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वह सम्राट, सर्वज्ञाता, सुविज्ञ है। देखो! स्वर्ग कोकिला शाश्वतता के तरूवर की टहनियों पर पावन और मधुर स्वर में गा रही है, ईश्वर की निकटता के शुभ समाचार की उद्घोषणा निष्कपट जनों को कर रही है, दिव्य एकता में आस्था रखने वालों को सर्वउदार के सान्निध्य के प्रांगण में बुला रही है, अनासक्त जनों को परममहिमाशाली, अद्वितीय, सम्राट, ईश्वर द्वारा प्रकटित संदेश से अवगत करा रही है।
वस्तुतः यह वही परम महान सौन्दर्य है, जिसकी भविष्यवाणी संदेशवाहकों के ग्रंथों में की गई है, जिसके द्वारा सत्य को असत्य से पृथक कर दिया जाएगा तथा प्रत्येक आदेश के विवेक को परखा जाएगा। वस्तुतः यह वह जीवन-वृक्ष है जो सर्वोच्च, सर्वशक्मिान, सर्वमहान ईश्वर के फल देता है।
हे अहमद! तू साक्षी बन कि सत्य ही वह ईश्वर है, और उसके अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं: सम्राट, रक्षक, अतुलनीय, सर्वशक्तिमान और जिन्हें उसने ’अली‘ के नाम से भेजा है, वह सत्य ही ईश्वर की ओर से थे, जिनके आदेशों का हम सब पालन करते हैं।
कहो: हे लोगो! ईश्वर के उन आदेशों के प्रति आज्ञाकारी बनो जिनका आदेश बयान में उस महिमावंत, सर्वज्ञ द्वारा दिया गया है। सत्य ही वह संदेशवाहकों का सम्राट और उसका ग्रंथ मातृ-ग्रंथ है। काश! तुम इसे जान पाते।
इस प्रकार, इस कारागार से दिव्य कोकिला तुम्हें उसका आह्वान सुना रही है। उसे तो यह स्पष्ट संदेश देना ही है। जो चाहे वह अपने स्वामी का पथ अपनाये और जो चाहे वह इस सलाह से विमुख हो जाए।
हे लोगो! यदि तुम इन श्लोकों का खण्डन करते हो तो किस प्रमाण से तुमने ईश्वर में विश्वास किया है ? इसे प्रस्तुत करो, हे मिथ्यावादियों के समूह!
नहीं, जिसके हाथ में मेरी आत्मा है, उस ईश्वर की सौगन्ध, वे सब मिलकर भी यदि एक दूसरे की सहायता करें तब भी वे ऐसा करने में समर्थ नहीं हो पायेंगे।
हे अहमद! मेरी अनुपस्थिति में मेरी अनुकम्पाओं को न भूलना। अपने दिनों में मेरे दिनों को और इस दूरस्थ कारागार में मेरे दुःख और निर्वासन को याद रखना। तू मेरे प्रेम में इतना अडिग बनना कि यदि तुझ पर शत्रुओं की तलवारों के प्रहार भी बरसने लगें और समस्त पृथ्वी और आकाश तेरे विरूद्ध उठ खडे हो जाएं, तब भी तेरा हृदय विचलित न हो।
मेरे शत्रुओं के लिए तू अग्नि की ज्वाला और मेरे प्रियजनों के लिए शाश्वत जीवन की सरिता बन और उनमें से न बन जो संदेह करते हैं।
और यदि मेरी राह में तुझे संकट घेर लें या तुझे अनादर सहन करना पड़े तो तू उससे मत घबरा।
ईश्वर, अपने ईश्वर एवं अपने पूर्वजों के स्वामी पर भरोसा रख। क्योंकि लोग भ्रान्ति की राहों में भटक रहे हैं। विवेक से हीन वे अपनी आँखों से ईश्वर के दर्शन कर पाने में अथवा अपने कानों से उसके स्वर माधुर्य को सुन पाने में असमर्थ हैं। हमने उन्हें ऐसा ही पाया है, जिसका तू भी साक्षी है।
इस प्रकार उनके अंधविश्वास उनके तथा उनके स्वयं के हृदयों के बीच ऐसे आवरण बन गये हैं, जिससे वे उदात्त और महान ईश्वर के मार्ग से दूर हो गये हैं।
तू स्वयं में निश्चित रह कि वस्तुतः जो भी इस सौन्दर्य से विमुख होता है, वह अतीत के संदेशवाहकों से भी विमुख हो जाता है और सदासर्वदा ईश्वर के प्रति अहंकार दिखाया है।
हे अहमद, इस पाती को भलीभाँति कंठस्थ कर ले। अपने दिनों में तू इसे मधुर स्वर में गा और अपने आपको इससे विमुख न कर। इसका पाठ करने वाले के लिए ईश्वर ने अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सौ शहीदों का कर्मफल तथा दोनों लोकों में सेवा का पुरस्कार निर्धारित किया है। ये अनुकम्पाएँ हमने उदारता एवं दया स्वरूप अपनी ओर से तुझे प्रदान की हैं, ताकि तू उनमें से बन सके जो हमारे प्रति कृतज्ञ हैं।
ईश्वर की सौगन्ध! यदि कोई विपत्ति अथवा दुःख में इस पाती का पूर्णनिष्ठा से पाठ करेगा तो निश्चय ही ईश्वर उसके दुःखों को दूर करेगा, उसकी कठिनाइयों का समाधान करेगा और उसकी व्यथा को हर लेगा।
वस्तुतः वह दयालु, कृपालु है। सर्वलोकों के स्वामी ईश्वर की स्तुति हो।
- Bahá'u'lláh