूसरा जो सहायता दे सकेगा?
महिमा हो, सर्व महिमा हो तेरी। तू सत्य से अभीष्ट है और सत्य ही, हम सभी तेरी आराधना करते हैं, तू अपने न्याय में प्रकट है और सत्य ही हम सब इसके साक्षी है औैर सत्य ही, तू अपनी अनुकम्पाओं में प्रिय है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, संकट में सहायक, स्वयंजीवी।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! निश्चय ही तेरा यह सेवक तेरी दिव्य सर्वोच्चता के सम्मुख विनीत, तेरी एकता के द्वार पर विनत है; इसने तुझमें और तेरे छंदों में विश्वास किया, तेरे पावन शब्दों का साक्ष्य दिया है, तेरे प्रेम के प्रकाश से इसका पथ आलोकित हुआ है, तेरे ज्ञान के महासागर की अतल गहराइयों में जो खोया रहा है, जो तेरे पवन-झकोरों की ओर बढ़ा है, जिसने तुझ पर भरोसा किया है, जो तेरी ओर उन्मुख हुआ है, जिसने तेरी आराधना की और जो तेरी क्षमा के लिये आश्वस्त है।
इसने अपना भौतिक देहरूपी चोला छोड़ दिया है और इस चाह के साथ कि तुझसे मिलन होगा, अमरता के साम्राज्य की ओर प्रयाण किया है।
ईश्वर! इसे महिमामण्डित कर, अपनी सर्वोच्च दया के मण्डप तले इसे आश्रय दे, अपने महिमाशाली स्वर्ग में प्रवेश करा और अपनी गुलाब वाटिका में इसके अस्तित्व को सुनिश्चित कर, ताकि रहस्यों के लोक में यह प्रकाश-सिंधु में निमग्न हो जाये।
सत्य ही तू उदार, शक्तिशाली, दाता और क्षमादाता है।
हे मेरे ईश्वर! हे तू पापों को क्षमा करने वाले, उपहारों के प्रदाता, व्याधियों को दूर करने वाले!
सत्य ही, मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू उनके पापों को क्षमा कर दे जो इस भौतिक परिधान को त्याग कर आध्यात्मिक लोक में आरोहण कर गये हैं।
हे मेरे स्वामी! उन्हें सीमा के उल्लंघनों से पवित्र कर दे, उनके दुःखों को दूर कर दे, और उनके अंधकार को प्रकाश में परिवर्तित कर दे। उन्हें आनन्द उद्यान में प्रवेश करा, परम पावन जल से उन्हें स्वच्छ कर दे, और उन्हें अनुमति दे कि वे उच्चतम पर्वत पर तेरी भव्यताओं के दर्शन कर सकें।
(पर्वत, मरुभूमि, समतल, अथवा समुद्र की राह जो कोई भी शिक्षण के उद्देश्य से भ्रमण कर रहा हो, उसे यह प्रार्थना करनी चाहिये।)
हे ईश्वर! हे मेरे ईश्वर! तू मेरी दुर्बलता, दीनता और विनम्रता को देखता है, फिर भी तेरी शक्ति और सामर्थ्य में भरोसा रखते हुए, मैंने तुझमें विश्वास किया है और तेरे सेवकों के मध्य तेरी शिक्षाओं के प्रसार के लिये मैं उठ खड़ा हुआ हूँ।
हे स्वामी, मैं एक पंख टूटा पक्षी हूँ और तेरे असीम अंतरिक्ष में उड़ान भरना चाहता हूँ। तेरी अनुकम्पा और कृपा, तेरी सम्पुष्टि और सहायता के बिना मेरे लिये ऐसा करना भला कैसे सम्भव होगा?
हे ईश्वर! मेरी दुर्बलता पर दया कर और अपनी सामर्थ्य की शक्ति मुझे दान दे। हे स्वामिन्! यदि पावन चेतना के उच्छ्वास सर्वाधिक निर्बल प्राणियों को भी सम्पुष्टि प्रदान कर दें तो वह जो भी चाहेगा प्राप्त कर लेगा, जो भी कामना करेगा उसे पा लेगा। निश्चय ही तूने पहले भी अपने सेवकों की सहायता की है। वे दुर्बलतम् प्राणी थे, तेरे अकिंचन सेवक और धरती पर निवास करने वालों में निरीहतम थे, लेकिन तेरी कृपा और शक्ति के द्वारा उन्होंने उनसे भी ऊँचा स्थान पा लिया, जो मानवजाति के बीच अत्यन्त प्रतापशाली और प्रतिष्ठित माने जाते थे। वे पहले पतंगे समान थे, शाही बाज बन गये, वे पतली जलधारा के समान थे, बन गये समुद्र से विशाल, क्योंकि तेरी कृपा के सहारे ही वे मार्गदर्शन के क्षितिज के जगमगाते सितारे बन गये, अमरता की गुलाब वाटिका के चहकते पंछी बन गये, ज्ञान और विवेक के जंगलों के दहाड़ते सिंह बन गये और महासागरों में तैरते महामत्स्य बन गये।
निश्चय ही तू करुणामय, शक्तिसम्पन्न, सार्मथ्यशाली और दयालुओं में सर्वाधिक दयालु है।
हे तू अतुलनीय ईश्वर! हे तू साम्राज्य के स्वामी! ये आत्माएँ तेरी दिव्य सेना हैं। इनकी सहायता कर और सर्वोच्च देवदूतों द्वारा उन्हें विजयी बना, ताकि उनमें से प्रत्येक एक सैन्य दल के समान बन जाये और ईश्वर के प्रेम और दिव्य शिक्षाओं की ज्योति द्वारा इन देशों पर विजय प्राप्त करे।
हे ईश्वर! तू उनका समर्थक और सहायक बन, और बीहड़ में, पर्वत पर, घाटी में, वनों में, घास के मैदानों को और समुद्रों में तू उनका विश्वासपात्र बन-ताकि वे दिव्य साम्राज्य की शक्ति और पावन चेतना की श्वांस द्वारा ऊँची पुकार लगा सकें।
सत्य ही, तू शक्तिशाली, सामर्थ्यवान और सर्वशक्तिमान है, और तू ही प्रज्ञावंत, सुनने वाला और देखने वाला है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! गुणगान हो तेरा, शत-शत नमन तुझे। तूने ही दिखलाई है राह मुझे उस राजमार्ग की जो सीधा है, किन्तु है बहुत लम्बा पथ; तूने ही इस पथ पर चलने के योग्य बनाया है, मेरी आँखों को नवीन प्रकाश दिया है अपनी आभा का, तूने ही रहस्यों के साम्राज्य से आने वाले पावन पक्षियों के कलरव को सुनने वाले कान दिये हैं और तूने ही न्यायनिष्ठों के मध्य अपने प्रेम से विभोर किया है। हे ईश्वर! अपनी चेतना के उच्छ्वासों से मेरा रोम-रोम को भर दे कि मैं देश-देशान्तर में सम्पूर्ण मानवजाति को तेरे आगमन का शुभ संदेश दे सकूँ, पृथ्वी पर तेरे साम्राज्य की स्थापना की बात बता सकूँ। हे ईश्वर, मैं निर्बल हूँ, अपनी शक्ति और सामर्थ्य से मुझे सबल बना। मैं अक्षम हूँ, अपनी स्तुति और गुणगान करने में मुझे सक्षम बना। मैं अधम हूँ, अपने साम्राज्य में प्रवेश देकर मुझे सम्मानित कर; मैं तुझसे अलग-थलग पड़ गया हूँ, अपनी दयालुता की पावन देहरी तक पहुँचने में मेरी सहायता कर। हे ईश्वर! मुझे एक देदीप्यमान दीपक बना दे, एक जगमगाता हुआ सितारा बना दे, फलों से भरा एक ऐसा वृक्ष बना दे जिसकी शाखाएँ फैलें। सत्य ही, तू शक्तिशाली, बलशाली, और अबाधित है।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! यह एक पंख टूटा पंछी है और इसकी उड़ान बहुत धीमी है....इसकी सहायता कर कि यह समृद्धि और मुक्ति के सर्वोच्च शिखर पर उड़ान भर सके, इस असीम अंतरिक्ष में परम आनन्द और सुख सहित सर्वत्र विचरण कर सके, सभी देशों-प्रदेशों में तेरे सर्वोपरि नाम का मधुरगान गुंजरित कर सके, तेरी पुकार सुन सके और तेरे मार्गदर्शन के संकेतों को समझ सके। हे ईश्वर, मैं अकेला, एकाकी और दीन हूँ। तेरे अतिरिक्त मेरा कोई पालनहार नहीं, अवलम्बन नहीं; तेरे अतिरिक्त कोई और सहारा नहीं है। देवदूतों के समूहों द्वारा मेरी सहायता कर; अपने शब्दों के प्रसार में मुझे विजयी बना और अपने लोगों के बीच तेरे ज्ञान का प्रसार कर सकूँ, मुझे इस योग्य बना। सत्य ही, तू निर्बल का बल; और असहायों का सदा सहाय है। सत्य ही तू शक्तिशाली, बलशाली और अबाधित है।
(ईश्वर की सुरभि का प्रसार करने वालों को प्रत्येक सुबह इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिये।)
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तू देखता है इस निर्बल को, तेरी दिव्य शक्ति की याचना करते हुए, इस निर्धन को, तेरी दैवी निधियों की कामना करते हुए इस प्यासे को, अनन्त जीवन-निर्झरनी की इच्छा लिये हुए इस पीड़ित को, उस आरोग्य की अभ्यर्थना करते हुए, जो तूने अपनी असीम कृपा के द्वारा अपने उच्च साम्राज्य में अपने चुने हुए जनों के लिये नियत की है। हे ईश्वर, तेरे अतिरिक्त मेरा कोई सहायक नहीं, तेरे अतिरिक्त मेरा कोई आश्रय नहीं, तेरे अतिरिक्त मेरा कोई पालनहार नहीं। अपने देवदूतों द्वारा मेरी सहायता कर कि मैं तेरी पावन सुरभि को सर्वत्र फैला सकूँ और देश-देशांतर में तेरे चुने हुए जनों के बीच तेरी शिक्षाओं का प्रसार कर सकूँ। हे मेरे ईश्वर! मुझे अपने सिवा अन्य सबसे अनासक्त होने की शक्ति दे, तेरी कृपा की डोर दृढ़ता से थामे रहूँ, ऐसी भक्ति दे, तेरे धर्म के प्रति पूरी तरह समर्पित रहूँ, ऐसी निष्ठा दे, तेरे प्रेम में समृद्ध और तूने अपने पावन ग्रंथ में जो भी निर्धारित किया है उसका पालन कर सकूँ, ऐसी दृढ़ता दे। सत्य ही, तू शक्तिशाली, सामर्थ्यवान और सर्वसम्पन्न है।
हे मेरे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तेरी यह सेविका, अपना भरोसा तुझ पर रखकर, तेरी ओर उन्मुख हो कर, तुझसे याचना करती हुई तुझे पुकार रही है कि अपनी दिव्य उदारता उस पर बरसा दे, उसके समक्ष अपने आध्यात्मिक रहस्यों को प्रकट कर दे और उस पर अपने ईश्वरत्व का प्रकाश डाल।
हे मेरे स्वामी! मेरे पति की आँखों को देखने की शक्ति प्रदान कर। अपने ज्ञान के प्रकाश से तू उसके हृदय को आनन्दित कर दे, उसके मन को अपने देदीप्यमान सौन्दर्य की ओर आकर्षित कर ले, अपनी सुस्पष्ट भव्यता को उस पर प्रकट करके उसकी चेतना को आनंदित कर दे।
हे मेरे स्वामी! उसकी आँखों से परदा हटा दे, उस पर अपनी प्रचुर उदारताओं की वर्षा कर, अपने प्रेम की मदिरा से उसे मदोन्मत कर दे, उसे अपने देवदूतों में से एक बना दे जो चलते तो इस धरा पर हैं किंतु उनकी आत्माएँ परमोच्च आकाश में उड़ान भरती हैं। उसे तेरे जनो के मध्य तेरी प्रज्ञा के प्रकाश से चमकता हुआ देदीप्यमान दीपक बना दे।
सत्य ही तू अनमोल, सदाप्रदाता, मुक्तहस्त है।
गुणगान हो तेरे नाम का, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! समस्त भू पर अंधियारा छा गया है और सभी राष्ट्रों को दुष्ट शक्तियों ने घेर लिया है। इसमें भी मैं तेरे विवेक को और पाता हूँ तेरे विधान की चमक देखता हूँ।
वे जो तुझसे दूर आवरण में लिपटे हैं, उन्होंने समझ लिया है कि उनमें तेरे प्रकाश को बुझा देने की और तेरी अग्नि को मिटा देने की और तेरी कृपा के पवन झकोरों को रोक लेने की शक्ति है, किन्तु नहीं, तेरी प्रभुता मेरी साक्षी है यदि प्रत्येक विपदा तेरे विवेक और प्रत्येक अग्नि-परीक्षा तेरे मंगल-विधान का संवाहक नहीं बनाई गई होती तो हमारा विरोध करने का साहस कोई भी नहीं दिखाता, भले ही धरती तथा आकाश की समस्त शक्तियाँ हमारे विरूद्ध उठ खड़ी होतीं। यदि मैं तेरे विवेक के अद्भुत रहस्यों को, जो मेरे सम्मुख खुले पड़े हैं, प्रकट कर देता तो तेरे शत्रुओं के साम्राज्य विदीर्ण हो जाते। अतः, गुणगान हो तेरे नाम का, हे मेरे ईश्वर! मैं तुझसे याचना करता हूँ, तेरे परम महान नाम से कि जो तुझसे प्रेम करते हैं, उन्हें अपने उस विधान के चतुर्दिक एकत्र कर जो तेरी इच्छा की कृपा से प्रवाहित हुआ है और उनके लिये वह भेज जो उनके हृदयों को आश्वस्त करे।
तू जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ है। सत्य ही तू संकट में सहायक, स्वयंजीवी है।
गुणगान हो तेरा, हे स्वामी, तूने अपने आदेश की शक्ति से समस्त सृजित वस्तुओं को अस्तित्व दिया है।
हे स्वामी! तेरे अतिरिक्त जिसने अन्य सब कुछ को त्याग दिया है, उसकी सहायता कर और उसे विजय प्रदान कर। हे स्वामी, अपने सेवकों की सहायता करने के लिये, उन्हें सहयोग और सहायता प्रदान करने के लिये, उन्हें महिमा से आच्छादित करने के लिये, उन्हें सम्मान एवं उच्चता प्रदान करने के लिये, उन्हें समृद्ध बनाने के लिये और अद्भुत विजय के द्वारा उन्हें विजयी बनाने के लिये, देवदूतों को भेज जो आकाश और धरती पर तथा जो इनके मध्य में है।
तू उनका स्वामी है, धरती और आकाश का स्वामी है और समस्त लोकों का स्वामी है। हे ईश्वर, अपने सेवकों की शक्ति के माध्यम से इस धर्म को शक्तिशाली बना और संसार के सभी जनों पर प्रभावशाली होने में उनकी सहायता कर; क्योंकि, वे सत्य ही, तेरे ऐसे सेवक हैं जिन्होंने स्वयं को तेरे अतिरिक्त अन्य सभी कुछ से अनासक्त कर लिया है और तू सत्य ही, सच्चे सेवकों का रक्षक है।
हे स्वामी, अनुदान दे कि तेरे परम पावन धर्म के प्रति अपनी निष्ठा के माध्यम से उनके हृदय, उन सभी वस्तुओं से अधिक शक्तिशाली बन जायें, जो आकाश में और धरती पर है, तथा जो कुछ भी इनके मध्य है, हे स्वामी, अपनी अद्भुत शक्ति के चिन्हों से उनके हाथों को सशक्त बना ताकि वे समस्त मानवजाति के समक्ष तेरी शक्ति को प्रकट कर सकें।
हे स्वामी, अपनी दिव्य एकता के वृक्ष के शीघ्र विकास का विधान कर। हे स्वामी, अपनी सुप्रसन्नता की जलधार से इसे सींच और अपने दिव्य आश्वासन के प्रकटीकरण से इससे ऐसे फल उपजा जैसा तू अपने गुणगान एवं महिमागान के लिये, अपनी स्तुति और आभार के लिये, अपने नाम की स्तुति के लिये, अपने सारत्व की एकता के लिये और अपनी उपासना में समर्पण के लिये चाहता है! सभी कुछ तेरी मुट्ठी में है। परम सौभाग्यशाली हैं वे जिनके रक्त का तूने अपने अस्तित्व के वृक्ष को सींचने के लिये और अपनी पावन और अतुलनीय वाणी को यशस्वी बनाने के लिये चुना है।
हे स्वामी! धरती के समस्त जनों को अपने धर्म के स्वर्ग में प्रवेश पाने योग्य बना, ताकि अस्तित्व में आया कोई भी प्राणी, तेरी सुप्रसन्नता की परिधि से बाहर न रह जाये।
अनन्तकाल से तू, वह करने में समर्थ रहा है जो तू चाहता है और तू अपनी इच्छा से परे है।
वह ईश्वर है! हे स्वामी, मेरे ईश्वर, मेरे परम प्रियतम! ये तेरे वे सेवक हैं जिन्होंने तेरी पुकार सुनी है, तेरी वाणी, तेरे आह्वान पर ध्यान दिया है और विश्वास किया है; ये साक्षी रहे हैं तेरी अद्भुत लीला के, इन्होंने तेरे प्रमाणों को और पुष्ट किया है तेरे साक्ष्यों को स्वीकारा है; तेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया है, और जाना है तेरा रहस्य, और पाया है मंत्र तेरे ग्रंथ का; तेरी पातियों का स्रोत पाया है, तेरे संदेशों का भाव और तेरे प्रकाशन और भव्यता के परिधान का आंचल दृढ़ता से थाम लिया है; जिनके पग तेरी संविदा में अडिग हैं, तेरे प्रमाण में उनके हृदय दृढ़ हैं।
स्वामी! तू उनके हृदय में अपने दिव्य आकर्षण की लौ को प्रज्वलित कर दे और वरदान दे कि प्रेम और ज्ञान का पंछी उनके हृदय में चहके। वर दे कि वे तेरे ऐसे समर्थ चिन्ह बनें, ऐसी जगमगाती ध्वजायें बनें व परिपूर्णता को प्राप्त हों जैसे तेरे शब्द परिपूर्ण हैं। तू अपना धर्म उनके माध्यम से उन्नत कर, अपनी धर्म-ध्वजा और दूर-दूर तक फहरा, अपनी अद्भुत लीला का विस्तार कर। अपनी वाणी को उनके माध्यम से विजयी बना और अपने प्रियजनों के मेरूदंड सशक्त कर। उनकी वाणी को अपने गुणगान के लिये मुक्त कर, उन्हें तू अपनी पावन इच्छा के पालन के लिये प्रेरित कर। अपने पावन साम्राज्य में उनके मुखड़ों को आलोकित कर और अपने धर्म की विजय के लिये उठ खड़े होने में उनकी सहायता करके उनका आनन्द बढ़ा। स्वामी, हम निर्बल हैं, हमें अपनी पावनता की सुरभि का प्रसार करने की शक्ति दे; हम दरिद्र हैं, अपनी दिव्य एकता के कोष से हमें समृद्ध बना; हम परिधानहीन हैं, अपनी कृपा के परिधान हमें धारण करा; हम पापी हैं, अपनी कृपालुता, अनुग्रह और क्षमाशीलता से हमारे पापों को क्षमा कर। सत्य ही, तू ही सम्बल देने वाला, सहायक, कृपालु, सामर्थ्यशाली और शक्तिशाली है। महिमाओं की महिमा उन पर विराजे, जो दृढ़ और अटल हैं।
हे मेरे ईश्वर! मैं तेरी शरण में जाग उठा हूँ, और जो उस शरण की कामना करे उसके लिये यह उचित है कि वह तेरे संरक्षण के शरण-स्थल और तेरी सुरक्षा के दुर्ग में निवास करे। हे मेरे स्वामी! अपने प्रकटीकरण के उद्गमस्थल की भव्यताओं से मेरे अंर्तमन को प्रदीप्त कर दे वैसे ही, जैसे तूने मेरे बाह्य अस्तित्व को अपनी कृपा के प्रभात-प्रकाश द्वारा आलोकित किया है।
हे मेरे ईश्वर और मेरे स्वामी! मैं तेरा सेवक और तेरे सेवक का पुत्र हूँ। इस प्रभात बेला में मैं अपनी शय्या से जाग उठा हूँ, जब तेरी एकमेवता का दिवानक्षत्र, उसके अनुसार जो तेरे आदेश की पुस्तकों में विहित किया गया है तेरी इच्छा के उद्गमस्थल से चमक उठा है और समस्त जगत पर अपनी प्रभा बिखेरी है।
स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर, कि हम तेरे ज्ञान के आलोकपुंज के प्रति जाग उठे हैं। हमारे लिये वह भेज, हे मेरे स्वामी! जो हमें इस योग्य बना दे कि हम तेरे सिवा अन्य सभी से अनासक्त हो सकें, जो हमें तेरे सिवा सभी आसक्तियों से मुक्त होने में समर्थ बनाये। मेरे लिये और जो मेरे प्रियजनों के लिए, स्त्री-पुरुष सभी के लिये समान रूप से, इहलोक और परलोक के शुभ और कल्याण का विधान कर। अपने अचूक संरक्षण के द्वारा हमें उन सबसे सुरक्षित रख जिन्हें तूने आसुरी प्रवृत्तियों का मूर्तरूप बनाया है, हे तू सम्पूर्ण सृष्टि के परमप्रिय और सम्पूर्ण विश्व की कामना! तू जो चाहे करने में समर्थ है। तू सत्य ही, सर्वशक्तिशाली, संकटमोचन स्वयमाधार है।
हे स्वामी, मेरे ईश्वर! उसे आशीष दे, जिसे तूने अपनी परम श्रेष्ठ उपाधियों के साथ भेजा है और जिसके द्वारा तूने सदाचारियों और दुष्टों को विभक्त किया है, और मुझे अनुग्रहपूर्वक वह करने में सहायता दे जिसे तू प्रेम करता है और जिसकी तू इच्छा करता है। इसके अतिरिक्त हे मेरे ईश्वर उनको आशीष दे जो तेरे शब्द और तेरे अक्षर है और वे जो तेरी ओर उन्मुख हुए हैं, और जो तेरी मुखमण्डल की ओर प्रवृत्त हो गये हैं, और तेरे आह्वान को सुना है।
तू सत्य ही, समस्त जनों का स्वामी और सम्राट है, और समस्त वस्तुओं पर सामर्थ्यवान है।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! अपनी कृपा और उदारता से मुझे शोक से मुक्त कर दे और अपनी सत्ता और शक्ति से मेरी वेदना को दूर कर दे। हे मेरे ईश्वर! तू देख रहा है कि मैं ऐसे समय में तेरी ओर उन्मुख हूँ जब दुःखों ने मुझे चहुँओर से घेर लिया है। तू स्वामी समस्त अस्तित्व का है, सभी दृश्य तथा अदृश्य पदार्थों पर तेरी छत्रछाया है। मैं याचना करता हूँ तुझसे, तेरे उस नाम पर, जिसके द्वारा तूने मानव-हृदय और आत्माओं को अपने अधीन किया है। मैं याचना करता हूँ तेरी दया के महासागर की उन तरंगों के नाम पर और तेरी असीम कृपालुता के दिवानक्षत्र की प्रभा के नाम पर, कि तू मेरी गिनती उनमें कर जिन्हें कोई भी वस्तु तेरी ओर उन्मुख होने से रोक नहीं सकी है। हे तू जो सभी नामों का स्वामी, आकाशों का सृजनकर्ता है। हे मेरे स्वामी तू देख रहा है जो तेरे दिवसों में मुझ पर आन पड़ा है। उसके द्वारा मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ जो तेरे नामों का अरुणोदय और तेरे गुणों का उद्गम स्थल है, कि मेरे लिये उसका विधान कर जो मुझे तेरी सेवा में उठ खड़े होने और तेरी महिमा की स्तुति करने के योग्य बना दे। वस्तुतः, तू ही सर्वसामर्थ्यवान, सर्वशक्तिशाली है, जो सबकी प्रार्थना सुनता है। तेरे मुखारविन्द के प्रकाश के नाम पर मैं तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे मेरे कार्यों में सिद्धि दे, मुझे ऋण-मुक्त कर और मेरी आवश्यकताओं को पूरा कर। तू वह है, जिसकी शक्ति और जिसकी सत्ता का प्रमाण प्रत्येक जिह्वा ने दिया है, जिसकी विभूति और जिसकी प्रभुसत्ता को प्रत्येक विवेकयुक्त हृदय ने स्वीकारा है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, जो सबकी सुनता है, सबका दुःखहर्ता है।
ईश्वर के अतिरिक्त कठिनाइयों को दूर करने वाला क्या कोई अन्य है? कह दोः ईश्वर की स्तुति हो! वही ईश्वर है! सभी उसके सेवक हैं, तथा सभी उसके आदेश का अनुपालन करते हैं।
हे मेरे ईश्वर! मैं तेरी शक्ति की सौगंध देता हूँ कि परीक्षाओं की घड़ी में कोई क्षति न होने दे और असावधानी के पलों में अपनी प्रेरणा से मेरे पगों को सही राह दिखा। तू ही ईश्वर है, जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ; कोई भी तेरी इच्छा की राह में बाधा नहीं बन सकता और न ही तेरे उद्देश्य को विफल कर सकता है।
हे स्वामी! तू प्रत्येक वेदना का हर्ता और प्रत्येक व्याधि को दूर करने वाला है। तू वह है जो प्रत्येक शोक को दूर करता है, प्रत्येक दास को मुक्त करता है प्रत्येक आत्मा का उद्धारकर्ता। हे स्वामी! अपनी दया के द्वारा मुक्ति प्रदान कर और मुझे अपने ऐसे सेवकों में गिन जिन्होंने मुक्ति पा ली है।
कहोः ईश्वर पर्याप्त है, समस्त आकाश एवं धरती पर ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे वह पूरा नहीं कर सकता हो। सत्य ही, वह ज्ञाता, अवलम्बनदाता, सर्वशक्तिमान है।
हे मेरे स्वामी, मेरे ईश्वर! विपत्ति में मेरे आश्रय! आपदा में मेरे ढ़ाल और मेरे शरणस्थल! आवश्यकता के समय मेरे आश्रय और शरण! एकाकीपन में मेरे सखा, वेदना में मेरी सांत्वना और अकेलेपन में मेरे एक स्नेहिल मित्र, मेरे दुःखों की पीड़ा हरने वाले और मेरे पापों के क्षमाकर्ता!
मैं पूरी तरह तेरी ओर उन्मुख हूँ और अपने समर्पित हृदय से, अपनी जिह्वा से तुझसे अत्यन्त विनीत भाव से याचना करता हूँ कि मेरी उस सबसे रक्षा कर जो तेरी इच्छा के विरूद्ध हैं, तेरी दिव्य एकता के चक्र में, और मुझे उन सभी मलिनता से निर्मल कर और तेरे निष्कलंक और शुद्ध कृपा के वृक्ष की छाँव पा सकने में बाधक है ताकि मैं निष्कलुष, निष्पाप रह सकूँ।
हे स्वामी निर्बल पर, दया कर! रोगी को स्वस्थ कर और अतृप्त को तृप्त कर। उस हृदय को प्रसन्न कर जिसमें तेरे प्रेम की ज्वाला सुलगती हो, उसे अपने दिव्य प्रेम की लौ और चेतना से प्रदीप्त कर।
दिव्य एकता के वितानों को अपनी पावनता के परिधान से सुसज्जित कर और अपनी कृपादृष्टि का ताज मुझे पहना।
मेरे मुखड़े को अपनी कृपा के प्रभामण्डल से उद्भासित कर और अपनी इस पावन देहरी की सेवा करने में कृपापूर्वक मेरी सहायता कर।
मेरे हृदय को अपने प्रणियों के प्रेम से सराबोर कर दे ताकि मैं तेरी दया का चिन्ह, तेरे अनुग्रह का प्रतीक और तेरे प्रियजनों में स्नेह-भावना बढ़ाने वाला बन जाऊँ, तेरे प्रति समर्पित हो तेरा ही स्मरण करूँ, अपने अहम् को भूलकर जो कुछ तेरा है उसके प्रति सदा सजग रहूँ।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर ! अपनी अनुग्रह और क्षमा के पवन-झकोरों को मुझ तक आने से न रोक और मुझे अपनी सहायता और कृपा के स्रोतों से वंचित न कर।
अपनी सुरक्षा के पंखों के सहारे मुझे नीड़ बनाने दे और मुझ पर अपने सर्वरक्षक नेत्र की कृपादृष्टि डाल।
मेरी जिह्वा को जड़ता से मुक्त कर कि तेरे नाम की स्तुति कर सकूँ, ताकि मेरी वाणी विराट सभाओं में उच्च स्वर में गुंजायमान हो और मेरे होठों से तेरी स्तुति का प्रबल प्रवाह बह निकले।
तू ही समस्त सत्य में, अनुकम्पामय, महिमावंत, समर्थ और सर्वशक्तिशाली है।
वह करुणामय, सर्वकृपालु है! हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! तू मुझे देखता है, तू मुझे जानता है, तू ही मेरी शरण और मेरा आश्रय है, मैंने तेरे अतिरिक्ति किसी अन्य की न कामना की है, न करूंगा। तेरे प्रेम-पथ के सिवा मैंने अन्य किसी पथ पर न पाँव रखा है न रखूँगा। निराशा की अंधियारी रात में मेरी आँखें, अपेक्षा और आशा से भरी हुई, तेरे असीम अनुग्रह के प्रभात की ओर लगी हैं और अरुणोदय की बेला में मेरी मुरझाई हुई आत्मा तेरे सौन्दर्य और तेरी परिपूर्णता के स्मरण से नवस्फूर्ति और शक्ति प्राप्त करती है। जिसे तेरी दया का सहारा है वह एक बूंद भी हो तो असीम महासागर बन जायेगा और जिस पर तेरी स्नेहिल कृपालुता का उमड़ता प्रवाह हो वह तुच्छ धूलकण होकर भी जगमगाता सितारा सा जगमगायेगा।
हे तू पावनता की चेतना! हे तू जो असीम दाता है। अपने इस दीप्त दास को अपनी सुरक्षा में शरण दे।
अस्तित्व के इस संसार में इसे शक्ति दे कि यह तेरे प्रेम में दृढ़ और अडिग रहे और वर दे कि यह पंख टूटे पंछी को स्वर्गिक वृक्ष के नीड़ में शरण और आश्रय पाये।
हे तू जिसके परीक्षण उनके लिए जो तेरे निकट हैं रोग-निवारक औषधि हैं, जिसकी तलवार उन सब की प्रबल इच्छा है जो तुझसे प्रेम करते हैं, जिसका बर्छा उन सब की परम प्रिय कामना है, जो तेरी लालसा रखते हैं, जिसका आदेश उनकी एकमात्र आशा है जिन्होंने तेरे सत्य को स्वीकार कर लिया है। मैं तेरे दिव्य माधुर्य, और तेरे मुखमण्डल की महिमा की भव्यता के माध्यम से तुझसे याचना करता हूँ कि अपने उच्च एकांतवास से वह भेज जो हमें तेरे निकट पहुँचने के योग्य बनाये। तब, हे मेरे ईश्वर, अपने धर्म में, मेरे पगों को दृढ़ कर दे और अपने ज्ञान की दीप्ति से हमारे हृदयों को प्रकाशित कर दे, और अपने नामों की कांति से हमारे वक्षों को प्रदीप्त कर दे।
स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर! यदि वे दुःख न होते जो तेरे पथ में सहने पड़ते हैं तो तेरे सच्चे प्रेमी कैसे पहचाने जाते और यदि वे संकट न होते जो तेरे प्रेम के कारण उठाने पड़ते हैं तो, तेरी चाह रखने वालों के पद कैसे प्रकट होते? तेरी सामर्थ्य मेरी साक्षी है कि जो भी तेरी आराधना करते हैं, उन सबके सहचर, उनके बहाए हुए आँसू हैं और तेरी आकांक्षा करने वालों को सांत्वना देने वाले हैं उनके मुख से निकली आहें। जो तुझसे मिलने की शीघ्रता करते हैं, उनका आहार उनके टूटे हुए दिल के टुकड़े हैं।
मुझे कितना मधुर स्वाद देती है तेरे पथ में भोगी गई मृत्यु की कटुता और कितने अनमोल हैं मेरी दृष्टि में तेरी वाणी के यशोगान के बदले लगने वाले तेरे शत्रुओं के तीर। अपने धर्म की राह में तू जो चाहे वह सब विष मुझको पीने दे। अपने प्रेम में वह सब सहने दे मुझको, जिसका तूने आदेश दिया है। तेरी महिमा की सौगंध! जो तू चाहे बस वही मेरी भी इच्छा है और प्रिय है मुझको बस वही जो तुझको प्रिय है। हर समय बस तुझमें ही मैंने अपनी सम्पूर्ण आस्था रखी है।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, कि तू इस धर्म के ऐसे सहायकों को उत्पन्न कर जो तेरे नाम और सम्प्रभुता के योग्य हों, ताकि वे तेरे प्राणियों के मध्य तुझे स्मरण कर सकें और तेरी धरा पर विजय-पताका फहरा सकें। तुझे जैसा अच्छा लगे वैसा करने में तू समर्थ है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, संकट में सहायक, स्वयंजीवी।
तू प्रतापशाली है, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! अंतर्दृष्टि सम्पन्न प्रत्येक व्यक्ति तेरी सम्प्रभुता और तेरे अधिराज्य को स्वीकार करता है और प्रत्येक विवेकशील नेत्र तेरे वैभव की महानता और सामर्थ्य की बाध्यकारी शक्ति को देख पाता है ।
परीक्षाओं के प्रचंड झंझावात भी उन्हें रोक सकने में असमर्थ हैं। जो तेरी महिमा के क्षितिज को निहारते हैं, और तेरी निकटता का आनन्द पाते हैं; जिन्होंने तेरी इच्छा के प्रति स्वयं को पूरी तरह कर समर्पित कर दिया है, उन्हें तेरे सान्निध्य से दूर कर पाने में या तुझ तक पहुँचने में संकटों के झंझावात भी बाधा नहीं बन सकते। ऐसा लगता है कि उनके हृदय में प्रज्ज्वलित प्रेम के दीपक और ललक उठी है तेरी मृदुलता की ज्योति उनके वक्ष में है। विपदायें भी उन्हें तेरे धर्म से विमुख करने में असमर्थ हैं और भाग्य के उलट-फेर भी उन्हें तेरी सुप्रसन्नता के पथ से नहीं भटका सकते हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ हे मेरे ईश्वर, उनके द्वारा और उनकी उन आहों के द्वारा जो तेरे वियोग में उनके हृदय से निकली हैं, कि उन्हें अपने विरोधियों के दुष्कृत्यों से सुरक्षित रख और उनकी आत्मा को उससे पोषित कर जिसका विधान तूने अपने उन प्रियजनों के लिये किया है जिन्हें कोई भय ग्रस्त नहीं करता और जिन पर कोई विपदा नहीं आयेगी।
हे मेरे ईश्वर, तू भलीभांति जानता है कि सभी दिशाओं से मुझ पर विपदायें टूट पड़ी हैं और तेरे अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जो उन्हें दूर कर सकता है या कम ही कर सकता है। तेरे प्रति अपने प्रेम के कारण मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तू किसी भी आत्मा को तब तक विपदाग्रस्त नहीं करता जब तक तू अपने पावन स्वर्ग में उसके स्थान को ऊँचा करने का निर्णय नहीं ले लेता या जब तक यह भौतिक जीवन जीने के लिये उसके हृदय को सशक्त करने का तेरा इरादा नहीं होता। अपनी शक्ति के से तू ये सुरक्षा-कवच उसे इसलिये प्रदान करता है कि दुनिया के मिथ्या अभिमान के प्रति उसका झुकाव न हो जाये। यह सच है और तू भलीभाँति इससे परिचित भी है कि दुनिया और आसमानों के समस्त सुख से भी अधिक तेरे नाम के स्मरण में मैं प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ।
हे मेरे ईश्वर, अपने प्रेम और अपनी आज्ञाओं के पालन में मेरे हृदय को सशक्त कर और ऐसा कर दे कि तेरे विरोधियों की छाया से मैं पूरी तरह दूर रह सकूँ। सत्य ही, मैं तेरी महिमा के नाम पर सौगन्ध लेता हूँ कि तेरे अतिरिक्त किसी अन्य की समीपता की कामना मैं नहीं करता और न ही तेरी दया के अतिरिक्त किसी अन्य की दया का पात्र ही बनना चाहता हूँ, न ही मुझे तेरे न्याय के अतिरिक्त किसी अन्य से न्याय पाने की अभिलाषा है।
तू परम् उदार है, हे आसमानों और धरा के ईश्वर, समस्त मानवों की स्तुति से परे तेरे आज्ञाकारी सेवकों को शांति प्राप्त हो और ईश्वर की महिमा बढ़े, तू ही सभी लोकों का स्वामी है!
स्तुति हो तेरी, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! कृपापूर्वक वर दे कि यह शिशु तेरी स्नेहसिक्त दया और तेरे प्रेमपूर्ण मंगलविधान के स्तनों से आहार पाये और तेरे दिव्य वृक्ष के फल से पोषित हो। इसे अपने अतिरिक्त अन्य किसी के सार-सम्भाल में न छोड़, क्योंकि तूने अपनी सर्वोपरि इच्छा और शक्ति से इसका सृजन किया है और इसे अस्तित्व दिया है। तुझ सर्वशक्तिशाली, सर्वज्ञाता के सिवा अन्य कोई ईश्वर नहीं है।
महिमावंत है तू, हे मेरे प्रियतम, इस पर अपनी दिव्य सुरभि और अपने पावन वरदानों की सुगंध प्रवाहित कर। इसे अपने परम पावन नाम की छाया तले आश्रय की आकांक्षा करने योग्य बना, हे तू जो अपनी मुट्ठी में समस्त नामों और गुणों का साम्राज्य धारण किये हुए है! वस्तुतः तू जो चाहे करने में समर्थ है और तू निश्चय ही सामर्थ्यशाली, सदा क्षमाशील, अनुग्रहमय और कृपालु है।
हे ईश्वर! मेरा मार्गदर्शन कर, मेरी रक्षा कर, मुझे एक दीप्तिमान दीप और देदीप्यमान सितारा बना दे। तू शक्तिशाली एवं बलशाली है।
हे ईश्वर! मेरे स्वामी! मैं छोटी उम्र का बालक हूँ, अपनी दया के दुग्ध से मेरा पोषण कर, अपने प्रेम के वक्ष से मुझे प्रशिक्षण दे, अपने मार्गदर्शन की पाठशाला में मुझे शिक्षित कर और अपने आशीष की छत्रछाया में मेरा विकास कर। मुझे अंधकार से मुक्ति दे, मुझे एक दीप्त प्रकाशपुंज बना दे; मुझे उदासी से छुटकारा दिला; मुझे अपनी गुलाब वाटिका का एक पुष्प बना; मुझे अपनी पावन देहरी का एक सेवक बना और मुझे सदाचारियों की वृत्ति और स्वभाव प्रदान कर; मुझे मानव संसार के लिये सम्पदाओं का एक माध्यम बना और मेरे मस्तक को शाश्वत जीवन के मुकुट से सुशोभित कर। तू निश्चय ही शक्तिशाली, सामर्थ्यवान, सर्वद्रष्टा और सबका सुनने वाला है !
हे ईश्वर! इन बच्चों को शिक्षित कर। ये बच्चे तेरी फलों की बगिया के पौधे हैं, तेरे तृणभूमि के फूल हैं, तेरी वाटिका के गुलाब हैं। अपनी वर्षा की फुहारें उन पर पड़ने दे, सत्य के इस सूर्य को अपने स्नेह सहित इन पर जगमगाने दे। अपने समीर को उनमें ताजगी भरने दे, ताकि ये प्रशिक्षित हो सकें, विकास और वृद्धि कर सके, और परम सौन्दर्य में परिलक्षित हो सकें। तू दाता है। तू करुणामय है।
हे तू दयालु स्वामी! ये प्यारे बच्चे तेरी शक्ति की उँगलियों के हस्तकौशल हैं और तेरी महानता के अद्भुत चिन्ह हैं। हे ईश्वर! इन बच्चों की रक्षा कर, उनके शिक्षित होने में कृपापूर्वक उनकी सहायता कर और मानवता के जगत की सेवा करने के लिए उन्हें समर्थ बना। हे ईश्वर! ये बच्चे मोती हैं, इन्हें अपनी स्नेहमयी-कृपालुता के कवच में इनका पोषण करा।
तू उदार, सभी से प्रेम करने वाला है।
हे स्वामी, इस युवा को दीप्तिमान बना और इस अकिंचन प्राणी को अपनी उदारता प्रदान कर। इसे ज्ञान प्रदान कर, प्रत्येक प्रभात के साथ इसे शक्ति दे और अपने संरक्षण के आश्रय में इसे सुरक्षा दे ताकि यह भूल से मुक्त हो सके, स्वयं को तेरे धर्म की सेवा में समर्पित करे, पथभ्रष्टों का मार्गदर्शन कर सके, अभागो को राह दिखा सके, दासों को मुक्त कर सके और असावधानों को जगा सके। जिससे सभी तेरे स्मरण और स्तुति से धन्य हो सकें। तू शक्तिशाली और शक्तिसम्पन्न है।
(”.....आरम्भ से ही बच्चों को ईश्वर का ज्ञान कराना चाहिये और ईश्वर का स्मरण करने के लिये उन्हें याद दिलाते रहना चाहिये। उनके अन्तर्मन में ईश्वर का प्रेम कुछ इस तरह व्याप्त हो जाने दें जैसे उनकी माँ का दूध उनकी नस-नस में घुल-मिल जाता है.....“)
हे सत्य के खोजी! यदि तू चाहता है कि ईश्वर तेरे नेत्र खोल दें, तो तुझे अवश्य ही ईश्वर से विनय पूर्वक याचना करना चाहिए, उससे मध्यरात्रि में यह कहते हुए प्रार्थना और संलाप कर:
हे स्वामी! मैं तेरी एकता के साम्राज्य की ओर उन्मुख हूँ और तेरी दया के सागर में निमग्न हूँ। हे स्वामी, इस अंधेरी रात में मेरी दृष्टि को अपनी ज्योतियों के दर्शन से प्रकाशित कर दे, और इस अद्भुत युग में अपने प्रेम की मदिरा से मुझे आनंदित कर दे। हे स्वामी, मुझे अपना आह्वान सुनने की शक्ति दे और मेरे समक्ष अपने स्वर्ग के द्वार खोल दे, ताकि मैं तेरी महिमा के प्रकाश को निहार सकूँ और तेरे सौन्दर्य की ओर आकर्षित हो जाऊँ।
सत्य ही, तू दाता, उदार, दयावान, क्षमाशील है।
देखता है तू, हे स्वामी ! तेरी अनुकम्पा और कृपा के लिये आकाश की ओर फैले मेरे याचना भरे हाथों को। वर दे कि ये तेरी उदारता और कृपा से परिपूर्ण सहायता के बहुमूल्य रत्नों से भर जायें। मुझे और मेरे माता-पिता को क्षमादान दे और मैंने तेरे आशीष और तेरी दिव्य उदारता के महासागर से जो कुछ भी पाना चाहा है, उनसे इन्हें भर दे। मेरे हृदय के प्रिय ईश्वर, अपनी राह में अर्पित मेरे सभी कर्म स्वीकार कर। सत्य ही, तू सर्वशक्तिशाली, सर्वोच्च, अतुलनीय, एकमेव है। सत्य ही, तू एक, एकाकी, क्षमादाता, करूणामय है।
महिमा हो तेरी, हे ईश्वर, मेरे स्वामी! मैं तुझसे याचना करता हूँ कि क्षमा कर दे मुझे और उन्हें, जो तेरे धर्म के समर्थक हैं। वस्तुतः, तू सर्वसमर्थ स्वामी, क्षमादाता, सर्वाधिक उदार है। अपने वैसे सेवकों को, जो ज्ञानविहीन हैं, अपने धर्म को स्वीकार करने के योग्य बना, क्योंकि एक बार यदि वे तेरे बारे में जान जायेंगे तो वे न्याय दिवस की सत्यता के साक्षी बनेंगे और तेरी कृपा के प्रकटीकरण का विरोध नहीं करेंगे। उनके लिये अपनी दया के चिन्ह भेज और वे जहाँ कहीं भी निवास करें उन्हें अपनी उदारता का अंशदान दे, जिसका विधान तूने उनके लिये किया है जो तेरे सेवकों के बीच विशुद्ध हृदय हैं। तू सत्य ही सर्वोपरि सम्राट, सर्वकृपालु, परम करुणामय है। अपनी कृपा और अपने आशीषों की बूंदें बरसने दे वहाँ जिनके निवासियों ने तेरे धर्म को अपनाया है। वस्तुतः, क्षमादान देने में तू सर्वोपरि है। यदि तेरी कृपा उन तक नहीं पहुँच पायेगी तो तेरे इस दिवस में वे तेरे भक्तों में कैसे गिने जायेंगे। मुझे आशीष दे, हे मेरे ईश्वर! और उन्हें भी जो इस पूर्व निर्धारित दिवस में तेरे चिन्हों पर विश्वास करेंगे! जो अपने हृदयों में तेरा प्रेम धारण करते हैं, ऐसा प्रेम जिसे तूने ही उन्हें दिया है, सत्य ही, तू न्याय का स्वामी, सर्वोच्च है!
हे स्वामी! इस सर्वमहान धर्मकाल में माता-पिता की ओर से संतानों द्वारा की गई प्रार्थना को तू स्वीकार करता हैं। यह इस धर्मकाल के विशेष अनन्त आशीषों में एक है। अतः, हे कृपालु स्वामी! अपनी एकमेवता की देहरी पर अपने इस सेवक की विनती स्वीकार कर और अपनी अनुकम्पा के महासागर में इसके पिता को निमग्न कर दे, क्योंकि यह पुत्र तेरी सेवा करने के लिये उठ खड़ा हुआ है और तेरे प्रेम के पथ पर प्रति क्षण प्रयत्नशील है। सत्य ही, तू दाता, क्षमादाता और कृपालु है।
वह दाता और उदार है!
स्तुति हो ईश्वर की, जो पुरातन, चिरन्तन, निर्विकार, शाश्वत है। वह जो स्वयं अपने अस्तित्व का साक्षी है कि वह सत्य ही एकाकी, एकल, अबाधित, उदात्त है। हम साक्षी हैं कि उसके अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, हम उसकी एकमेवता को स्वीकारते हैं, उसकी अखण्डता पर विश्वास करते हैं। उसने सदैव ही अगम्य उच्च शिखरों पर निवास किया है, वह स्वयं के अतिरिक्त किसी के भी उल्लेख से पवित्र तथा स्वयं के अतिरिक्त अन्य किसी के भी वर्णन से परे है।
और जब उसने मनुष्यों पर कृपा और उपकार व्यक्त करने और संसार को सुव्यवस्थित करने की इच्छा की, उसने प्रथाओं को प्रकट किया और विधानों की रचना की, उसने उसमें विवाह के विधान की स्थापना की और इसे कल्याण और मुक्ति के दुर्ग के रूप में बनाया और जो परम पावन पुस्तक में पवित्रता के आकाश से उतरा था उसका हमें आदेश दिया। वह कहता है, उसकी महिमा महान है! हे लोगो! “विवाह के बन्धन में बंधो ताकि तुम उसे जन्म दे सको जो मेरे सेवकों के बीच मेरा उल्लेख करेगा। यह तुम्हारे लिए मेरा आदेश है, अपनी सहायता के रूप में दृढ़ता से इसको थाम लो।
”बहाई विवाह दो पक्षों के बीच मृदुल मिलन और स्नेहपूर्ण सम्बन्ध है, लेकिन उन्हें अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिये और एक दूसरे के चरित्र से सुपरिचित हो जाना चाहिये। एक सुदृढ़ संविदा द्वारा यह चिरंतन बंधन संरक्षित कर लिया जाना चाहिये और उद्देश्य होना चाहिये मधुर सम्बन्ध, साहचर्य और एकता तथा अनन्त जीवन को प्राप्त करना।“
”...एक विवाहित जोड़े का जीवन आसमान के फरिश्तों की भाँति होना चाहिये - ख़ुशियों से भरा और आध्यात्मिक आनन्द से परिपूर्ण, एकता का प्रतीक और मित्रवत् - मानसिक और दैहिक मित्रता...। उनके मत और विचार सत्य के सूर्य की किरणों के समान और आसमान के चमकते सितारों की प्रखरता लिये हों। सहभागिता और समरसता के वृक्ष की टहनियों पर मधुर गान गुंजित करते पक्षियों की भाँति उनका जीवन हो। उन्हें निरन्तर आनन्द से उल्लसित होना चाहिये और दूसरों के हृदयों को प्रसन्नता देने का साधन बनना चाहिये। उन्हें अपने संगी साथियों के समक्ष एक उदाहरण बनना चाहिये, एक-दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम और वफ़ादारी रखनी चाहिये और अपने बच्चों को कुछ इस प्रकार शिक्षित करना चाहिये कि वे अपने परिवार का नाम रौशन करें।“
विवाह की प्रतिज्ञा परम पावन पुस्तक ”किताब-ए-अक़दस“ में वर्णित वह श्लोक है जो वर और वधू द्वारा बारी-बारी से वैसे दो गवाहों की उपस्थिति में पढ़ी जानी चाहिये जो आध्यात्मिक सभा को स्वीकार्य हों। विवाह की प्रतिज्ञा इस प्रकार है:
”हम, सत्य ही, ईश्वर की इच्छा का अनुपालन करेंगे।“
महिमा हो तेरी, हे मेरे ईश्वर! सत्य ही, तेरा यह सेवक और तेरी यह सेविका तेरी दया की छत्रछाया में एकत्रित हुए हैं और तेरी कृपा और तेरी उदारता के प्रताप से एकता के सूत्र में बंधे हैं। हे स्वामी! अपने इहलोक और अपने साम्राज्य में इनकी सहायता कर और अपनी उदारता, कृपा द्वारा उनके लिये प्रत्येक शुभ का विधान कर। हे स्वामी, इन्हें अपने दासता में सुदृढ़ बना और अपनी सेवा में उनकी सहायता कर। अपने लोक में उन्हें अपने नाम के प्रतीक चिन्ह होने दें और अपने प्रदानों के द्वारा उनकी सुरक्षा कर जो इस लोक और आगामी लोक में अनन्त हैं। हे स्वामी, वे तेरी दयालुता के साम्राज्य से याचना कर रहे हैं और तेरी एकमेवता के लोक का आह्वान कर रहे हैं। सत्य ही, उन्होंने तेरे आदेश के पालन हेतु विवाह किया है। जब तक समय का अस्तित्व है, उन्हें एकता और सामंजस्य के प्रतीक बना। सत्य ही, तू सर्वशक्तिशाली, सर्वव्यापी और सर्वसामर्थ्यवान है।
वह ईश्वर है! अद्वितीय स्वामी है!
अपने शक्तिसम्पन्न विवेक से तूने मानवजाति के लिये विवाह का विधान किया है कि इस लोक में एक के बाद एक मानव पीढ़ियाँ बनी रहें और जब तक इस लोक का अस्तित्व है तब तक तेरी एकमेवता की पावन देहरी पर तेरी सेवा और उपासना, तेरी स्तुति और महिमागान में वे स्वयं को व्यस्त रखें। ”मैंने आत्माओं और मनुष्यों की सृष्टि नहीं की है बल्कि अपने उपासक सृजित किये हैं“। अतः हे ईश्वर! तू अपने प्रेम के घौंसले में इन दो पक्षियों का विवाह अपनी दया के स्वर्ग में सम्पन्न कर और इन्हें अनन्त कृपा को आकर्षित करने का साधन बना जिससे प्रेम के इन दो ”सागरों“ के मिलन से कोमलता की एक लहर उमड़ सके और जीवन के तट पर ये पावनता और श्रेष्ठता के मोती बिखेर सकें। ”उसने दो सागरों को उन्मुक्त कर दिया है ताकि वे एक दूसरे से मिल सकें: उनके बीच एक मर्यादा है जिसका वे उल्लंघन न करें। अब अपने स्वामी की कृपा के सागरों में से तू किसको अस्वीकार करेगा? प्रत्येक से वह महानतर और लघुतर मोती उत्पन्न करता है।“
हे तू कृपालु स्वामी! इस विवाह को तू मूंगे और मोती उत्पन्न करने का साधन बना। तू सत्य ही सर्वशक्तिशाली, सर्वमहान और सदा क्षमाशील है।
हे मेरे ईश्वर! हे मेरे ईश्वर! ये दो उज्ज्वल नक्षत्र तेरे प्रेम के कारण परिणय सूत्र में बंधे हैं, तेरी पावन देहरी की सेवा के लिये एक हुए हैं, तेरे धर्म के कार्यों के निमित्त एकाकार बने हैं। हे मेरे स्वामी, सर्वकृपालु ईश्वर! तू इस विवाह को अपनी असीम अनुकम्पा का प्रकाश-सूत्र बना दे, हे कल्याणकर्ता, हे दाता! इन्हें अपने वरदानों की ऐसी जगमगाती किरण बना दे कि इस महान वृक्ष से ऐसी शाखाएँ फूटें जो तेरे उपहारों की वर्षा में विकास करें।
सत्य ही तू उदार, सर्वशक्तिशाली, दयालु, सर्वकृपालु है!
हे मेरे ईश्वर, मेरे स्वामी, मेरी आकांक्षा के लक्ष्य! तेरा यह सेवक, तेरी दया के आश्रय में और तेरी सुरक्षा तथा तेरे संरक्षण की चाह में सोना चाहता है, तेरी कृपा की छत्रछाया तले विश्राम करना चाहता हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूं, हे मेरे स्वामी, तेरा नेत्र जो कभी सोता नहीं है, मेरे नेत्र को अपने अतिरिक्त अन्य कुछ भी देखने से बचा। मेरी दृष्टि को इतना सशक्त बना कि ये तेरे चिन्हों को देख सकें और तेरे प्रकटीकरण के क्षितिज का अवलोकन करें। तू वह है जिसकी शक्तिमानता की अभिव्यक्ति के समक्ष शक्ति का सार भी प्रकम्पित हो उठा है।
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, तू ही है सर्वशक्तिमान, सर्ववशकारी और अप्रतिबंधित।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर, मैं कैसे निद्रा का वरण कर सकता हूँ, जबकि तेरे लिये व्यग्र नेत्र तुझसे वियोग के कारण निद्राविहीन हैं और कैसे मैं विश्राम के लिये लेट सकता हूँ जबकि तेरे प्रेमियों की आत्माएँ तेरे सान्निध्य से दूरी के कारण अति व्याकुल हैं? मैंने, हे मेरे स्वामी, अपनी चेतना और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को तेरी सामर्थ्य और तेरी सुरक्षा के दाहिने हाथ में सौंप दिया है और मैं तेरी शक्ति के प्रताप से ही अपना सिर तकिये पर रखता हूँ और तेरी इच्छा और तेरी सुप्रसन्नता के अनुसार ही इसे ऊपर उठाता हूँ। तू सत्य ही, सुरक्षा प्रदान करने वाला, सर्वशक्तिमंत, परम बलशाली है।
तेरी सामर्थ्य की सौगन्ध! मैं चाहे निद्रा में रहूँ अथवा जाग्रत अवस्था में, जो कुछ तू चाहता है उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहता हूँ। मैं तेरा सेवक हूँ और तेरे हाथों में हूँ। जिससे तेरी सुप्रसन्नता की सुरभि का प्रसार हो वैसा ही करने में कृपापूर्वक मेरी सहायता कर। तू सत्य ही, मेरी आशा और उन सबकी आशा है जो तेरे निकट पहुँचने का सुख पाते हैं। स्तुति हो तेरी; हे अखिल लोकों के स्वामी्।
महिमावंत हो तेरा नाम, हे मेरे ईश्वर ! तूने उस दिवस को प्रकट किया है जो दिवसों का अधिपति है, वह दिवस जिसे तूने अपने प्रियजनों तथा दिव्य अवतरणों के समक्ष अपनी श्रेष्ठतम पातियों में घोषित किया था, वह दिवस जब तूने समस्त सृजित वस्तुओं पर अपने नामों की प्रभा बिखराई है। उसे प्राप्त तेरा आशीष महान है जिसने स्वयं को तेरी ओर उन्मुख किया है और तेरा सान्निध्य प्राप्त किया है और तेरी वाणी की प्रखरता को ग्रहण किया है।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे स्वामी, तेरे उस नाम से, जिसके चहुँओर नामों का साम्राज्य आराध्य भाव से परिक्रमा करता है, कि तू अपने उन प्रियजनों की सहायता कर जो तेरे सेवकों के मध्य तेरी वाणी की महिमा का बखान करते हैं और दूर-दूर तक तेरे प्राणियों के मध्य तेरा यशोगान करते हैं, जिससे तेरी धरा के निवासियों की आत्माएँ तेरे प्राकट्य के आह्लाद से भर उठीं हैं।
हे मेरे स्वामी! तूने अपने अनुग्रह की जीवंत जलधाराओं तक पहुँचने में उनका मार्गदर्शन किया है, उन्हें उदारता से यह वर दे कि वे तुझसे विमुख न हों। तूने उन्हें अपनी सिंहासन-स्थली तक बुलाया है, अपनी स्नेहयुक्त दयालुता के द्वारा तू उन्हें अपनी समीपता से दूर न कर। उनके पास वह भेज जो उन्हें तेरे अतिरिक्त अन्य सबसे पूरी तरह अनासक्त कर दे। तू अपनी समीपता के आकाश में उन्हें उड़ान भरने में इतना समर्थ बना कि न तो दमनकर्ता के तीव्र प्रहार और न ही तेरी परम पावनता और परम शक्तिमानता में अविश्वास करने वालों के भ्रामक परामर्श उन्हें तुझसे दूर कर सकें।
स्तुति हो तेरी, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! मैं तुझसे याचना करता हूँ तेरे उस नाम से, जिसे किसी ने भी उचित रूप से नहीं पहचाना है और जिसके आशय की थाह कोई नहीं पा सकता है। मैं प्रार्थना करता हूँ तेरे उस नाम से, जो तेरे प्राकट्य का निर्झर-स्रोतऔर तेरे चिन्हों का अरुणोदय है कि मेरे हृदय को अपने स्मरण तथा अपने प्रेम का पात्र बना। तब उसे अपने विशाल महासागर में इस प्रकार निमग्न कर दे कि उससे तेरी प्रज्ञा, तेरी महिमा तथा तेरी स्तुति की जीवंत धारायें प्रवाहित हो उठें।
मेरी देह के अंग-प्रत्यंग तेरी एकता को प्रमाणित करते हैं और मेरे सिर के बाल तेरी प्रभुसत्ता तथा सामर्थ्य की घोषणा करते हैं। मैं, अंकिचन, अपने अस्तित्व को नकार कर तेरी महिमा के द्वार पर खड़ा हुआ हूँ और मैंने तेरे आंचल के छोर को दृढ़ता से थाम लिया है और तेरे उपहार के क्षितिज पर अपनी आँखें टिका ली हैं।
मेरे लिये, हे मेरे ईश्वर! वह नियत कर जो तेरी भव्यता की महानता के अनुरूप हो। अपनी शक्तिदायिनी अनुकम्पा द्वारा मेरी सहायता कर कि मैं तेरे धर्म का ऐसे संदेश दूँ कि जिससे मृतप्राय जन भी तत्क्षण उठ खड़े हों और तुझमें विश्वास प्रकट करके तेरे प्राकट्य के उदयस्थल तथा तेरे धर्म की ओर अपनी दृष्टि स्थिर कर, दौड़ पड़ें।
तू वस्तुतः सर्वशक्तिमान्, सर्वोच्च, सर्वज्ञाता तथा सर्वप्रज्ञ है।
ईश्वर, जो सभी अवतारों का प्रकटकर्ता है, सभी उद्गमों का मूल है, समस्त धर्मों का जनक है, समस्त प्रकाशपुंजों का स्रोत है, मैं साक्षी देता हूँ कि तेरे नाम से बोध का आकाश विभूषित हुआ है, वाणी का महासिंधु उमड़ा है और समस्त धर्मों के मानने वालों के मध्य तेरे मंगलविधान का शासन लागू हुआ है।
मैं याचना करता हूँ तुझसे कि मुझे इतना समृद्ध बना कि मैं तेरे सिवा अन्य सब कुछ से मुक्त हो जाऊँ और तेरे अतिरिक्त अन्य किसी पर आश्रित न रहूँ। तब मुझ पर अपनी कृपा के मेघों की वह बरखा बरसा जो तेरे लोकों के प्रत्येक लोक में लाभकारी हो। तब अपनी शक्तिदायिनी अनुकम्पा द्वारा मेरी सहायता कर कि मैं तेरे सेवकों के मध्य तेरे धर्म की सेवा कर सकूँ और कुछ ऐसा कर दिखाऊँ कि जब तक तेरा साम्राज्य और तेरी सम्प्रभुता है तब तक मैं याद किया जाऊँ।
यह तेरा सेवक है, हे मेरे स्वामी ! जो तेरी कृपा के क्षितिज और तेरे उपहारों के आकाश की ओर पूर्ण समर्पण के साथ उन्मुख हुआ है।
तू सत्य ही, शक्ति और सम्पन्नता का स्वामी है। तू उन सबकी सुनता है जो तेरा गुणगान करते हैं। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू सर्वज्ञ सर्वप्रज्ञ है।
हे मेरे ईश्वर! तू देखता है मुझे दीनता में नत्, तेरे आदेशों के प्रति स्वयं को विनत होते हुए, तेरी सम्प्रभुता के प्रति समर्पित होते हुए, तेरे अधिराज्य की सामर्थ्य से प्रकम्पित होते हुए, तेरे कोप से बचते हुए, तेरी कृपा की याचना करते हुए, तेरी क्षमाशीलता पर भरोसा किये हुए, तेरे क्रोध के भय से कम्पायमान होते हुए; मैं धड़कते हृदय, अश्रुपूरित नेत्र और याचना भरी अंतश्चेतना से और सभी वस्तुओं से पूर्ण अनासक्ति के साथ तुझसे याचना करता हूँ कि तू अपने प्रेमियों को अपने साम्राज्य के आर-पार भेदती किरणों के समान बना और अपने सेवकों को अपने पावन शब्दों का गुणगान करने में सहायता दे ताकि उनके मुखड़े प्रकाश से प्रभासित और दीप्तिमान हो सकें, उनके हृदय रहस्यों से परिपूरित हो जायें और प्रत्येक आत्मा अपने पापों से मुक्त हो सके। निर्लज्ज बन गये लोगों और अधर्मियों तथा अन्याय करने वालों से उनकी रक्षा कर। सत्य ही, तेरे चाहने वाले प्यासे हैं। हे स्वामी! उन्हें अपनी दया और कृपा के निर्झर स्रोत तक ले चल। सत्य ही, वे भूखे हैं, उन तक अपना दिव्य भोज भेज। सत्य ही, वे वस्त्रविहीन हैं, उन्हें विद्वता और ज्ञान के परिधान से विभूषित कर। वे शूरवीर हैं, हे मेरे ईश्वर! उन्हें युद्ध क्षेत्र तक ले चल। वे मार्गदर्शक हैं, उन्हें तर्कों एवं प्रमाणों से युक्त बना। वे तेरे सक्रिय सेवक हैं उन्हें सेवा में दृढ़ता की मदिरा के प्याले को सबमें बांटने वाला बना। हे ईश्वर उन्हें ऐसे गायक बना जो सुदूर उपवनों में तेरा यशोगान करते हैं। उन्हें ऐसे सिंह बना, जो जंगलों में विचरण करते हैं, उन्हें ऐसे मत्स्य बना, जो अतल गहराइयों में गोते लगाते हों। सत्य ही, तू असीम अनुकम्पाओं से परिपूर्ण है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सामर्थ्यवान, शक्तिसम्पन्न, दाता।
हे मेरे ईश्वर, तू अपने सेवकों को शब्द का प्रसार में, और जो व्यर्थ और मिथ्या है उसका खण्डन करने में, सत्य को स्थापित करने में, पवित्र छंदों को सर्वत्र प्रसार में, भव्याताओं को प्रकट करने में, और सदाचारियों के हृदयों में प्रभात के प्रकाश को अभिव्यक्त होने में सहायता दें। तू, सत्य ही, उदार, क्षमाशील है।
परमोच्च ईश्वर के नाम से! तू महिमावंत और प्रशंसित, सर्वशक्तिमंत है। तू वह है जिसके ज्ञान के समक्ष ज्ञानीजन भी नगण्य दिखते हैं, पराजित हो जाते हैं, जिसके ज्ञान के समक्ष विद्वान भी अपनी अज्ञानता स्वीकारते हैं, जिसकी सामर्थ्य के समक्ष धनवान भी अपनी निर्धनता की साक्षी देते हैं, जिसके प्रकाश के समक्ष प्रज्ञावान भी अंधकार में खो जाते हैं, जिसके ज्ञान के मंदिर की ओर समस्त ज्ञान और समस्त बोध का सार उन्मुख होता है और जिसकी उपस्थिति के अभयस्थल के चतुर्दिक समस्त मानवजाति की आत्माएँ परिक्रमा करती हैं।
तब मैं भला कैसे तेरे उस सारतत्व का उल्लेख और महिमा गान कर सकता हूँ जिसको समझने में विद्वान और ज्ञानीजन भी असफल रहे हैं, क्योंकि बिना समझे कोई भी मनुष्य उसकी महिमा गान नहीं कर सकता, न ही वह उसका वर्णन कर सकता है जहाँ तक वह पहुँच नहीं पाया है, जबकि तू तो शाश्वतकाल से अगम्य और अगोचर रहा है। भले ही मैं तेरी महिमा के आकाश और तेरे ज्ञान के साम्राज्य की ऊँचाई तक उड़ान भरने में अशक्त हूँ, लेकिन मैं तेरी उन कृतियों का वर्णन कर सकता हूँ, जो तेरे शिल्प की कथा कहते हैं। तेरी महिमा की सौगंध! हे समस्त हृदयों के परम प्रियतम्! मात्र तू ही मेरे आकुल प्राणों की वेदना शांत कर सकता है। यदि आकाश और धरती के सभी निवासी मिलकर भी तेरे चिन्हों के उस सूक्ष्मतम् अंश की महिमा का गान करने का प्रयास करें जिसके द्वारा तूने स्वयं को प्रकट किया है, तब भी वे असफल रहेंगे, फिर तेरे पावन शब्दों का कितना अधिक गुणगान होगा जो तेरे समस्त चिन्हों के जनक हैं।
समस्त स्तुति और महिमा तेरी हो ! तू, जिसकी सभी वस्तुओं ने साक्षी दी है कि तू ही है एक सत्य और तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, तू सदासर्वदा से सभी तुलनाओं और उपमाओं से परे है। सभी सम्राट तेरे सेवक हैं और सभी गोचर और अगोचर वस्तुएँ तेरे समक्ष अकिंचन मात्र हैं। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, कृपालु, शक्तिशाली, परमोच्च !
सर्वस्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर! तू, जो समस्त महिमा और भव्यता, महानता और गौरव, सम्प्रभुता और साम्राज्य, उच्चता और कृपालुता, विस्मय और शक्ति का स्रोत है। जिसे तू चाहता है उसे अपने परम महान सिंधु को स्वीकारने का सौभाग्य प्रदान करता है। और जिसे तू चाहता है उसे अपने परम महान नाम को स्वीकारने का सौभाग्य प्रदान करता है। आकाश और धरती के समस्त वासियों में से कोई भी तेरे तेरी सम्प्रभु इच्छा को पूरा होने से रोक नहीं सकता। अनादिकाल से तूने सम्पूर्ण सृष्टि पर शासन किया है और करता रहेगा तेरा ही अधिपत्य सदा समस्त सृजित वस्तुओं पर है। सर्वसामर्थ्यवान, परम उदात्त सर्वशक्तिशाली सर्वप्रज्ञ के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है।
हे स्वामी! अपने सेवकों के मुखड़ों को दीप्त कर दे और उनके हृदय को निर्मल कर दे कि वे तेरे दिव्य अनुग्रहों की ओर उन्मुख हो सकें और पहचान सकें उसे जो तेरा और तेरे दिव्य सारतत्व का उद्गमस्थल है। वस्तुतः, तू ही समस्त लोकों का स्वामी है! तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, अबाधित, सर्ववशकारी।
स्तुति हो तेरे नाम की, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! तू वह है जिसकी सभी वस्तुएँ आराधना करती हैं, जो किसी की भी आराधना नहीं करता, जो सबका स्वामी है, जो किसी के अधीन नहीं है, जो सबका ज्ञाता है और जो किसी को भी ज्ञात नहीं है। तूने मनुष्यों के मध्य अपनी पहचान करानी चाही थी इसलिये अपने मुख से निकले एक शब्द से तूने सृष्टि को अस्तित्व दिया था, ब्रह्माण्ड को स्वरूप दिया था। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, स्वरूपदाता, स्रष्टा, सामर्थ्यवान्, सर्वशक्तिवान्। तेरी इच्छा के क्षितिज पर प्रकाशमान इस एक शब्द के माध्यम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे उस जीवन-जल को ग्रहण करने के योग्य बना जिसके द्वारा तूने अपने प्रियजनों के हृदयों को अनुप्रणित और आत्माओं को चैतन्य किया है; ताकि मैं हर समय प्रत्येक परिस्थिति में पूर्णतया तेरी ही ओर उन्मुख रहूँ। तू शक्ति, महिमा और कृपा का ईश्वर है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, तू सर्वोच्च शासक, महिमावंत, सर्वदर्शी है।
महिमावंत है तू, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! मैं तेरा आभार प्रकट करता हूँ कि तूने मुझे अपने प्रकटरूप को पहचानने और अपने शत्रुओं से विरत होने योग्य बनाया है; और तेरे दिनों में उनके, द्वारा किये गये दुष्कर्मों को मेरे सम्मुख खोलकर रख दिया है और उनके प्रति मुझे आसक्तियों से मुक्त किया है और पूर्णतया तेरी दया और कृपामय अनुग्रहों की ओर उन्मुख होने में समर्थ बनाया है। मैं इसके लिये भी तेरा आभार प्रकट करता हूँ कि तूने अपनी इच्छा के मेघों द्वारा मुझ तक वह भेजा है जिसने मुझे अधर्मियों के संकेतों और अविश्वासियों के भ्रांत विचारों से इतना मुक्त कर दिया है कि मैंने अपना हृदय दृढ़ता से तुझमें लगा लिया है और ऐसे लोगों से दूर भाग आया हूँ जिन्होंने तेरे मुखारबिन्द के प्रकाश को नकार दिया है। तब मैं पुनः तेरा आभार प्रकट करता हूँ कि तूने मुझे अपने प्रेम में दृढ़ रहने का, तेरी स्तुति करने का, तेरा गुणगान करने का और तेरे उस कृपा-पात्र से पान करने का अवसर दिया है जो सभी दृश्य और अदृश्य वस्तुओं के परे है। तू सर्वशक्तिशाली, परम उदात्त, सर्वमहिमाशाली, सभी को प्रेम करने वाला है।
महिमावंत है तू हे मेरे स्वामी, मेरे ईश्वर! तेरी कृपा के पवन झकोरों के नाम से और उनके नाम से जो तेरे उद्देश्य के दिवानक्षत्र और तेरी प्रेरणा के उद्गम हैं, मैं याचना करता हूं कि मुझ पर और उन सब पर, जो तेरी ओर उन्मुख हुए हैं, वह भेज जो तेरी उदारता और आशीषयुक्त कृपा के समीचीन हो और तेरे वरदानों और अनुग्रह के अनुकूल हो। मैं एकाकी और दीन हूँ, हे मेरे स्वामी! अपनी सम्पदा के सागर में मुझे निमग्न कर ले, प्यासा हूँ, अपनी स्नेहिल कृपा के जीवन-जल का पान करने दे।
तेरे ही नाम से और उसके नाम से जिसे तूने अपने अस्तित्व का प्रकटरूप बनाया है और आकाश तथा धरती पर जो भी हैं उन्हें अपने दिव्य शब्द का बोध कराया है, मैं याचना करता हूँ कि अपने विधान के वृक्ष की छाया तले अपने सेवकों को एकत्र कर और तब इसके मधुर फल का स्वाद लेने दे, इसके पत्तों के स्पंदन से उत्पन्न होने वाले सुमधुर स्वर को समझने और इसकी शाखाओं पर चहकने वाले दिव्य पक्षी के कलरव को सुनने के योग्य बना। तू सत्य ही, संकट में सहायक, पहुँच से परे, सर्वशक्तिशाली और परम कृपालु है।
हे तू दयालु ईश्वर! ये तेरे सेवक हैं जो इस सभा में एकत्रित हुए हैं, तेरे साम्राज्य की ओर उन्मुख हैं और तेरे उपहार तथा आशीर्वाद की कामना करते हैं। हे ईश्वर जीवन के यथार्थ में निहित एकता के अपने चिन्हों को प्रमाणित और प्रकट कर। उन गुणों को प्रकट और प्रत्यक्ष कर जो मानवीय यथार्थों में अप्रकट तथा गुप्त रखे गये हैं।
हे ईश्वर, हम पौधों की भाँति हैं और तेरी कृपा वर्षा के समान है। इन पौधों को नवस्फूर्ति प्रदान कर, इन्हें अपने आशीष से विकसित कर। हम तेरे सेवक हैं, हमें भौतिक अस्तित्व की बेड़ियों से मुक्त कर। हम अज्ञानी है, हमें ज्ञानी बना। हम मृत हैं, हमें जीवन दे। हम जड़ हैं, हमें चैतन्य बना। हम वंचित हैं, हमें अपने रहस्यों का बोध करा। हम दीन हैं, हमें अपने असीम कोष से समृद्धि और आशीष प्रदान कर।
हे ईश्वर, हमें पुनर्जीवित कर, दृष्टि तथा श्रवण शक्ति प्रदान कर, जीवन के रहस्यों से परिचित करा, ताकि अस्तित्व के प्रत्येक लोक में तेरे साम्राज्य के रहस्य हम पर प्रकट हों और हम तेरी एकमेवता के साक्षी बन सकें। तू ही प्रत्येक कृपा का स्रोत है। तू समर्थ, शक्तिसम्पन्न, दाता, सदा कृपालु है।
हे तू कृपालु ईश्वर! हे तू, जो समर्थ और शक्तिशाली है। हे तू परम दयालु पिता! ये सेवक तेरी ओर उन्मुख होकर, तेरी पावन देहरी का स्मरण करते हुए और तेरे महान आश्वासन की अनन्त कृपा की कामना करते हुए एकत्रित हुए हैं। तुम्हारी सुप्रसन्नता के अतिरिक्त इनका और कोई उद्देश्य नहीं है। मानव-सेवा के अतिरिक्त इनका और कोई उद्देश्य नहीं है।
हे ईश्वर! इस सभा को दीप्त कर। इनके हृदयों को दयावान बना। पावन चेतना के आशीष इन्हें प्रदान कर। दिव्य शक्ति से इन्हें विभूषित कर। इन्हें दिव्य विवेक का आशीष दे। इनकी निष्ठा बढ़ा ताकि पूर्ण विनम्रता और सम्पूर्ण समर्पण की भावना के साथ ये तेरे साम्राज्य की ओर उन्मुख हो सकें और मानव-सेवा में लगे रहें। इनमें से प्रत्येक प्रकाशित दीप बने। इनमें से प्रत्येक जगमगाता सितारा बने। इनमें से प्रत्येक ईश्वर के साम्राज्य के सुन्दर रंग और सुरभि के संवाहक बनें।
हे दयालु पिता! अपने आशीष भेज। हमारे दोषों को न देख। अपनी सुरक्षा में हमें आश्रय दे। हमारे पापों को क्षमा कर। अपनी कृपा से हमें आरोग्य प्रदान कर। हम शक्तिविहीन हैं, तू शक्तिशाली है। हम दरिद्र हैं, तू सम्पन्न हैं ! हम रोगग्रस्त हैं, तू दिव्य चिकित्सक है! हम आवश्कताग्रस्त हैं, तू परम उदार है!
हे ईश्वर ! अपने मंगलविधान से हमें विभूषित कर। तू शक्तिशाली है ! तू कल्याणकारी है ! तू दाता है!
हे मेरे ईश्वर! हे मेरे ईश्वर! सत्य ही, ये सेवक तेरी ओर उन्मुख हो रहे हैं, तेरी दया के साम्राज्य की याचना कर रहे हैं। सत्य ही ये तेरी पावनता के प्रति आकर्षित हुए हैं और तेरे प्रेम की ज्वाला से दीप्त हो उठे हैं, तेरे महिमामय लोक की दया की कामना कर रहे हैं और तेरे दिव्य साम्राज्य में प्रवेश पाने की आशा रखते हैं। सत्य ही, ये तेरे आशीषों की वर्षा की कामना करते हैं और सत्य सूर्य से प्रकाशित होने की इच्छा रखते हैं। हे ईश्वर, इन्हें देदीप्यमान दीपक बना दे। ऐसा वर दे कि ये तेरे योग्य बन सकें, तेरे प्रेम की डोर से बंध सकें और तेरी अनुकम्पा का प्रकाश पा सकें। हे स्वामी ! इन्हें मार्गदर्शन के चिन्ह बना, अपने शाश्वत साम्राज्य का आदर्श प्रतिरूप बना, अपने कृपासागर की उत्ताल तरंगें बना, अपनी भव्यता के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करने वाला दर्पण बना।
सत्य ही, तू उदार, दयामय, अनमोल, परम प्रियतम है।
हे तू क्षमाशील स्वामी ! तेरे ये सेवक, तेरे साम्राज्य की ओर उन्मुख हो रहे हैं और तेरी अनुकम्पा और दया की कामना कर रहे हैं। हे ईश्वर, इनके हृदयों को निर्मल और पावन कर दे ताकि ये तेरे प्रेम के योग्य बन सकें। इनकी चेतना को शुद्ध एवं पवित्र कर दे ताकि सत्य सूर्य का प्रकाश इनमें चमक सके। इनके नेत्र इस योग्य बना दे कि ये तेरे प्रकाश का अवलोकन कर सकें, इन्हें अपने साम्राज्य की पुकार सुनने के योग्य बना दे।
हे स्वामी, यह सत्य है कि हम दीन-हीन हैं, लेकिन तू तो सर्वसम्पन्न है। हम याचक हैं, तू वह है जिसकी याचना सभी करते हैं। हे स्वामी! हम पर दया कर, हमें क्षमा कर दे, हमें ऐसी शक्ति और सामर्थ्य दे कि हम तेरी अनुकम्पाओं के योग्य बन सकें और तेरे साम्राज्य की ओर आकर्षित हो सकें, ताकि हम जी भरकर कर जीवन-जल का पान सकें, तेरे प्रेम की ज्वाला से प्रदीप्त हो उठें और इस प्रकाश से भरे दिवस में पावन चेतना की सांसों के सहारे पुनर्जीवित हो उठें।
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! इस सभा पर अपनी प्रेम भरी कृपालुता की दृष्टि डाल। इनमें से प्रत्येक को अपना संरक्षण प्रदान कर, अपने अधीन रख। अपने दिव्य आशीष इन्हें प्रदान कर। इन्हें अपने कृपासागर में निमग्न कर दे और अपनी पावन चेतना की सांसों द्वारा इन्हें नवजीवन प्रदान कर।
हे स्वामी! इस न्यायसंगत सभा को अपनी अनुकम्पायुक्त सहायता प्रदान कर, अपने आशीषों से सम्पुष्ट कर। ये राष्ट्र तेरे संरक्षण की आश्रय दायिनी छाया तले हैं और ये लोग तेरी ही सेवा में संलग्न हैं। हे स्वामी! इन्हें अपने दिव्य आशीष प्रदान कर और अपनी भरपूर अनुकम्पा से इन्हें भर दे। अपने साम्राज्य में इन्हें स्वीकारे जाने योग्य बना। तू शक्तिशाली, सर्वसमर्थ, दयालु और भरपूर अनुकम्पा का स्वामी है।
हे दिव्य विधाता! यह सभा तेरे उन सहचरों की है, जो तेरे सौन्दर्य के प्रति आकर्षित हुए हैं और जिनके अंतर्तम में तेरे प्रेम की ज्वाला धधक रही है। इन आत्माओं को स्वर्गिक देवदूत जैसा बना दे, नवजीवन दे कर इन्हें अपनी पावन चेतना से प्रखर कर, इनकी वाणी को ओज प्रदान कर, इन्हें संकल्प भरे हृदय दे, इन्हें दिव्य शक्ति से इस योग्य बना कि ये तेरी कृपा का भाग ग्रहण कर सकें, इन्हें मानवजाति की एकता का प्रवर्तक बना और मानव-संसार में प्रेम और मैत्री का संवाहक बना, ताकि सत्य के सूर्य के प्रकाश से ज्ञानविहीन पूर्वाग्रह का घातक अंधकार दूर हो सके, शोक-संतापों से भरा यह संसार ज्ञान के प्रकाश से दीप्त हो उठे और यह भौतिक जगत अपने में आध्यात्मिक लोक की किरणें समाहित कर ले, विविध रंग मिलकर एक रंग हो जायें और इनके द्वारा की गई प्रार्थना का स्वर माधुर्य तेरी पावनता के साम्राज्य तक पहुँच सके। सत्य ही, तू सर्वसमर्थ और सर्वशक्तिशाली है।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तेरे प्रेम की डोर थामे हुए मैं अपने घर से निकल पड़ा हूँ, मैंने पूरी तरह से तेरी देख-रेख और तेरे संरक्षण में स्वयं को सौंप दिया है। तेरी उस शक्ति के नाम से, जिससे तूने अपने प्रियजनों को राह भटकने और पतन से रोका है, दुराग्रही एवं अत्याचारियों से दूर रखा है और अपने से दूर भटके दुराचारियों से बचाया है, मैं याचना करता हूँ कि अपनी कृपा और अनुकम्पा से मुझे सुरक्षित रख। अपनी शक्ति और सामर्थ्य की शक्ति से मुझे अपने घर वापस लौटने में समर्थ बना। तू सत्य ही, सर्वशक्तिशाली, संकट में सहायक, स्वयंजीवी है।
स्तुति हो तेरी, हे स्वामी, मेरे ईश्वर! तू देखता है और जानता है कि मैंने तेरे सेवकों का अन्य किसी ओर नहीं, बल्कि बस तेरी कृपा की ओर उन्मुख होने का आह्वान किया है और इन्हें उन आदेशों का पालन करने को कहा है जो तेरे बोधगम्य निर्णय और अटल उद्देश्य के द्वारा भेजे गये हैं।
हे मेरे ईश्वर! जब तक तेरी आज्ञा न हो मैं एक शब्द भी नहीं बोल सकता और जब तक तेरी स्वीकृति न मिले न ही किसी भी ओर जा सकता हूँ। तू ही है मेरे ईश्वर जिसने अपनी सामर्थ्य की शक्ति से मुझे अस्तित्व दिया है और अपने धर्म का संदेश देने के लिये अपनी कृपा प्रदान की है। इसी कारण मुझ पर इतनी विपत्तियाँ ढ़ायी गईं हैं कि मेरी जिह्वा पर तेरा गौरवगान करने और तेरी महिमा का उद्घोष करने से रोक दी गई है।
सर्वज्ञ स्तुति हो तेरी, हे मेरे ईश्वर ! उन सब के लिये जिसका विधान अपने आदेश और अपनी सम्प्रभुता की शक्ति से तूने किया है, मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू मेरे और अपने प्रेमियों को अपने प्रेम को सुदृढ़ रख। तुझे तेरी सामर्थ्य की सौगंध, हे मेरे ईश्वर! मात्र एक पर्दे के कारण मैं तुझसे दूर होकर लज्जित हूँ। तुझे जानूं मेरा गौरव तो इसी में है। तेरे नाम की शक्ति का कवच धारण कर लेता हूँ तब कोई भी आघात चोट नहीं पहुँचा पाता और मेरे हृदय में जब तेरा प्रेम होता है तब संसार की विपदाएँ भी मुझे विचलित नहीं कर पातीं। अतः, हे मेरे ईश्वर! वर दे कि तेरे सत्य का खण्डन करने वालों और तेरे चिन्हों में अविश्वास करने वालों से मेरी रक्षा हो सके। तू ही, वस्तुतः, सर्वमहिमाशाली, सर्वकृपालु है।
महिमावंत हो तेरा नाम, हे मेरे ईश्वर! तेरे उस नाम के सहारे, जिसके द्वारा काल ठहर गया था, पुनर्जीवन सम्भव हुआ था और धरती तथा आकाश के सभी वासी भयभीत हो उठे थे, मैं याचना करता हूँ कि उन सब से, जो तेरी ओर उन्मुख हुए हैं और तेरे धर्म के कार्यों में संलग्न हैं, अपनी कृपा के आकाश और अपनी स्नेहिल करूणा के बादलों से वह बरसा जो उन सेवकों के हृदयों को उल्लसित कर दे। हे स्वामी! अपने सेवक और सेविकाओं को असद् आसक्ति और व्यर्थ-कल्पनाओं की पीड़ा से बचा और अपने ज्ञान की निर्मल जलधार से एक घूंट पीने की अनुकम्पा प्रदान कर। तू, सत्य ही, सर्वशक्तिमान, परम उदात्त, सदा क्षमाशील, और परम उदार है।
हे मेरे स्वामी, मेरे लिये और उनके लिये जो तेरे भक्त हैं, उसका विधान कर, जिसे तूने अपने मातृग्रंथ के अनुरूप हमारे लिये सर्वोत्तम समझा हो, क्योंकि तेरी मुट्ठी में सभी वस्तुओं के परिणाम बंद हैं। तेरे मंगलमय उपहार अविरल बरसते हैं उन पर सब जिन्होंने तेरे प्रेम की कामना की है। तेरी दिव्य कृपा के अद्भुत चिन्हों का भरपूर दान मिलता है उनको, जो तेरी दिव्य एकता को समझ पाये हैं। तूने हमारे लिये जो कुछ भी विधान किया है उसे हम तेरी सार-सम्भाल में अप्रित करते हैं और तुझसे विनती करते हैं कि हमको वह सब शुभ मंगल प्रदान कर जो तेरे ज्ञान की परिधि में आता है। हे मेरे स्वामी, अपनी अन्तर्दृष्टि से प्रत्येक अशुभ से मेरी रक्षा कर, क्योंकि तेरे अतिरिक्त अन्य सभी शक्तिहीन हैं और तेरे सान्निध्य के अतिरिक्त कहीं से विजय का उद्भव नहीं होता। एकमात्र तेरा ही आदेश देने का अधिकार है जो भी ईश्वर ने चाहा है, वही हुआ है और जो नहीं चाहा है वह कदापि घटित नहीं होगा। परम उदात्त, परम सामर्थ्यवान ईश्वर के अतिरिक्त और किसी में शक्ति और सामर्थ्य नहीं है।
महिमा हो तेरी, हे ईश्वर! तू वह ईश्वर है जो सभी वस्तुओं से पहले अस्तित्व में था, जो सभी वस्तुओं के पश्चात भी अस्तित्व में रहेगा तथा सभी वस्तुओं के परे कायम रहेगा। तू वह ईश्वर है जो सब कुछ जानता है तथा सभी वस्तुओं से उच्च है। तू वह ईश्वर है जो सभी वस्तुओं से दया का व्यवहार करता है, जो सभी वस्तुओं के बीच न्याय करता है और जिसकी दिव्य-दृष्टि सभी वस्तुओं को समाये हुए है। ईश्वर तू मेरा स्वामी है, तू ही मेरी स्थिति से अवगत है, तू ही मेरे आंतरिक एवं बाह्य अस्तित्व का साक्षी है।
मुझे एवं उन अनुयायियों को, जिन्होंने तेरे आह्वान का प्रत्युत्तर दिया है, क्षमा प्रदान कर। जो कोई भी मुझे दुःख देने की इच्छा रखे अथवा मेरा बुरा चाहे उसके अनिष्ट के विरुद्ध तू मेरा पर्याप्त सहायक बन। वस्तुतः, तू समस्त सृजित वस्तुओं का स्वामी है। तू सभी के लिये पर्याप्त है, जबकि तेरे सिवा कोई भी स्वःनिर्भर नहीं।
ईश्वर के नाम से, जो सबको वश में करने वाली भव्यता का स्वामी है, सर्वसम्मोहक है !
परम पावन वह स्वामी है, जिसके हाथ में साम्राज्य का स्रोत है। वह जो चाहता है सृजन करता है, अपने उस शब्द के माध्यम से ”हो जा“ के आदेश से और वह हो जाता है। शासन की शक्ति पहले भी उसी की थी और आगे भी उसी की रहेगी। अपने आदेश की शक्ति से वह जिसे चाहे विजयी बनाता है। सत्य ही, वह सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान है। प्रकटीकरण और सृष्टि के साम्राज्य में, जो भी है और जो भी इनके मध्य है, समस्त महिमा और भव्यता उसी की है। सत्य ही, वह सर्वसमर्थ, सर्वमहिमावंत है। सदासर्वदा से वह अदम्य शक्ति का स्रोत रहा है और अनन्तकाल तक रहेगा। धरती और आकाश के समस्त लोक ईश्वर के हैं; उसकी शक्ति सर्वव्यापी है। धरती के समस्त खज़ाने और जो भी इनके मध्य है, सब उसी के हैं और उसके संरक्षण की छत्रछाया तले समस्त वस्तुओं से परे है। धरती और आसमानों का वही स्रष्टा है, और जो भी इनके मध्य स्थित है, सत्य ही, वह सर्वोपरि साक्षी है। धरती और आकाश के समस्त वासियों और जो भी इनके मध्य स्थित हैं, उन सबका वही निर्णायक है। सत्य ही, वह ईश्वर तत्क्षण निर्णय लेता है। वही है धरती और आकाश के समस्त वासियों और जो भी इनके मध्य स्थित है, उन सबके लिये अंशों का निर्धारक वस्तुतः, वही है सर्वोच्च संरक्षक; उसकी मुट्ठी में कैद हैं धरती और आकाश और जो भी इनके मध्य स्थित हैं इनके मध्य की कुंजी है। वह अपने आदेश की शक्ति के माध्यम से स्वयं अपनी ही प्रसन्नता से, उपहारों का दान देता है। वस्तुतः वह सभी कुछ का जानने वाला है और उसकी कृपा सभी कुछ को अपनी परिधि में लिये हुए है।
कहो, ईश्वर मेरा सर्वोपरि परिपूरक है, उसकी मुट्ठी में समस्त वस्तुओं का साम्राज्य कैद है। धरती और आकाश, और जो कुछ भी इनके मध्य है, उन सबकी वह रक्षा करता है। ईश्वर सत्य ही, समस्त वस्तुओं पर अपनी दृष्टि रखता है।
हे स्वामी, तू अपरिमेय रूप से उदात्त है! हमारे समक्ष और हमारे पीछे, हमारे सिर के ऊपर, हमारे दायें और बायें, हमारे पैरों तले, और प्रत्येक उस दिशा से जिससे भी हम असुरक्षित हैं, उन सबसे हमारी रक्षा कर। वस्तुतः समस्त पदार्थों पर तेरा संरक्षण अचूक है।
हे ईश्वर! मेरे ईश्वर्! अहम् और वासना की आसुरी प्रवृत्तियों से अपने सत्यनिष्ठ सेवकों की रक्षा कर, अपनी स्नेहमयी दयालुता की सदा सावधान दृष्टि द्वारा प्रत्येक विद्वेष, घृणा और ईर्ष्या से इन्हें बचा, अपनी सार-सम्भाल के अभेद्य दुर्ग में इन्हें आश्रय दे और संदेहों के बाणों से इनकी रक्षा कर, इन्हें अपने महिमामय चिन्हों के मूर्तरूप बना। अपनी दिव्य एकता के सूर्य से निकलने वाली दीप्तिमान किरणों से इनके मुखड़ों को आलोकित कर, अपने दिव्य साम्राज्य से प्रकट किये गये छंदों द्वारा इनके हृदयों को आनन्दित कर दे, अपने परमलोक से आने वाली सर्वसमर्थ शक्ति द्वारा इन्हें समर्थ बना।
तू सर्वप्रदाता, सर्वरक्षक, सर्वसामर्थ्यशाली और सर्वकृपालु है।
महिमा हो तेरी, हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! तेरे नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ जिसके द्वारा तूने अपने मार्गदर्शन की ध्वजाओं को उच्च किया है और अपनी स्नेहमयी कृपालुता की कीर्ति-प्रभा बिखेरी है और अपने स्वामित्व की सत्ता को प्रकट किया है, जिसके द्वारा अपने नामों का दीपक अपने गुणों के निवास में तूने आलोकित किया है; और जिसके द्वारा वह, जो तेरी एकता का मण्डप-वितान और अनासक्ति का मूर्तरूप है, प्रकट हुआ है; जिसके माध्यम से तेरे मार्गदर्शन के पथों का ज्ञान हुआ है, तेरी प्रसन्नता के मार्ग रेखांकित किये गये हैं, जिसके द्वारा पाप करने वालों की नींव हिला दी गई है और दुष्टता के चिन्ह मिटा दिये गये हैं, जिसके द्वारा प्रज्ञा के निर्झर स्रोत प्रगट हुए हैं और दिव्य भोज की पाती भेजी गई है, जिसके द्वारा तूने अपने सेवकों को सुरक्षित किया है और अपनी सुकोमल दया उनके प्रति प्रकट की है और अपने प्राणियों के मध्य अपनी क्षमाशीलता दिखाई है, उसके नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि जो दृढ़ बना रहा है और जो तुझ तक वापस लौट आया है और तेरी दया की डोर थामे हुए है और तेरे प्रेमपूर्ण मंगल-विधान के परिधान की छोर से जुड़ा रहा है, उसे सुरक्षित रख और उसे तेरे द्वारा प्रदान की गई निरन्तरता से और तेरी इस उदात्त सत्ता से प्रदत्त प्रशांतता से मंडित कर। तू निश्चय ही आरोग्यदाता, संरक्षणदाता, सहायक, सर्वशक्तिमान, बलशाली, सर्वमहिमामय, सर्वज्ञाता है।
महिमा हो तेरी, हे अनन्तता के सम्राट, राष्ट्रों के निर्माता और प्रत्येक जर्जर होती अस्थि के स्वरूपदाता! मैं तेरे उस नाम से प्रार्थना करता हूँ, जिसके द्वारा तूने समस्त मानवता का अपनी भव्यता और महिमा के क्षितिज की ओर आह्वान किया है और अपने सेवकों को अपनी गरिमा और अनुकम्पा के प्रांगण की राह दिखलाई है, कि तू मेरी गिनती उनमें कर जिन्होंने स्वयं को तेरे सिवा अन्य सभी कुछ से अनासक्त कर लिया है; और तेरी ओर बढ़ चला है और जिन्हें तेरे द्वारा भेजी गई परीक्षायें भी तेरे उपहारों की दिशा में मुड़ने से रोक नहीं पायी हैं। हे मेरे ईश्वर! तेरी कृपा की डोर को दृढ़ता से थामे हुए मैं तेरे अनुग्रह के परिधान के आंचल के लिपटा हुआ हूँ। अतः, मेरे ऊपर अपनी उदारता के मेघों से वर्षा कर जो मुझे तेरे अतिरिक्त अन्य सभी के स्मरण से मुक्त कर दे और मुझे उसकी ओर उन्मुख होने के योग्य बना दे जो समस्त मानवजाति की आराधना का लक्ष्य है; जिसके विरूद्ध द्रोह भड़काने वालों, संविदा तोड़ने वालों और तुझ पर और तेरे चिन्हों पर अविश्वास करने वालों ने व्यूह रचना की है।
हे मेरे स्वामी, अपने दिवसों में मुझे अपने परिधान की सुरभि से वंचित न कर और अपने मुखड़े के प्रभापुंजों के प्रकटीकरण की घड़ी में अपने धर्म प्रकाशन के उच्छ्वासों से मुझे अलग न रख। तू जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ है। तेरी इच्छा का उल्लंघन कोई भी नहीं कर सकता और न ही जिसे तूने अपनी शक्ति से निर्मित किया है, उसे कोई विफल कर सकता है।
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, सर्वसमर्थ, सर्वप्रज्ञ।
वह सर्वशक्तिशाली, क्षमाशील, करुणामय है! हे ईश्वर मेरे ईश्वर! तू देखता है अपने इन सेवकों को जो द्रोह और भूलों की गर्त में पड़े हैं, तेरे दिव्य मार्गदर्शन की वह ज्योति कहाँ है? हे तू, विश्व की कामना! तू उनकी निस्सहायता और निर्बलता को जानता है। तेरी शक्ति कहाँ है, जिसके अधीन धरती और आकाश की समस्त शक्ति है?
तेरी स्नेहिल दया के प्रकाश के तेज के नाम से, तेरी प्रज्ञा के महासागर की तरंगों के नाम से, तेरी उस वाणी के नाम से, जिसने अपने साम्राज्य के जनों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया है, मैं याचना करता हूँ, हे मेरे स्वामी! कि तू मुझको वर दे कि मैं उनमें से एक बनूं जिन्होंने तेरे ग्रंथ में विहित आदेशों का पालन किया है। मेरे लिये उसका विधान कर, जिसका विधान तूने अपने विश्वासपात्र सेवकों के लिये किया है, जिन्होंने तेरे कृपा-पात्र से दिव्य प्रेरणा की मदिरा का पान किया है और जो तेरी प्रसन्नता के लिये, तेरी संविदा में अडिग रहे हैं और तेरे विधानों के पालन की ओर अग्रसर हुए हैं। तू जैसा चाहे वैसा करने में समर्थ है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू सर्वज्ञ, सर्वप्रज्ञ है।
हे स्वामी अपनी कृपा से मेरे लिये उसका आदेश दे जो इहलोक और परलोक में मुझे समृद्ध बनाये और तेरे निकट ले आये। हे तू, जो सभी मनुष्यों का स्वामी है ! तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है, एकमेव, शक्तिमान, महिमावंत।
हे मेरे ईश्वर! अपनी राह में हमारे पगों को अडिग बना, हमारे हृदयों को अपने आदेश के पालन में समर्थ बना। अपनी एकता के सौन्दर्य की ओर हमें उन्मुख कर और हमारे अन्तर्मन को अपनी दिव्य एकता के चिन्हों से आह्लादित कर दे। अपनी कृपा के परिधान से हमारी काया को सजा दे। हमारी आँखों के सामने से पाप कर्मों के पर्दे हटा दे और हमें अपनी कृपा का वह पात्र दे जिससे तेरी भव्यता की अनुभूति कर सभी तेरा स्तुति करने लगे। अपनी कृपालु जिह्वा और अपने रहस्यमय अस्तित्व से तब वह प्रकट कर, हे मेरे ईश्वर, कि हमारी आत्माएँ प्रार्थना के अतिरेक से भर उठें और सभी पदार्थ तेरे प्रकटीकरण के प्रभापुंज के समक्ष अस्तित्वहीन हो जायें; ऐसी प्रार्थना जो शब्दों, स्वरों और समस्त संकेतों से परे, हृदय से निकली हो। हे ईश्वर, ये वे सेवक हैं जो तेरी संविदा और तेरे विधानों के अनुपालन में अडिग और अटल रहे हैं, जो तेरे धर्म के प्रति निष्ठा की डोर थामे हुए हैं और तेरे प्रताप के परिधान की आँचल से लिपटे हुए हैं। इन्हें अपनी अनुकम्पा दे, इनकी सहायता कर। हे मेरे ईश्वर! अपनी आज्ञापालन में इन्हें अडिग बना और अपनी शक्ति से इन्हें सम्पुष्ट कर। तू क्षमाशील, करुणामय है।
हे करुणामय ईश्वर! धन्यवाद हो तेरा कि तूने मुझे जगाया, चेतना दी। देखने के लिये मुझे आँखे दीं और मुझे समर्थ कान दिये। तूने अपने साम्राज्य की राह दिखलाई, तूने मुझे सच्चा पथ दिखलाया और मुझे मुक्ति की नौका में प्रवेश दिया है। हे ईश्वर! मुझे अडिग बनाये रख और मुझे निष्ठा में अटल बना। प्रचण्ड परीक्षाओं से मेरी रक्षा कर अपनी संविदा के मंदिर और विधानों के दुर्ग में मुझे संरक्षण दे। तू सर्वदृष्टा है, तू सब की सुनने वाला है।
हे तू करुणामय ईश्वर! मुझे एक ऐसा हृदय प्रदान कर जो दप्रण की भाँति तेरे प्रेम की ज्योति से प्रकाशित हो और अपनी दिव्य कृपा की वर्षा से मुझे ऐसे विचारों का दान दे, जो इस संसार को एक गुलाब वाटिका में बदल दे।
तू करुणामय, कृपालु, कल्याणकारी ईश्वर है।
हे मेरे स्वामी और, मेरी आशा! तू अपने इन प्रियजनों को तेरी परम सामर्थ्यमय संविदा में अडिग रहने में, और तेरे इस प्रकटित धर्म के प्रति निष्ठावान रहने में, तेरे महिमाओं के ग्रंथ में विहित आदेशों का पालन करने में सहायता कर जिससे कि ये दिव्य लोक के सहचरों के मार्गदर्शन की ध्वजा और दीपक बन सकें, तेरी अनन्त प्रभा के निर्झर स्रोत और सच्चा पथ दिखाने वाले वे तारक बन सकें, जो उस दिव्य गगन से जगमगाते हैं।
निश्चय ही तू अजेय, सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान् है।
हे तू, जिसका मुखड़ा मेरी आराधना का लक्ष्य है, जिसका सौन्दर्य मेरा अभयस्थल है, जिसका आवास मेरा ध्येय है, जिसकी स्तुति मेरी आशा है, जिसका मंगल विधान मेरा सहचर है, जिसका प्रेम मेरे अस्तित्व का कारण है, जिसका स्मरण मेरी आशा है, जिसकी निकटता मेरी इच्छा है, जिसकी समीपता मेरी सर्वाधिक प्रिय इच्छा और सर्वोच्च आकांक्षा है। मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझे उन वस्तुओं से वंचित न कर, जिसका विधान तूने अपने चुने हुए सेवकों के लिये किया है। अतः, मुझे इहलोक और परलोक का शुभ प्रदान कर।
सत्यतः, तू ही, समस्त मानवजाति का सम्राट है। तू सदा क्षमाशील, परम उदार है, तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है !
मेरे ईश्वर, मेरे आराध्य, मेरे राजाधिराज, मेरी कामना! कौन सी जिह्वा तेरा धन्यवाद कर सकती है। मैं असावधान था, तूने मुझे जगाया। मैं तुझसे विमुख हो गया था, तूने मुझे अपनी ओर उन्मुख होने में सहायता दी, मैं तो मृतप्राय था, तूने मुझे जीवन के जल से चैतन्य किया। मैं मुरझा गया था, तूने उस सर्वदयामय की लेखनी से प्रवाहित अपनी वाणी की दिव्य धार से फिर से जीवन का दान दिया।
हे दिव्य मंगल विधान! समस्त अस्तित्व तेरे दातारपन से उत्पन्न हुए हैं, उसे अपनी उदारता के जल से वंचित मत कर और न ही तू उसे अपनी दया के महासिंधु तक आने से रोक। मैं तुझसे याचना करता हूँ कि सभी कालों और सभी परिस्थितियों में मुझे सहारा दे, मेरी सहायता कर। मैं तेरी कृपा के आकाश से तेरी उस पुरातन कृपा की कामना करता हूँ। तू सत्य ही, अक्षय सम्पदाओं का ईश्वर है और चिरंतनता के साम्राज्य का सम्प्रभु स्वामी है।
कहो, हे ईश्वर! मेरे ईश्वर! मेरे मस्तक को न्याय के मुकुट से और मेरे ललाट को समता के आभूषण से विभूषित कर दे। तू सत्य ही, वरदानों और अक्षय सम्पदाओं का अधीश्वर है।
हे ईश्वर! तेरे परम महिमाशाली नाम पर मैं तुझसे याचना करता हूँ कि तू उस कार्य में मेरी सहायता कर जो तेरे सेवकों के कार्यकलापों को ऋद्धि-सिद्धि दे और तेरे नगरों को समृद्धि दे। सत्य ही, तेरी शक्ति का आधिपत्य सभी वस्तुओं पर है।
हे मेरे ईश्वर, मेरे स्वामी और मेरे मालिक! मैंने अपने बंधु-बाँधवों से स्वयं को अनासक्त कर लिया है और तेरे माध्यम से धरती पर निवास करने वालों से स्वतंत्र होने की इच्छा की है; सदा वह प्राप्त करने के लिये तत्पर रहा हूँ जो तेरी दृष्टि में प्रशंसनीय है। मुझे वह शुभ प्रदान कर जो मुझे तेरे अतिरिक्त अन्य सभी से स्वतंत्र कर दे तथा मुझे अपने अपार अनुग्रहों का प्रचुर हिस्सा प्रदान कर। वस्तुतः तू अपार कृपा का स्वामी है।
हे ईश्वर! हम दयनीय हैं, हमें अपनी दया का दान दे। हम दरिद्र हैं, अपनी सम्पदा के महासागर से हमें एक अंश प्रदान कर; हम अभावग्रस्त हैं, हमारी आवश्यकता पूरी कर; हम पतित है, अपनी महिमा प्रदान कर। नभचर के पक्षी और धरती के पशु प्रतिदिन अपना आहार तुझसे ही प्राप्त करते हैं, और सभी प्राणी तेरी सार-सम्भाल और प्रेमपूर्ण कृपालुता का भाग पाते हैं।
इस निर्बल को अपनी अलौकिक कृपा से वंचित न कर और इस असहाय आत्मा को अपनी शक्ति के द्वारा अपनी अक्षय सम्पदाओं का दान दे।
हमें हमारा नित्य-प्रति का आहार प्रदान कर और हमारे जीवन की आवश्यकताओं को अपनी ऋद्धि-सिद्धि का दान दे, जिससे हम तेरे सिवा अन्य किसी पर निर्भर न रहें, पूर्णतया तेरे ही स्मरण में लीन रहें, तेरे पथ पर चलें, और तेरे रहस्यों को उजागर करें। तू सर्वशक्तिमान, सबको प्रेम करने वाला और मानवजाति का पालनहार है।
हे तू दयालु ईश्वर! हम तेरी पावन देहरी के सेवक हैं, तेरे पावन द्वार का आश्रय लिये हुए हैं। हम इस सुदृढ़ स्तम्भ के अतिरिक्त अन्य किसी की आश्रय की चाह नहीं रखते, तेरी सुरक्षा भरी देखभाल के अतिरिक्त किसी अन्य आश्रय की ओर नहीं मुड़ते। अतः हमारी रक्षा कर, हमें आशीष दे, हमें सहारा दे। हमें ऐसा बना दे कि जो तुझे प्रिय है उसके अतिरिक्त किसी अन्य से प्रेम न करें, केवल तेरी ही स्तुति करें, सदा सत्य के मार्ग पर चलें, हम इतने समृद्ध हो जायें कि तेरे अतिरिक्त अन्य सभी को त्याग सकें, हम तेरी कृपा के सागर से अपना भाग पायें, हम तेरे धर्म को उच्चता प्रदान करने और तेरी सुमधुर सुरभि को दूर-दूर तक फैलाने के प्रयासों में जुट जायें, हम अपने अहम् को भूल जायें और केवल तुझमें ही रम जायें और तेरे अतिरिक्त अन्य सब का त्याग कर तुझमें ही तल्लीन रहें।
तू दाता, क्षमाशील है! हमें अपनी अनुकम्पा और स्नेहिल कृपा प्रदान कर, अपने उपहार दे, हमारा पोषण कर, ताकि हम अपने लक्ष्य को पा सकें। तू शक्तिसम्पन्न, सुयोग्य, ज्ञाता और दिव्य द्रष्टा है। सत्य ही तू उदार है, सत्य ही तू सर्वकृपालु है और सत्य ही तू सदा क्षमाशील है। तू वह है जिसके समक्ष पश्चाताप करने वाले के समस्त पापों को भी तू क्षमा का दान दे देता है।
हे स्वामी! तेरे नाम पर बिछाये गये इस आनन्दमय पटल को हटा मत और उस प्रज्ज्वलित शिखा को, जो तेरी कभी न बुझने वाली अग्नि द्वारा प्रज्वलित की गई है, बुझा मत। उस प्रवाहमान जीवंत जल को, जो तेरी महिमा और तेरे स्मरण की सुमधुर ध्वनि को गुंजरित करते हैं, प्रवाहित होने से मत रोक और अपने सेवकों को अपने प्रेम से सुवासित तेरी मधुर सुगंध की सुरभि से वंचित मत कर।
हे स्वामी! अपने विशुद्धजनों की कष्टदायक चिन्ताओं को दूर कर, उनकी कठिनाइयों को सुख में, उनके अपमान को महिमा में, उनके शोक को आनन्द में बदल दे। हे तू, जो अपनी मुट्ठी में सम्पूर्ण मानवता की नियति की ड़ोर थामे हुए है। तू सत्य ही एकमेव, सामर्थ्यशाली, सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ है।
हे मेरे ईश्वर, मेरे प्रियतम, मेरी आकांक्षा! मेरे एकाकीपन में मेरा सखा और मेरी इस निष्कासित अवस्था में मेरा संगी बन, मेरे शोक का निवारण कर, ऐसी कृपा कर कि मैं तेरी कीर्ति को समर्पित हो जाऊँ। अपने अतिरिक्त अन्य सब कुछ से मुझे विरक्त कर दे। अपनी पावनता की सुरभि द्वारा मुझे आकर्षित कर ले। ऐसी कृपा कर कि मैं तेरे लोक में उनका संगी बनूं, जो तुझे छोड़ अन्य सभी से अनासक्त हैं, जो तेरी पावन देहरी की सेवा की कामना रखते हैं और जो तेरे धर्म का कार्य करने के लिये कटिबद्ध खड़े हैं। मुझे सामर्थ्य दे कि मैं तेरी उन सेविकाओं में एक बन जाऊँ, जिन्होंने तेरी मंगलमय प्रसन्नता प्राप्त की है। सत्य ही, तू कृपालु है, उदार है।
हे दिव्य विधानकर्ता! हम दया के पात्र हैं, हमें अपनी सहायता दे, घर विहीन बटोही हैं हम, अपनी शरण का दान दे, बिखरे हुए हैं हम, तू हमें एक कर दे, हम भटके हुए राही हैं, अपनी शरण में ले ले हमें, हम वंचित हैं, हमें अपना अंश मात्र दे दे, हम प्यासे हैं, हमें जीवन-सरिता की राह दिखा दे, हम दुर्बल हैं, हमें सबल बना दे, ताकि हम तेरे धर्म की सहायता हेतु उठ खड़े हों और तेरे मार्गदर्शन की राह पर चलकर अपना जीवन न्योछावर कर सकें।
हे ईश्वर! हम निर्बल हैं, हमें सबल बना। हम अज्ञानी हैं, हमें ज्ञानवान बना। हे स्वामी ! हम दरिद्र हैं, हमें सम्पन्न बना। हे ईश्वर! हम प्राणहीन हैं, हमें चैतन्य से अनुप्राणित कर। हे स्वामिन्! हम मूर्तिमान दीनता हैं, अपने साम्राज्य में हमें महिमावन्त बना! हे ईश्वर! यदि तू हमें सहायता नहीं देगा तो हम मिट्टी से भी अधम बन जायेंगे। हे स्वामी! हमें शक्तिमय बना, हे ईश्वर! हमें विजय प्रदान कर। हे ईश्वर, हमें अहम् को जीतने और वासनाओं को वश में करने में समर्थ बना। हे स्वामी! इस भौतिक जगत के बंधनों से हमें मुक्त कर। हे स्वामी! अपनी पावन चेतना के उच्छ्वास से हममें जीवन का चैतन्य भर, जिससे हम तेरी सेवा करने को उठ खड़े हों, तेरी उपासना में संलग्न हो जायें, और अत्यधिक सत्यनिष्ठा सहित, तेरे राज्य की सेवा के प्रयासों में जुट जायें। हे ईश्वर! तू शक्तिशाली, क्षमाशील, करूणामय है!
हे तुम, जो ईश्वर की ओर उन्मुख हो रहे हो! अपने नेत्र अन्य सभी वस्तुओं के प्रति मूंद लो और उस सर्वमहिमामय के साम्राज्य के प्रति उन्हें खोल लो। तुम्हारी जो कुछ भी कामना हो, केवल एक उसी से मांगो, जो कुछ भी तुम पाना चाहो, केवल उसी से याचना करो। एक दृष्टि में ही वह लाखों आशाओं की पूर्ति करता है, एक नज़र से ही वह हर घाव पर शीतल मरहम लगा देता है, एक संकेत मात्र से ही वह शोक की बेड़ियों से हृदयों को सदा के लिए मुक्त कर देता है। वह जो करता है, करता ही है और हमारे पास कौन सा उपाय है? जो उसकी इच्छा होती है वह उसे पूरा करता है, जो उसे प्रिय होता है वह वैसा ही विधान प्रकट करता है। तब तुम्हारे लिये यही उचित है कि तुम अधीनता में अपना सर झुका लो और सर्वदयामय ईश्वर में सम्पूर्ण भरोसा रखो।
(अधिदिवस उपवास, चार दिन (पाँच दिन अधि वर्ष में) बहाई वर्ष के अंतिम माह ’उच्चता‘ के पहले आते हैं (26 फरवरी से 1 मार्च़) बहाउल्लाह ने ’किताब-ए-अक़दस’ में आदेशित किया। इन दिनों को ’अय्याम-ए-हा’ के दिवस के रूप में सम्मिलित किया ये दिवस आध्यात्मिक रूप से उपवास की तैयारी को समर्पित होते हैं,। परोपकार, अतिथि-सत्कार, दान और उपहार देने के दिवस हैं।)
मेरे ईश्वर, मेरी अग्नि और मेरे प्रकाश! वे दिन जिन्हें तूने ”अय्याम-ए-हा“ (हा के दिवस, या अधिदिवस) अपने ग्रंथ में कहा है, प्रारम्भ हो गये हैं। हे तू, जो नामों का सम्राट है, और उपवास जिसे तेरी परमोच्च तूलिका ने उन सभी के लिए के लिये आदेशित किया है जो तेरी सृष्टि के साम्राज्य में निवास करते है, निकट आ रहे हैं। इन दिनों के नाम से और उन सबके नाम से जो इस दौरान तेरे आदेशों की बागडोर को दृढ़ता से थामे हुए हैं और जो तेरी शिक्षाओं से अभिभूत हैं, मैं तुझसे विनती करता हूँ, हे मेरे स्वामी, कि प्रत्येक आत्मा के लिये अपने प्रांगण में एक स्थान नियत कर और तेरे मुखारबिंद की ज्योति की भव्यता के प्रकटीकरण में प्रत्येक को एक आसन दे।
हे स्वामी ! तूने अपनी परम पावन पुस्तक में जो कुछ भी निर्दिष्ट किया है उससे कोई भी भ्रष्ट प्रवृत्ति उन्हें विमुख नहीं कर पाई है। ये तेरे धर्म के सम्मुख नत हुए हैं और तेरी परम पावन पुस्तक का इन्होंने ऐसे दृढ़ संकल्प से स्वागत किया है जो संकल्प स्वयं तुझसे जनित है। तूने उनके लिये जो भी आदेश दिया है उसका इन्होंने पालन किया है और जो कुछ तेरे द्वारा भेजा गया है उसके अनुसरण का चयन किया है।
तू देखता है, हे मेरे स्वामी, उन्होंने कैसे तेरे द्वारा तेरी पावन पुस्तक में प्रकटित सब कुछ को पहचाना और स्वीकार किया है। उन्हें, हे मेरे स्वामी, अपनी उदारता के हस्त से अपनी शाश्वत जलधाराएँ पीने को दे और तब उनके लिये वह पुरस्कार लिख जो तेरी निकटता के महासिंधु में निमग्न होने वालों के लिये और तुझसे मिलन की दिव्य मदिरा को प्राप्त करने वालों के लिये नियत किया गया है। मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे राजाधिराज! कि उनके लिये इहलोक तथा परलोक का शुभ-मंगल विधान कर और उनके लिये वह अंकित कर जो तेरा कोई भी प्राणी नहीं खोज पाया है और उनकी गणना ऐसे लोगों के साथ कर जिन्होंने तेरे चतुर्दिक परिक्रमा की है और जो तेरे लोकों में से प्रत्येक लोक में, तेरे सिहांसन की परिधि की परिक्रमा करते हैं।
तू सत्य ही, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, सर्वसूचित है।
(अधिदिवस उपवास माह के पहले आते हैं और उपवास की तैयारी के दिन होते हैं, ये अतिथि-सत्कार, दान और उपहार देने के दिन होते हैं।)
मेरे ईश्वर, मेरी महाज्वाला और मेरी महाज्योति! वे दिन प्रारम्भ हो गये हैं जिन्हें तूने अपने ग्रंथ में ”अय्याम-ए-हा“ के दिन कहा है। हे तू, जो नामों का अधिपति है, वह उपवास निकट आ रहा है, जिसे करने का आदेश तेरी परमोच्च लेखनी ने उन सभी को दिया है जो तेरी सृष्टि के साम्राज्य में निवास करते हैं। इन दिनों के नाम पर और उन सबके नाम पर जो इस दौरान तेरे आदेशों की डोर को दृढ़ता से थामे रहे हैं और जो तेरी शिक्षाओं से अभिभूत हैं, मैं विनती करता हूँ तुझसे, हे मेरे नाथ, कि प्रत्येक आत्मा के लिये अपने दरबार में एक स्थान नियत कर और तेरे मुखारबिंद की ज्योति की भव्यता के प्रकटीकरण में प्रत्येक को एक आसन दे।
हे नाथ! तुमने अपनी परम पावन पुस्तक में जो भी विहित किया है उनसे विमुख नहीं कर पाई है उन्हें कोई भी भ्रष्ट प्रवृत्ति। ये तेरे धर्म के सम्मुख नत हुए हैं और तेरे परम पावन ग्रन्थ का इन्होंने ऐसे दृढ़ संकल्प से स्वागत किया है जो संकल्प स्वयं तुझसे जन्म लेता है। तूने उनके लिये जो भी आदेश दिया है उसका इन्होंने पालन किया है और जो कुछ तेरे द्वारा भेजा गया है उसके अनुसरण को चुना है।
देखता है तू, हे मेरे नाथ, कैसे उन्होंने तेरे द्वारा तेरे पावन ग्रंथों में प्रकटित सब कुछ को पहचाना और स्वीकार किया है। उन्हें, हे मेरे नाथ, अपनी कृपालुता के हाथों से अपनी चिरंतनता की जलधाराएँ पीने दे और तब उनके लिये वह पुरस्कार लिख दे जो तेरे सान्निध्य के महासिंधु में निमग्न होने वालों के लिये और तुझसे मिलन की श्रेष्ठ सुरा को प्राप्त करने वालों के लिये नियत किया गया है। मैं याचना करता हूँ तुझसे, हे राजाधिराज! कि उनके लिये इस लोक और उस लोक का मंगल विधान कर और उनके लिये वह अंकित कर जो तेरा कोई भी प्राणी नहीं खोज पाया है और उनकी गिनती ऐसे लोगों के साथ कर जिन्होंने तेरे चारों ओर परिक्रमा की है और जो तेरे लोकों में से प्रत्येक लोक में, तेरे सिहांसन के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। तू सत्य ही, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञाता, सर्वसूचित है।
स्तुति हो तेरी, हे स्वामी मेरे ईश्वर! मै तुझसे इस प्रकटीकरण के माध्यम से याचना करता हूँ जिससे अंधकार प्रकाश में परिवर्तित हो गया है, जिसके माध्यम से बार-बार उपासना स्थल का निर्माण हुआ है और लिखित पाती प्रकट की गई है, और वह विस्तारित नामावली अनावृत हुई है, मैं तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे और उन्हें, जो मेरे संगी हैं, वह प्रदान कर जो हमें तेरी सर्वातीत महिमा के आकाश में ऊँचे विचरण करने में समर्थ बनाये और हमें ऐसे सन्देहों के कलुष से मुक्त कर दे जिन्होंने शंकाशील लोगों को तेरी एकता की छत्रछाया में आने से रोका है।
मैं वह हूँ, हे मेरे ईश्वर, जिसने तेरी स्नेहमयी उदारता की डोर को दृढ़ता से थाम लिया है और तेरी दया और तेरी अनुकम्पा के आंचल से बंधा हुआ है। तू मेरे लिये और मेरे प्रियजनों के लिये इहलोक और परलोक के शुभ-मंगल का विधान कर और तब उन्हें वह गुप्त उपहार प्रदान कर जिसका विधान तूने अपने सबसे चुने हुए जनों के लिये किया है।
ये वे दिन हैं, हे मेरे ईश्वर, जिसमें तूने अपने सेवकों को उपवास धारण करने का आदेश दिया है। वह धन्य हैं जो मात्र तेरे लिये और तेरे अतिरिक्त अन्य समस्त वस्तुओं से पूर्णतया अनासक्त होकर, उपवास धारण करता है। हे मेरे ईश्वर! मेरी सहायता कर और उन्हें भी सहायता दे, कि हम सब तेरी आज्ञा का पालन करें और तेरी शिक्षाओं पर चलें। सत्य ही तू अपनी इच्छानुसार सब कुछ करने में समर्थ है।
तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं। तू सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ है। स्तुति हो ईश्वर की, अखिल लोकों के ईश्वर की।
परम पावन पुस्तक ”किताब-ए-अक़दस“ में लिखा है:
”हमने प्रौढ़ता (15 वर्ष की आयु) प्राप्त करने के प्रारम्भ से ही तुम्हें प्रार्थना एवं उपवास रखने का आदेश दिया है। यह ईश्वर द्वारा निर्धारित विधान है, जो तुम्हारा और तुम्हारे पूर्वजों का स्वामी है। इस दायित्व से उसने उन्हें मुक्त किया है जो बीमार या अधिक आयु के कारण अशक्त हैं।.....यात्रा करने वाले, बीमार तथा वे महिलाएँ जो बच्चों के साथ हैं या स्तनपान कराती हैं उन्हें अपनी करुणा के संकेतस्वरूप ईश्वर ने इस नियम से मुक्त रखा है।....सूर्योदय से सूर्यास्त तक खान-पान से परहेज कर और सावधान रह कि तेरी वासना इस पुस्तक में निर्दिष्ट इस कृपा से तुझे वंचित न कर दे।“
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे समर्थ चिन्ह के नाम से और मानवों के मध्य तेरे अनुग्रह के प्रकटीकरण के नाम से कि मुझे अपनी निकटता के नगर द्वार से दूर न हटा। तेरे प्राणियों के मध्य व्याप्त तेरी कृपा की जो मैंने आशा की है, उसे निराशा में न बदल। हे मेरे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे ईश्वर, तेरी मधुर वाणी और तेरे महान शब्द के नाम से कि मुझे निरंतर अपनी देहरी के निकट ला और मुझे अपनी दया की छाया और अपनी उदारता के चंदोवे से दूर न हटा। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इस इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे तेजोमय भाल की प्रभा और तेरे मुखड़े की उस ज्योति की उज्ज्वलता के नाम से जो उस सर्वोच्च क्षितिज से आलोकित होती है कि मुझे अपने परिधान की सुरभि से आकर्षित कर और मुझे अपनी वाणी की दिव्य मदिरा का पान करा। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे उन केशों के नाम से जो तेरी सृष्टि के साम्राज्य में गूढ़ अर्थों की कस्तूरी सुगंध फैलाते हुए तेरे मुखमंडल पर उस समय लहराते हैं जब तेरी यशस्वी तूलिका तेरी पातियों के पृष्ठों पर गतिशील होती है, कि मुझे तेरे धर्म की सेवा करने के लिये ऐसी शक्ति दे कि मैं पीछे न हटूँ और न ही उनके संकेतों से बाधित हो पाऊँ जो तेरे चिन्हों को अस्वीकार कर चुके हैं और तेरे मुखड़े से विमुख हो गये हैं। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मै तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे नाम से, जिसे तूने नामों का सम्राट बनाया है, जिसके द्वारा वे सब, जो आकाश में हैं और वे सब, जो इस धरती पर हैं, आनन्द विभोर हो गये हैं, कि मुझे अपने सौन्दर्य के सूर्य के दर्शन के योग्य बना और मुझे अपनी वाणी की दिव्य मदिरा का पान करा। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, उच्चतम् शिखर पर बने हुए तेरी भव्यता के वितान के नाम से, और सर्वोच्च पर्वत पर तेरे धर्मप्रकाशन के चंदोवे के नाम से, कि मुझे अनुग्रहपूर्वक वह करने में सहायता दे, जो तेरी इच्छा है और जिसे तेरे उद्देश्य ने प्रकट किया है। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर! अपने अनन्त सौन्दर्य के नाम से ऐसा वर दे कि मैं उन सबके प्रति मृतप्राय हो जाऊँ जो मेरा है और सदा-सर्वदा उसके प्रति जीवित रहूँ जो तेरा है। वह चिरस्थायी सौन्दर्य है, जिसके प्रकट होते ही सौन्दर्य का साम्राज्य भी आराधना में विनत हो यशोगान करने लगा है। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर! तेरे उस परमप्रिय नाम के प्रकटीकरण के माध्यम से जिसने प्रेमियों के हृदय को दग्ध कर दिया है और जिसका यशोगान करने के लिये धरती के समस्त निवासी उठ खड़े हुए हैं। मेरी सहायता कर कि मैं तेरी सृष्टि में, तेरे जनों के मध्य, तेरा स्मरण कर सकूँ। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूं, हे मेरे ईश्वर ! तेरे नामों के साम्राज्य में तेरी वाणी के पवन झकोरों के कारण दिव्य वृक्ष में होने वाले स्पंदन के नाम से कि मुझे उन सबसे दूर, बहुत दूर कर दे जिनसे तू दूर रहता है और मुझे उस बिन्दु तक ले चल, जहाँ तेरे संकेतों का अरुणोदय हुआ है। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर! उस पावन अक्षर के नाम से, जिसके उच्चरित होते ही महासागर उमड़ पड़े, पवन प्रवाहमान हुआ, सुफल सामने आये, वृक्षों को बसंत का वैभव मिला, अतीत के धूंध छंट गये, समस्त आवरण हट गये और तेरे भक्तगण अपने अप्रतिबंधित स्वामी के मुखारबिंदु के प्रकाश की ओर बढ़ चले, कि अपने ज्ञान के खज़ाने और विवेक के पात्र से मुझे वह ज्ञान दे जो अब तक छिपा हुआ था। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर! तेरे प्रेम की उस अग्नि के नाम से, जिसने तेरे चुने हुए जनो और प्रियजनों की आँखों से नींद चुरा ली है और मैं इस प्रभात के नाम से तुझसे याचना करता हूँ कि मुझे उनमें गिन, जिन्होंने तेरे द्वारा भेजे गये ग्रंथ में तेरी इच्छा से प्रकट हुए को पा लिया है। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे मुखमंडल के प्रकाश के माध्यम से, जिसने तेरे भक्तजनों को तेरे विधानों के अनुपालन के लिये प्रेरित किया है और उन समर्पित लोगों के माध्यम से जिन्होंने तेरी राह पर चलते हुए तेरे शत्रुओं के प्रहारों का सामना किया, कि अपनी महान तूलिका से मेरे लिये उसका विधान कर जो तूने अपने विश्वासपात्र और चुने हुए लोगों के लिये किया है। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर, तेरे नाम से जिसके माध्यम से तूने जो तेरे अभिलाषी हैं अपने प्रेमियों की पुकार सुनी है। जिनके माध्यम से तूने उनकी आहें सुनी हैं और जो तेरी निकटता पाना चाहते हैं, जिसके माध्यम से तूने उनकी अर्न्ततम की पुकार सुनी है और जिनकी आशा-आकांक्षा तुझसे ही जुड़ी हैं, जिनके माध्यम से तूने उनकी इच्छा पूरी की है; मैं तेरी कृपा और अनुकम्पा के नाम से याचना करता हूँ, जिनके माध्यम से क्षमाशीलता का महासिन्धु उमड़ा है, जिनके माध्यम से तेरे सेवकों पर तेरी उदारता के मेघ बरसे हैं, कि उन सबके लिये, जो तेरी ओर उन्मुख हुए हैं और जिन्होंने तेरे द्वारा आदेशित उपवास धारण किया है, वह विधान कर, वह पुरस्कार प्रदान कर जो समुचित है। ऐसे लोग तेरे आदेश के बिना नहीं बोलते और तेरे पथ में तेरे प्रेम के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं।
मैं तुझसे याचना करता हूँ, हे मेरे ईश्वर! तेरे नाम से और तेरे संकेतों के नाम से और तेरे प्रतीकों के नाम से और तेरे सौन्दर्य-सूर्य के जाज्वल्यमान प्रकाश के नाम से और तेरी महान शाखाओं के नाम से कि उनके पापों को क्षमा कर, जिन्होंने तेरे विधानों के अनुकूल उपवास धारण किया है और उसका पालन किया है जो तेरी परम पावन पुस्तक में विहित हैं। हे ईश्वर! तू देखता है कि मैं तेरे पवित्रतम्, प्रकाशोत्तम्, शक्तिशाली, महानतम्, उच्चतम्, भव्यतम् नाम का स्मरण करता रहता हूँ और तेरे उस परिधान के आंचल की छोर से बंधा हूँ, जिससे इहलोक और परलोक में सभी बंधे हैं।
हे दिव्य विधाता! जिस तरह में दैहिक कामनाओं, अन्न और जल से विरक्त हूँ, वैसे ही मेरे हृदय को भी अपने अतिरिक्त अन्य सब के प्रेम से शुद्ध और निर्मल कर दे। मेरी आत्मा को भ्रष्ट इच्छाओं और भ्रष्ट प्रवृत्तियों से बचा, इसकी रक्षा कर, ताकि मेरी चेतना पवित्रता की श्वांस के साथ संलाप कर सके और तेरे अतिरिक्त अन्य सबका परित्याग कर सके।
शत्-शत् नमन इस युग को, एक ऐसा युग जिसमें दया की सुरभि समस्त सृजित वस्तुओं पर तरंगित हुई है, एक ऐसा समृद्ध युग जिसकी बराबरी अतीत के कालों और शताब्दियों से कभी भी नहीं की जा सकती, एक ऐसा युग जब प्राचीनतम प्रभु ने अपना रूख अपने पावन आसन की ओर किया है। वहाँ समस्त सृजित वस्तुओं ने और उनके अलावा देवदूतों ने गुहार लगाई है, ”हे कार्मल (पर्वत) तू शीघ्रता कर, देख! ईश्वर के मुखमंडल का प्रकाश, नामों के साम्राज्य के सम्राट और स्वर्गों के रचयिता का पदार्पण यहाँ हुआ है।“
आनन्दविह्वल कार्मल का स्वर कुछ इस प्रकार गूंजा, ”मेरा जीवन तेरे लिये बलिदान हो जाये, तूने मेरी ओर निहारा है, अपनी कृपा मुझ पर बरसाई है और अपने पग मेरी ओर बढ़ाये हैं। हे अनन्त जीवन के उद्गम, तेरे वियोग में मैं प्राणविहीन हो गया,
विरह ने मेरी आत्मा झुलसा दी है। तुझे शत्-शत् प्रणाम, कि तूने मुझे अपनी पुकार सुनने के योग्य बनाया, अपने पग मेरी ओर बढ़ाकर मुझे मान दिया और अपने इस युग की जीवनदायिनी सुरभि से मेरी आत्मा को नवस्फूर्ति दी, तेरी महालेखनी की गूंज तेरे लोगों के बीच तेरा आह्वान है और जब वह घड़ी आई तब तुम्हारा प्रतिरोधरहित धर्म प्रकट किया गया तब तूने अपनी महालेखनी में अपनी श्वांस फूंक दी और देखो, समस्त सृष्टि कम्पायमान हो उठी और उस ईश्वर के कोषागार में छिपे, सभी गुप्त रहस्यों पर से पर्दा उठ गया, ईश्वर जो सभी सृजित वस्तुओं का स्वामी है।“
जैसे ही उसकी आवाज प्रभु के पावन पर्वत तक पहुँची वैसे ही हमने उत्तर दिया, ”हे कार्मल, अपने स्वामी को धन्यवाद दो। मुझसे विरह की अग्नि तुम्हें दग्ध करती जा रही थी, मेरी उपस्थिति का महासागर जब तुम्हारे समक्ष उमड़ा तो तुम्हारे नेत्रों में प्रसन्नता की लहर दौड़ आई और समस्त सृष्टि हर्षोन्मान्दित हो गई तथा सभी दृश्य तथा अदृश्य वस्तुओं के बीच आनन्द व्याप्त हो गया। खुशियाँ मनाओ, क्योंकि इस युग में ईश्वर ने तुम पर अपना सिंहासन स्थापित कार्मल की पाती किया है, तुम्हें अपने चिन्हों का उद्गम स्थल बनाया है और अपने प्रकटीकरण के प्रमाणों का दिवानक्षत्र माना है। उसका सौभाग्य है जो तुम्हारी परिक्रमा करता है जो तुम्हारी महिमा के प्रकटीकरण का उद्घोष करता है और उस आशीष का स्मरण करता है जो तुम्हारे स्वामी ने कृपापूर्वक तुम पर बरसाये हैं। सर्वमहिमाशाली अपने स्वामी के नाम पर अमरत्व के पात्र को कसकर थाम लो और उसे धन्यवाद दो, क्योंकि तुम पर अपनी दया के प्रतीकस्वरूप उसने तुम्हारी वेदना को प्रसन्नता में बदल दिया है और तुम्हारे कष्टों को आशीषपूर्ण आनन्द का रूप दिया है। वस्तुतः, वह उस स्थान को प्रेम करता है जो उसका सिंहासन बनाया गया है, जिस पर उसके पग पड़े हैं, जो उसकी उपस्थिति से सम्मानित हुआ है, जहाँ से उसने महाशंखनाद किया है और जिस पर उसने अपने आँसू बहाये हैं।“
”हे कार्मल, जिऑन को गुहार लगा और यह शुभ संदेश दे: वह जो नश्वर नेत्रों से ओझल था, प्रकट हो गया है! उसकी सर्वविजयी प्रभुसत्ता स्थापित हुई है, उसकी सर्वग्राही भव्यता प्रकट हुई है। सावधान! कहीं तुम संकोच न कर बैठो या अपने कदम रोक न लो। शीघ्रता करो और आगे बढ़ कर ईश्वर के नगर की परिक्रमा करो जो स्वर्गिक काबा से अवतरित हुआ है, जिसके इर्द-गिर्द ईश्वर के प्रिय पात्रों ने, शुद्ध हृदय लोगों ने और देवदूतों ने परिक्रमा की है। देखो, किस प्रकार से धरती के कोने-कोने में, इसके प्रत्येक नगर में इस प्रकटीकरण के शुभ संदेश का उद्घोष करने के लिये आकुल हूँ - एक ऐसा प्रकटीकरण जिसकी ओर सिनाई पर्वत का हृदय आकर्षित हुआ है और जिसके नाम की गुहार सदा ”प्रज्ज्वलित झाड़ी“ ने लगाई है, ”धरती और स्वर्ग के सभी साम्राज्य स्वामियों के स्वामी ईश्वर के हैं“ सत्य ही, यह वह युग है, जिसमें धरती और सागर दोनों इस उद्घोष पर आनन्दविह्वल हुए हैं, वह युग जिसके लिये नश्वर मानव के मन-मानस की समझ से परे वे सभी वस्तुएँ दी गई हैं जिन्हें ईश्वर ने अपने कृपास्वरूप निर्धारित की हैं। शीघ्र ही प्रभु अपने संदेश की नौका तुम्हारे मन-सागर तक लायेगा और बहा के उन लोगों को प्रकट करेगा जो ”महानामों की पुस्तक“ में वर्णित किये गये हैं।“
कार्मल की पाती समस्त मानवजाति के स्वामी का जयघोष हो, जिसके नाम मात्र की चर्चा से धरती का कण-कण कम्पायमान हो उठा और महिमा की वाणी ने मुखरित हो उसे अनावृत किया जो ईश्वर के ज्ञान से आवृत उसकी शक्ति के कोषालय में अब तक गुप्त था। सत्यतः वह सर्वशक्तिशाली, सर्वोच्च ईश्वर अपने नाम की अंतःशक्ति के सहारे उन सब का सम्राट है जो स्वर्गों में और पृथ्वी पर हैं।
हे मेरे परमेश्वर!
हे तू पापों को क्षमा करने वाले! वरदाता! व्याधियों को दूर करने वाले!
सत्य ही , मैं तुझसे याचना करना हूं कि जो इस भोतिक देहरूपी चोलो को छोड़कर उस आध्यात्मिक लोक में आरोहण कर गये हैं उनके पापों को क्षमा कर दे!
हे मेरे प्रभु! उन्हें भूलों से मुक्त करके पवित्र कर दे, उनके शोक का निवारण कर, और उनके अंधकार को ज्योति का रूप दे दे!
उन्हें आनन्द - उद्यान में प्रवेश दे, परम पावन जल से उन्हें स्वच्छ कर दे और उन्हें वरदान दे कि वे पर्वत शिखर पर तेरे वैभव के दर्शन कर सकें।
हे ईश्वर! तेरी ही स्तुति हो, तूने नवरूज़ को उनके लिये एक उत्सव के रूप में दिया है जिन्होंने तेरे प्रेम के कारण उपवास धारण किया है और उस सबका परित्याग किया है जो तेरी दृष्टि में अमान्य है। हे मेरे ईश्वर! वरदान दे, कि तेरे प्रेम की अग्नि और तेरे द्वारा विहित उपवास से उत्पन्न ताप उन सबको तेरे धर्म में प्रदीप्त कर दे और तेरे स्मरण और यशगान में प्रवृत्त कर दे।
हे मेरे स्वामी! जब तूने ही उन्हें अपने द्वारा निर्धारित उपवास के आभूषण से अलंकृत किया है, उन्हें अपनी करुणा और उदार कृपा से, अपनी स्वीकृति का आभूषण प्रदान कर, क्योंकि मानव का प्रत्येक कर्म तेरे ही अनुग्रह पर निर्भर है, तेरी ही आज्ञा पर आश्रित है। यदि तू उपवास तोड़ने वाले को उपवास करने वाला घोषित कर दे, तो उसकी गणना अनन्तकाल से उपवास करने वालों में होगी; और यदि तेरे निर्णय में उपवास करने वाला उपवास तोड़ने वाला घोषित हो जाये, तो उसकी गणना उन लोगों में होगी जिन्होंने तेरे प्रकटीकरण के परिधान को अस्वच्छ कर दिया है और जो तेरे जीवन-निर्झर के स्फटिक जल से दूर कर भटक गये हैं।
तू वह है जिसके माध्यम से ’प्रशंसनीय है तू निज कार्यों में‘ की ध्वजा फहरायी गई है और ”अनुपालित है तू निज आदेश में“ की पताका फहराई गई है। हे मेरे ईश्वर! अपने सेवकों को तू अपने पद का ज्ञान करा, ताकि वे जान सकें कि प्रत्येक वस्तु की उत्तमता तेरी आज्ञा, तेरे पावन शब्द पर आश्रित है; प्रत्येक कर्म का गुण तेरी इच्छा और अनुकम्पा पर निर्भर है, ताकि वे जान सकें कि मानव के कर्म की बागडोर तेरी स्वीकृति और तेरी आज्ञा की पकड़ में है। उन्हें यह ज्ञान करा दे कि कुछ भी उन्हें तेरे सौन्दर्य से वंचित नहीं कर सकता। ईसामसीह के उद्गार हैं: ”हे दिव्य चेतना (ईसा) के महान जनक! समस्त साम्राज्य तेरा है।“ और इसी के लिये तेरे मित्र (मुहम्मद) ने आवाज लगाई: ”तेरी स्तुति हो, हे परम प्रियतम, कि तूने अपने महान सौन्दर्य के दर्शन कराये हैं और अपने प्रियजनों के लिये उसका विधान किया है, जो उन्हें तेरे सर्वमहान नाम के सिंहासन के निकट लायेगा, जिनके माध्यम से, उनके अतिरिक्त, जिन्होंने तेरे सिवा अन्य सभी कुछ से स्वयं को अनासक्त कर लिया है, अन्य लोगों ने विलाप किया है। जो अनासक्त हुए हैं वे उसकी ओर उन्मुख हुए हैं, जो तेरे अस्तित्व को साकार करता है, जो तेरे गुणों का अवतार है।“
हे मेरे ईश्वर, वह जो तेरी शाखा है उसने और तेरे समस्त मित्रों ने आज के दिवस में अपना उपवास समाप्त किया है, जिसे उन्होंने तेरी सुप्रसन्नता के लिये तेरे विधानों के अधीन धारण किया था। हे ईश्वर, उनके लिये और उन सबके लिये जिन्होंने उपवास के दिनों में तेरी निकटता पाई है, वह सब मंगल विधान कर जिसे तूने अपने परम महान पुस्तक में विहित किया है। तब उन्हें वह प्रदान कर जो उनके लिये इहलोक और परलोक में लाभदायक हो।
तू सत्य ही, सर्वज्ञाता, सर्वप्रज्ञ है।
(रिज़वान उत्सव 21 अप्रैल बहाउल्लाह द्वारा अपने अनुयायियों के समक्ष अपने आगमन के उद्देश्य की परम महान उद्घोषणा की याद ताजा कराता है। बहाउल्लाह ने इसे “उत्सवों का सम्राट” कहा है और परम पावन पुस्तक “किताब-ए-अक़दस”में इसकी तुलना उस महान दिवस से की गई है जिसमें समस्त सृजित वस्तुएँ पावनता के सागर में निमग्न हो गईं।)
दिव्य वसंत आ गया है, हे महालेखनी, सर्वदयालु का महापर्व शीघ्र ही निकट आ रहा है। अपने को तैयार कर ले और सम्पूर्ण सृष्टि के समक्ष ईश्वर के नाम को मुखरित कर और उसका यशगान कुछ इस प्रकार कर कि सम्पूर्ण सृष्टि पुनर्जीवित हो एक नवीन चेतना से भर जाये। बोल, चुप न रह। हमारे आशीर्वादयुक्त नाम के क्षितिज पर कृपा का सूर्य चमक उठा है, क्योंकि स्वर्गों के रचयिता तुम्हारे स्वामी के नाम के आभूषण से नामों का साम्राज्य अलंकृत हुआ है। धरती के समस्त राष्ट्रों के सम्मुख उठ खड़ी हो, सर्वमहान नाम की शक्ति से स्वयं को सुसज्जित कर और उनमें से न बन जो प्रतीक्षा करते हैं.....।
यह वह दिवस है जब अदृश्य जगत से आवाज आई है, ”हे वसुंधरा! तू सौभाग्यशाली है कि ईश्वर के पावन पग तुझ पर पड़े हैं और उसके शक्ति सम्पन्न सिंहासन के लिये तू चुनी गई है।“ महिमा का साम्राज्य हर्षोन्मादित हो कह रहा है: ”तेरे लिये मेरा जीवन न्योछावर हो जाये, क्योंकि जो सर्वदयालु का परमप्रिय है उसने तुझ पर अपनी सत्ता स्थापित की है। उस परम पावन नाम के सहारे जिसका वचन अतीत में दिया गया था, जो भविष्य का नियंता है.....।
परम प्रियतम आ गया है, उसके दाहिने हाथ में परम पावन नाम की दिव्य मदिरा है। वह सौभाग्यशाली है जो उसकी ओर उन्मुख हुआ है और जिसने जी भर कर उसका पान किया है। तभी वह हर्षोन्माद में कहता हैः ”तेरी स्तुति हो, हे ईश्वर के संकेतो के दर्शन कराने वाले! ईश्वर के न्याय की सौगंध! सत्य की शक्ति के माध्यम से समस्त गुप्त रहस्य प्रकट कर दिये गये हैं। ईश्वर की समस्त अनुकम्पाएँ उन पर कृपास्वरूप बरसाई गई हैं। शाश्वत जीवन का अमृत-घट मानव को मिला है। सर्वप्रिय ने अमृत-घट की हर बूंद को अपना स्पर्श दिया है। आओ, प्रतीक्षा मत करो, पल भर तो पास आओ इस अमृत-घट के।“.....
हे बहा के लोगो! आनन्द के अतिरेक के प्रवाह में बह चलो और अनन्त आनन्द के दिन का स्मरण करो, जब पुरातन काल के सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उस स्थान पर उद्घोष किया था, जहाँ से सर्वदयालु ईश्वर ने सम्पूर्ण विश्व को अपने नाम की ज्योति का प्रकाश दिया था। ईश्वर हमारा साक्षी है, यदि उस ईश्वर के समस्त गुप्त रहस्य प्रकट कर दिये जायें तो धरती के समस्त निवासी मूर्छित और मृतप्राय हो जायेंगे; वही जीवन पायेंगे जिन्हें ईश्वर देना चाहेगा, जो सर्वज्ञ, सर्वप्रज्ञ है!
संदेह से परे ईश्वर के प्रमाणों को प्रकट करने वाली तूलिका पर ईश्वर के शब्दों का कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह आगे कुछ भी न लिख सकी और इन शब्दों के साथ उसने अपनी पाती को समाप्त किया: ”मेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, मैं सर्वोच्च सर्वशक्तिमान, सर्वश्रेष्ठ और सर्वज्ञाता हूँ।“
हे ईश्वर और समस्त नामों के ईश्वर और आसमानों के निर्माता! मैं तेरे उस नाम से तुझ से विनती करता हूँ, जिसके द्वारा, वह जो तेरे सामर्थ्य का उद्गमस्थल और तेरी शक्ति का उदयस्थल है, प्रकट हुआ है, जिसके द्वारा प्रत्येक ठोस वस्तु को प्रवाहमान किया गया है और प्रत्येक मृत शरीर को जीवित किया गया है और प्रत्येक गतिमान चेतना की सम्पुष्टि की गई है - मैं तुझसे विनती करता हूँ कि तेरे अतिरिक्त, मुझे हर प्रकार की आसक्ति से छुटकारा पाने, तेरे धर्म की सेवा करने और वह इच्छा पूरी करने के लिए, जिसकी इच्छा तूने अपनी प्रभुसत्ता की शक्ति के द्वारा की है, उस इच्छा को पूरा कर सकूँ।
इसके अतिरिक्त, हे मेरे ईश्वर, मैं तुझसे विनती करता हूँ कि मेरे लिए उसका विधान कर जो मुझे इतना सम्पन्न बना दे कि तेरे अतिरिक्त मुझे किसी अन्य की आवश्यकता न रहे। हे ईश्वर, तू मुझे देख रहा है कि मैं तेरी ओर उन्मुख हूँ, और मेरे हाथ तेरी कृपा की डोर को थामे हुए हैं। मुझ पर अपनी दया भेज और मेरे लिए वह लिख दे जो तूने अपने चुने हुए लोगों के लिए लिखा है। तू जो चाहे वह करने में समर्थ है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, सदा क्षमाशील, सर्वउदार।
मैं तेरी स्तुति करता हूँ, हे मेरे ईश्वर कि तेरी स्नेहमयी कृपा की सुगंध ने मुझे आनंदविभोर कर दिया है, तेरी दया की मंद समीरों ने मुझे तेरे उदारतापूर्ण अनुग्रह की ओर प्रवृत्त किया है। हे मेरे स्वामी, अपनी मुक्तहस्तता की उँगलियों से उस जीवन जल का जिसने प्रत्येक को, जिसने उसे ग्रहण किया है, समर्थ बनाया है, तेरे अतिरिक्त सभी आसक्तियों से छुटकारा दिलाने के लिए और तेरी समस्त प्राणियों से अनासक्ति के वातावरण में उड़ान भरने के लिए और तेरे बहुविध उपहारों और तेरी स्नेहमयी कल्याण भावना पर दृष्टि जमाने के लिए, मुझे एक घूँट पिला दे।
हे मेरे स्वामी, हर परिस्थिति में तेरी सेवा करने और तेरे प्रकटीकरण एवं सौंदर्य के आराध्य मंदिर की ओर अग्रसर होने मे मुझे तत्पर रख। अगर यह तेरी इच्छा हो तो अपनी कृपा के चारागाह में मुझे पर एक कोमल शाख की भाँति बहने दे, ताकि तेरी इच्छा की मंद समीरे मुझे तेरी प्रसन्नता के अनुरूप इस प्रकार स्पंदित करें कि मेरी गतिमानता और निश्चलता पूर्णतया तेरे द्वारा संचालित हो।
तू वह है जिसके नाम से निगूढ़ रहस्य प्रकट हुए और संरक्षित नाम उद्घाटित हुआ और मोहरबंद प्याले की मोहरें खोली गईं, समस्त सृष्टि पर, चाहे भूत की हो या भविष्य की, इसकी सुगंध बिखेरी गयी। वह जो प्यासा था, हे मेरे स्वामी, तेरी कृपा के जीवंतजल की प्राप्ति के लिए दौड़ पड़ा है और भाग्यहीन प्राणी ने तेरी समृद्धि के महासागर की तलहटी में स्वयं को डुबाने की लालसा की है।
मैं तेरी महिमा की सौगंध खाता हूँ, हे जगत के प्रिय स्वामी और उन सभी की कामना, जिन्होंने तुझे पहचाना है। मैं अत्यधिक दुःखी हूँ तुझसे अपने वियोग की पीड़ा से उन दिनों में जब तेरी उपस्थिति के सूर्य ने तेरे जनों पर अपनी प्रभा बिखेरी है। तब मेरे लिए वह पुरस्कार लिख दे जो उनके लिए आदेशित है जिन्होंने तेरे मुखड़े को एकटक निहारा है, और तेरी अनुमति से तेरे सिंहासन के प्रांगण में प्रवेश प्राप्त किया है और तेरे आदेश से तुझसे मिलन किया हैं।
मैं याचना करता हूँ तुझसे, हे मेरे स्वामी, तेरे उस नाम के द्वारा जिसकी भव्यता ने धरती और आकाश को आवृत किया है, कि मुझे शक्ति दे कि मैं अपनी इच्छा को, जो कुछ तूने अपनी पातियों में आदेशित किया है, समर्पित कर दूँ ताकि मैं अपने अंदर कोई भी इच्छा न खोज सकूँ सिवा उसके जो अपनी प्रभुसत्ता की शक्ति द्वारा अपनी इच्छा से तूने मेरे लिए नियत की है।
मैं किस ओर उन्मुख होऊँ, हे मेरे ईश्वर, उस मार्ग के अतिरिक्त जिसे तूने अपने चुने हुये जनों के लिए निर्धारित किया है, मैं किसी अन्य मार्ग को खोज पाने में असमर्थ हूँ। पृथ्वी के सभी परमाणु उद्घोषित करते हैं, कि तू ईश्वर है और साक्ष्य देते हैं कि तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं। तू अनादिकाल से वह करने में जिसकी तूने इच्छा की, और वह आदेशित करने में जिसे तूने चाहा है समर्थ रहा है।
क्या तू मेरे लिए वह नियत करेगा हे मेरे ईश्वर, जो हर हाल में मुझे तेरी ओर अग्रसर करे और मुझे तेरी कृपा की डोर से बंधे होने, तेरे नाम की उद्घोषणा करने और जो कुछ तेरी लेखनी से प्रवाहमान हुआ है उसे खोजने के योग्य बनाये। मैं भाग्यहीन और अकेला हूँ, हे मेरे ईश्वर और तू सर्वसम्पन्न, सर्वउदात्त है।
मुझ पर दया कर, अपनी करूणा के आश्चर्यों द्वारा और मेरे जीवन में प्रति क्षण, उन वस्तुओं को भेज जिनके द्वारा तूने अपने प्राणियों के हृदयों की पुनर्रचना की है, जिन्होंने तेरी एकता में विश्वास किया है और वे समस्त प्राणी जो पूर्णरूप से तुझे समर्पित हैं।
तू सत्य ही, सर्वशक्तिशाली, सर्वउदात्त, सर्वज्ञाता, सर्वज्ञ है।
ईश्वर के नाम से ! सर्वमहान, अति प्राचीन!
वस्तुतः निष्कपट हृदय बिछोह की अग्नि से व्यथित हैं: कहाँ है तेरे मुखमण्डल के प्रकाश की चमक, हे सर्वलोकों के प्रियतम ?
वे जो तेरे निकट हैं वे विध्वंसन के अंधकार में परित्यक्त हैं: तेरे पुनर्मिलन के भोर की दीप्ति कहाँ है , हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?
तेरे चुने हुये जनों के शरीर सुदूर रेत पर पड़े तड़प रहे हैं : तेरे सान्निध्य का महासागर कहाँ है, हे लोकों की मोहक ?
तेरी उदारता एवं कृपा के आकाश की ओर सहिष्णु हस्त ऊपर उठाये गये हैं: तेरी अनुकम्पा की वर्षा कहाँ है, हे सर्वलोकों के सामाधानकर्ता ?
नास्तिक हर ओर अत्याचार में उठ खड़े हुए हैं: तेरे आदेशात्मक लेखनी की बाध्यकारी शक्ति कहाँ है, हे लोकों के विजेता ?
श्वानों का भौंकना हर दिशा में तीव्र हो गया है: तेरी शक्ति के वन के सिंह कहाँ है, हे लोकों के दण्डदाता ?
निरूत्साह ने समस्त मानवता को जकड़ लिया है: तेरा उत्साह भरने वाला प्रेम कहाँ है, हे लोकों की ज्वाला ?
आपदा अपने चरम पर पहुँच गई है: तेरी सहायता के चिन्ह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के मुक्ति ?
अंधकार ने बहुसंख्य जनों को घेर लिया है : तेरी कांति की प्रखरता कहाँ है, हे सर्वलोकों के दीप्ति?
लोगों की गर्दनें विद्वेष से तनी हैं: तेरे प्रतिशोध की कृपाण कहाँ है, हे लोकों के विध्वंसकर्ता ?
पतन अधमता के रसातल तक जा पहुँचा है: तेरी गौरव के प्रतीक कहाँ है, हे सर्वलोकों की महिमा ?
दुःखों ने तेरे सर्वकृपालु नाम को प्रकट करने वाले को पीड़ित कर दिया हैं: तेरे प्रकटीकरण के उद्गमस्थल का आनन्द कहाँ है, हे सर्वलोकों के आह्लाद ?
वेदना धरती के समस्त जनों पर आ पड़ी है: तेरी प्रसन्नता की पताकाएँ कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के उल्लास ?
देखता है तू कि तेरे ’संकेतो का उदयस्थल‘ कुचक्रों के आवरण से ढक दिया गया है: तेरी सामर्थ्य की उंगलियाँ कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की शक्ति ?
सभी अत्यधिक प्यास से त्रस्त हैं: तेरी उदारता की सरिता कहाँ है, हे सर्वलोकों की कृपा ?
समस्त लोगों को लोभ ने अपना दास बना लिया है: अनासक्ति के साकार रूप कहाँ है, हे सर्वलोकों के स्वामी?
तू देखता है इस प्रवंचित को अकेला, निष्कासित : तेरे आदेश के आकाश के सैन्यसमूह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के सम्राट ?
मैं एक अनजाने देश में परित्यक्त हूँ: तेरी विश्वसनीयता के प्रतीक कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विश्वस्त ?
सबको मृत्यु की वेदना ने ग्रास बना लिया है: तेरे शाश्वत जीवन का उमड़ता सागर कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के जीवन ?
प्रत्येक कृति में शैतान ने अपने प्राण फंूक दिये हैं: तेरी ज्वाला का उल्कापिण्ड कहाँ है, हे सर्वलोकों के प्रकाश?
अधिकांश जनों को वासना ने पथभ्रष्ट कर दिया है: तेरी पवित्रता के उद्गमस्थल कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?
तू इस प्रवंचित को सीरियाई लोगों के मध्य उत्पीड़न से आक्रांत देखता है: तेरे प्रकाश का उदय कहाँ से होगा। हे सर्वलोकों के प्रकाश ?
तू देखता है कि मुझे बोलने से भी रोका गया है: तो कहाँ से फूटेगी तेरा स्वर माधुर्य, हे सर्वलोकों की कोकिला?
अधिकांश जन भ्रान्ति एवं व्यर्थ कल्पनाओं के जाल में उलझे हैं: तेरी आस्था के प्रतिपादक कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विश्वास ?
बहा विपदा के सागर में डूब रहा है: तेरी मुक्ति-नौका कहाँ है, हे सर्वलोकों के मुक्तिदाता ?
सृष्टि के अंधकार में तू अपनी वाणी के उद्गमस्थल को देखता है: तेरी अनुकम्पा के आकाश का सूर्य कहाँ है, हे सर्वलोकों के प्रकाशदाता ?
सत्य और पावनता, निष्ठा और सम्मान के दीप बुझा दिये गये हैं: तेरे प्रतिकार रूपी क्रोध के चिन्ह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के संचालक ?
उन्हें जो तेरे ही लिये युद्धरत हैं या उन संकटों पर जो विचारमग्न हैं जो तेरे प्रेम-पथ पर हैं, क्या तू नहीं देख सकता, जो उन पर आन पड़ा हैं ? अब मेरी लेखनी ठहर गई है, हे सर्वलोकों के प्रियतम !
नियति झंझावात के प्रचंड वेग से दिव्य सिदरा के शाख-शाख टूटे हैं: तेरे अभय दान की ध्वजायें कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विजेता ?
यह मुखड़ा कलंक की धूल से ढका है: तेरी अनुकम्पा के मधुर समीर कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की करूणा ?
पावनता के परिधान को प्रवंचकों ने कलुषित कर दिया है: तेरी पावनता का परिधान कहाँ है, हे सर्वलोकों के श्रृंगारकर्ता ?
मनुष्य ने अपने ही हाथों से जो कर डाला है, उससे दया का सागर स्तब्ध रह गया है: तेरी उदारता की लहरें कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?
तेरे शत्रुओं के आतंक से तेरी दिव्य उपस्थिति तक पहुँचने के द्वार बंद पड़े हैं: तेरे आशीष की कुंजी कहाँ है, हे सर्वलोकों के समाधानकर्ता ?
विद्रोह की विषाक्त समीरों से पात-पात मुरझाए हैं: तेरी उदारता की मेघ-धारा कहाँ है , हे सर्वलोकों के दाता?
विश्व पापों की धूल से अंधकारमय हो गया है: तेरी क्षमा के पवन-झकोरे कहाँ हंै, हे सर्वलोकों के क्षमादाता?
इस निर्जन भू पर यह युवक एकाकी है: तेरी दिव्य करूणा की वर्षा कहाँ है, हे सर्वलोकों के वरदाता ?
हे परम महान लेखनी! हमने शाश्वत साम्राज्य में तेरी अतिशय मधुर पुकार सुन ली है: ध्यान से सुन कि भव्यता की जिह्वा जो कह रही है, हे तू सर्वलोकों के ’प्रवंचित‘!
यदि शीत न होता, तो तेरे शब्दों की ऊष्मा कैसे प्रबल होती, हे सर्वलोकों के व्याख्याता ?
यदि संकट न होते, तेरे धैर्य का सूर्य कैसे चमक दिखाता, हे सर्वलाकों के प्रकाश ?
दुष्ट जनों के कारण तू शोक न कर, तुझे सब कुछ सहने और भोगने को दुष्ट जनों को रचा गया था, हे सर्वलोकों के धैर्य !
कितना मधुर था तेरा संविदा के क्षितिज पर उदित होना और विद्रोह भड़काने वालों के मध्य, ईश्वर के प्रति तेरी उत्कंठा, हे सर्वलोकों के प्रेम !
तेरे ही द्वारा मुक्ति-पताका उच्चतम् शिखरों पर फहराई गई और उदारता का सागर तरंगित हुआ। हे सर्वलोकों के प्रहर्ष !
तेरी एकमेवता का सूर्य एकाकीपन से ही चमका और तेरे निष्कासन से एकता की भूमि अलंकृत हुई। धैर्य रख, हे सर्वलोकों के निर्वासित !
हमने अनादर को गौरव का परिधान बनाया है और तेरे मन्दिर का आभूषण दुःखों को, हे सर्वलोकों के गौरव!
तू घृणा भरे हृदयों को देखता है, तेरी महानता इसकी उपेक्षा करना है, हे सर्वलोकों के पाप को छिपाने वाले! जब तलवारें चमकें आगे बढ़, बढ़ता जा, ,गर तीर भी बरसते हों, हे सर्वलोकों के लिए बलिदान !
तू विलाप करे या मैं रोऊँ ? इतने थोड़े हैं तेरे समर्थक, जो अखिल लोकों के रुदन का कारण है! सत्य ही, मैने सुनी है तेरी पुकार, हे सर्वगौरवमय प्रियतम !
अब बहा का मुखमण्डल दीप्त है, दुःखों के ताप से, तेरे ज्योतिर्मय शब्दों की ज्वाला से और अब वह निष्ठापूर्वक उठ खड़ा हुआ है तेरी सुप्रसन्नता पर दृष्टि केन्द्रित किए हुए, हे अखिल लोकों के विधाता !
हे अली अकबर! धन्यवाद कर अपने ईश्वर का इस पाती के लिए, कि जब मेरी विनम्रता की सुरभि तू ग्रहण न कर सकेगा तब तू जान पाएगा कि सब के आराध्य ईश्वर के पथ पर कैसे कष्टों ने हमें घेरा था। यदि ईश्वर का सेवक पूर्ण निष्ठा से इसका पाठ करेंगे तो जग उठेंगी ऐसी ज्वालाएँ उनकी नसों में जो सर्वलोकों में अग्नि धधका देंगी।
वह सम्राट, सर्वज्ञाता, सुविज्ञ है। देखो! स्वर्ग कोकिला शाश्वतता के तरूवर की टहनियों पर पावन और मधुर स्वर में गा रही है, ईश्वर की निकटता के शुभ समाचार की उद्घोषणा निष्कपट जनों को कर रही है, दिव्य एकता में आस्था रखने वालों को सर्वउदार के सान्निध्य के प्रांगण में बुला रही है, अनासक्त जनों को परममहिमाशाली, अद्वितीय, सम्राट, ईश्वर द्वारा प्रकटित संदेश से अवगत करा रही है।
वस्तुतः यह वही परम महान सौन्दर्य है, जिसकी भविष्यवाणी संदेशवाहकों के ग्रंथों में की गई है, जिसके द्वारा सत्य को असत्य से पृथक कर दिया जाएगा तथा प्रत्येक आदेश के विवेक को परखा जाएगा। वस्तुतः यह वह जीवन-वृक्ष है जो सर्वोच्च, सर्वशक्मिान, सर्वमहान ईश्वर के फल देता है।
हे अहमद! तू साक्षी बन कि सत्य ही वह ईश्वर है, और उसके अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं: सम्राट, रक्षक, अतुलनीय, सर्वशक्तिमान और जिन्हें उसने ’अली‘ के नाम से भेजा है, वह सत्य ही ईश्वर की ओर से थे, जिनके आदेशों का हम सब पालन करते हैं।
कहो: हे लोगो! ईश्वर के उन आदेशों के प्रति आज्ञाकारी बनो जिनका आदेश बयान में उस महिमावंत, सर्वज्ञ द्वारा दिया गया है। सत्य ही वह संदेशवाहकों का सम्राट और उसका ग्रंथ मातृ-ग्रंथ है। काश! तुम इसे जान पाते।
इस प्रकार, इस कारागार से दिव्य कोकिला तुम्हें उसका आह्वान सुना रही है। उसे तो यह स्पष्ट संदेश देना ही है। जो चाहे वह अपने स्वामी का पथ अपनाये और जो चाहे वह इस सलाह से विमुख हो जाए।
हे लोगो! यदि तुम इन श्लोकों का खण्डन करते हो तो किस प्रमाण से तुमने ईश्वर में विश्वास किया है ? इसे प्रस्तुत करो, हे मिथ्यावादियों के समूह!
नहीं, जिसके हाथ में मेरी आत्मा है, उस ईश्वर की सौगन्ध, वे सब मिलकर भी यदि एक दूसरे की सहायता करें तब भी वे ऐसा करने में समर्थ नहीं हो पायेंगे।
हे अहमद! मेरी अनुपस्थिति में मेरी अनुकम्पाओं को न भूलना। अपने दिनों में मेरे दिनों को और इस दूरस्थ कारागार में मेरे दुःख और निर्वासन को याद रखना। तू मेरे प्रेम में इतना अडिग बनना कि यदि तुझ पर शत्रुओं की तलवारों के प्रहार भी बरसने लगें और समस्त पृथ्वी और आकाश तेरे विरूद्ध उठ खडे हो जाएं, तब भी तेरा हृदय विचलित न हो।
मेरे शत्रुओं के लिए तू अग्नि की ज्वाला और मेरे प्रियजनों के लिए शाश्वत जीवन की सरिता बन और उनमें से न बन जो संदेह करते हैं।
और यदि मेरी राह में तुझे संकट घेर लें या तुझे अनादर सहन करना पड़े तो तू उससे मत घबरा।
ईश्वर, अपने ईश्वर एवं अपने पूर्वजों के स्वामी पर भरोसा रख। क्योंकि लोग भ्रान्ति की राहों में भटक रहे हैं। विवेक से हीन वे अपनी आँखों से ईश्वर के दर्शन कर पाने में अथवा अपने कानों से उसके स्वर माधुर्य को सुन पाने में असमर्थ हैं। हमने उन्हें ऐसा ही पाया है, जिसका तू भी साक्षी है।
इस प्रकार उनके अंधविश्वास उनके तथा उनके स्वयं के हृदयों के बीच ऐसे आवरण बन गये हैं, जिससे वे उदात्त और महान ईश्वर के मार्ग से दूर हो गये हैं।
तू स्वयं में निश्चित रह कि वस्तुतः जो भी इस सौन्दर्य से विमुख होता है, वह अतीत के संदेशवाहकों से भी विमुख हो जाता है और सदासर्वदा ईश्वर के प्रति अहंकार दिखाया है।
हे अहमद, इस पाती को भलीभाँति कंठस्थ कर ले। अपने दिनों में तू इसे मधुर स्वर में गा और अपने आपको इससे विमुख न कर। इसका पाठ करने वाले के लिए ईश्वर ने अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सौ शहीदों का कर्मफल तथा दोनों लोकों में सेवा का पुरस्कार निर्धारित किया है। ये अनुकम्पाएँ हमने उदारता एवं दया स्वरूप अपनी ओर से तुझे प्रदान की हैं, ताकि तू उनमें से बन सके जो हमारे प्रति कृतज्ञ हैं।
ईश्वर की सौगन्ध! यदि कोई विपत्ति अथवा दुःख में इस पाती का पूर्णनिष्ठा से पाठ करेगा तो निश्चय ही ईश्वर उसके दुःखों को दूर करेगा, उसकी कठिनाइयों का समाधान करेगा और उसकी व्यथा को हर लेगा।
वस्तुतः वह दयालु, कृपालु है। सर्वलोकों के स्वामी ईश्वर की स्तुति हो।