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हे मेरे स्वामी! अपने सौंदर्य को मेरा भोज्य, अपनी निकटता को मेरा जीवन-जल, अपनी सुप्रसन्नता को मेरी आशा, अपनी स्तुति को मेरा दैनिक कर्म, अपने स्मरण को मेरा साथी, अपनी सम्प्रभुता शक्ति को मेरा सहायक, अपने आलय को मेरा आश्रयस्थल और अपने उस स्थान को मेरा निवास बना जहाँ वैसे लोगों का प्रवेश वर्जित है जो एक पर्दे के कारण तुमसे परे हैं।
सत्य ही तू, सर्वसामर्थ्यमय, सर्वमहिमामय, सर्वशक्तिशाली है।
- Bahá'u'lláh