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ईश्वर के नाम से ! सर्वमहान, अति प्राचीन!

वस्तुतः निष्कपट हृदय बिछोह की अग्नि से व्यथित हैं: कहाँ है तेरे मुखमण्डल के प्रकाश की चमक, हे सर्वलोकों के प्रियतम ?

वे जो तेरे निकट हैं वे विध्वंसन के अंधकार में परित्यक्त हैं: तेरे पुनर्मिलन के भोर की दीप्ति कहाँ है , हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?

तेरे चुने हुये जनों के शरीर सुदूर रेत पर पड़े तड़प रहे हैं : तेरे सान्निध्य का महासागर कहाँ है, हे लोकों की मोहक ?

तेरी उदारता एवं कृपा के आकाश की ओर सहिष्णु हस्त ऊपर उठाये गये हैं: तेरी अनुकम्पा की वर्षा कहाँ है, हे सर्वलोकों के सामाधानकर्ता ?

नास्तिक हर ओर अत्याचार में उठ खड़े हुए हैं: तेरे आदेशात्मक लेखनी की बाध्यकारी शक्ति कहाँ है, हे लोकों के विजेता ?

श्वानों का भौंकना हर दिशा में तीव्र हो गया है: तेरी शक्ति के वन के सिंह कहाँ है, हे लोकों के दण्डदाता ?

निरूत्साह ने समस्त मानवता को जकड़ लिया है: तेरा उत्साह भरने वाला प्रेम कहाँ है, हे लोकों की ज्वाला ?

आपदा अपने चरम पर पहुँच गई है: तेरी सहायता के चिन्ह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के मुक्ति ?

अंधकार ने बहुसंख्य जनों को घेर लिया है : तेरी कांति की प्रखरता कहाँ है, हे सर्वलोकों के दीप्ति?

लोगों की गर्दनें विद्वेष से तनी हैं: तेरे प्रतिशोध की कृपाण कहाँ है, हे लोकों के विध्वंसकर्ता ?

पतन अधमता के रसातल तक जा पहुँचा है: तेरी गौरव के प्रतीक कहाँ है, हे सर्वलोकों की महिमा ?

दुःखों ने तेरे सर्वकृपालु नाम को प्रकट करने वाले को पीड़ित कर दिया हैं: तेरे प्रकटीकरण के उद्गमस्थल का आनन्द कहाँ है, हे सर्वलोकों के आह्लाद ?

वेदना धरती के समस्त जनों पर आ पड़ी है: तेरी प्रसन्नता की पताकाएँ कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के उल्लास ?

देखता है तू कि तेरे ’संकेतो का उदयस्थल‘ कुचक्रों के आवरण से ढक दिया गया है: तेरी सामर्थ्‍य की उंगलियाँ कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की शक्ति ?

सभी अत्यधिक प्यास से त्रस्त हैं: तेरी उदारता की सरिता कहाँ है, हे सर्वलोकों की कृपा ?

समस्त लोगों को लोभ ने अपना दास बना लिया है: अनासक्ति के साकार रूप कहाँ है, हे सर्वलोकों के स्वामी?

तू देखता है इस प्रवंचित को अकेला, निष्कासित : तेरे आदेश के आकाश के सैन्यसमूह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के सम्राट ?

मैं एक अनजाने देश में परित्यक्त हूँ: तेरी विश्वसनीयता के प्रतीक कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विश्वस्त ?

सबको मृत्यु की वेदना ने ग्रास बना लिया है: तेरे शाश्वत जीवन का उमड़ता सागर कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के जीवन ?

प्रत्येक कृति में शैतान ने अपने प्राण फंूक दिये हैं: तेरी ज्वाला का उल्कापिण्ड कहाँ है, हे सर्वलोकों के प्रकाश?

अधिकांश जनों को वासना ने पथभ्रष्ट कर दिया है: तेरी पवित्रता के उद्गमस्थल कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?

तू इस प्रवंचित को सीरियाई लोगों के मध्य उत्पीड़न से आक्रांत देखता है: तेरे प्रकाश का उदय कहाँ से होगा। हे सर्वलोकों के प्रकाश ?

तू देखता है कि मुझे बोलने से भी रोका गया है: तो कहाँ से फूटेगी तेरा स्वर माधुर्य, हे सर्वलोकों की कोकिला?

अधिकांश जन भ्रान्ति एवं व्यर्थ कल्पनाओं के जाल में उलझे हैं: तेरी आस्था के प्रतिपादक कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विश्वास ?

बहा विपदा के सागर में डूब रहा है: तेरी मुक्ति-नौका कहाँ है, हे सर्वलोकों के मुक्तिदाता ?

सृष्टि के अंधकार में तू अपनी वाणी के उद्गमस्थल को देखता है: तेरी अनुकम्पा के आकाश का सूर्य कहाँ है, हे सर्वलोकों के प्रकाशदाता ?

सत्य और पावनता, निष्ठा और सम्मान के दीप बुझा दिये गये हैं: तेरे प्रतिकार रूपी क्रोध के चिन्ह कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के संचालक ?

उन्हें जो तेरे ही लिये युद्धरत हैं या उन संकटों पर जो विचारमग्न हैं जो तेरे प्रेम-पथ पर हैं, क्या तू नहीं देख सकता, जो उन पर आन पड़ा हैं ? अब मेरी लेखनी ठहर गई है, हे सर्वलोकों के प्रियतम !

नियति झंझावात के प्रचंड वेग से दिव्य सिदरा के शाख-शाख टूटे हैं: तेरे अभय दान की ध्वजायें कहाँ हैं, हे सर्वलोकों के विजेता ?

यह मुखड़ा कलंक की धूल से ढका है: तेरी अनुकम्पा के मधुर समीर कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की करूणा ?

पावनता के परिधान को प्रवंचकों ने कलुषित कर दिया है: तेरी पावनता का परिधान कहाँ है, हे सर्वलोकों के श्रृंगारकर्ता ?

मनुष्य ने अपने ही हाथों से जो कर डाला है, उससे दया का सागर स्तब्ध रह गया है: तेरी उदारता की लहरें कहाँ हैं, हे सर्वलोकों की अभिलाषा ?

तेरे शत्रुओं के आतंक से तेरी दिव्य उपस्थिति तक पहुँचने के द्वार बंद पड़े हैं: तेरे आशीष की कुंजी कहाँ है, हे सर्वलोकों के समाधानकर्ता ?

विद्रोह की विषाक्त समीरों से पात-पात मुरझाए हैं: तेरी उदारता की मेघ-धारा कहाँ है , हे सर्वलोकों के दाता?

विश्व पापों की धूल से अंधकारमय हो गया है: तेरी क्षमा के पवन-झकोरे कहाँ हंै, हे सर्वलोकों के क्षमादाता?

इस निर्जन भू पर यह युवक एकाकी है: तेरी दिव्य करूणा की वर्षा कहाँ है, हे सर्वलोकों के वरदाता ?

हे परम महान लेखनी! हमने शाश्वत साम्राज्य में तेरी अतिशय मधुर पुकार सुन ली है: ध्यान से सुन कि भव्यता की जिह्वा जो कह रही है, हे तू सर्वलोकों के ’प्रवंचित‘!

यदि शीत न होता, तो तेरे शब्दों की ऊष्मा कैसे प्रबल होती, हे सर्वलोकों के व्याख्याता ?

यदि संकट न होते, तेरे धैर्य का सूर्य कैसे चमक दिखाता, हे सर्वलाकों के प्रकाश ?

दुष्ट जनों के कारण तू शोक न कर, तुझे सब कुछ सहने और भोगने को दुष्ट जनों को रचा गया था, हे सर्वलोकों के धैर्य !

कितना मधुर था तेरा संविदा के क्षितिज पर उदित होना और विद्रोह भड़काने वालों के मध्य, ईश्वर के प्रति तेरी उत्कंठा, हे सर्वलोकों के प्रेम !

तेरे ही द्वारा मुक्ति-पताका उच्चतम् शिखरों पर फहराई गई और उदारता का सागर तरंगित हुआ। हे सर्वलोकों के प्रहर्ष !

तेरी एकमेवता का सूर्य एकाकीपन से ही चमका और तेरे निष्कासन से एकता की भूमि अलंकृत हुई। धैर्य रख, हे सर्वलोकों के निर्वासित !

हमने अनादर को गौरव का परिधान बनाया है और तेरे मन्दिर का आभूषण दुःखों को, हे सर्वलोकों के गौरव!

तू घृणा भरे हृदयों को देखता है, तेरी महानता इसकी उपेक्षा करना है, हे सर्वलोकों के पाप को छिपाने वाले! जब तलवारें चमकें आगे बढ़, बढ़ता जा, ,गर तीर भी बरसते हों, हे सर्वलोकों के लिए बलिदान !

तू विलाप करे या मैं रोऊँ ? इतने थोड़े हैं तेरे समर्थक, जो अखिल लोकों के रुदन का कारण है! सत्य ही, मैने सुनी है तेरी पुकार, हे सर्वगौरवमय प्रियतम !

अब बहा का मुखमण्डल दीप्त है, दुःखों के ताप से, तेरे ज्योतिर्मय शब्दों की ज्वाला से और अब वह निष्ठापूर्वक उठ खड़ा हुआ है तेरी सुप्रसन्नता पर दृष्टि केन्द्रित किए हुए, हे अखिल लोकों के विधाता !

हे अली अकबर! धन्यवाद कर अपने ईश्वर का इस पाती के लिए, कि जब मेरी विनम्रता की सुरभि तू ग्रहण न कर सकेगा तब तू जान पाएगा कि सब के आराध्य ईश्वर के पथ पर कैसे कष्टों ने हमें घेरा था। यदि ईश्वर का सेवक पूर्ण निष्ठा से इसका पाठ करेंगे तो जग उठेंगी ऐसी ज्वालाएँ उनकी नसों में जो सर्वलोकों में अग्नि धधका देंगी।

 


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