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हे तू दयालु ईश्वर! हम तेरी पावन देहरी के सेवक हैं, तेरे पावन द्वार का आश्रय लिये हुए हैं। हम इस सुदृढ़ स्तम्भ के अतिरिक्त अन्य किसी की आश्रय की चाह नहीं रखते, तेरी सुरक्षा भरी देखभाल के अतिरिक्त किसी अन्य आश्रय की ओर नहीं मुड़ते। अतः हमारी रक्षा कर, हमें आशीष दे, हमें सहारा दे। हमें ऐसा बना दे कि जो तुझे प्रिय है उसके अतिरिक्त किसी अन्य से प्रेम न करें, केवल तेरी ही स्तुति करें, सदा सत्य के मार्ग पर चलें, हम इतने समृद्ध हो जायें कि तेरे अतिरिक्त अन्य सभी को त्याग सकें, हम तेरी कृपा के सागर से अपना भाग पायें, हम तेरे धर्म को उच्चता प्रदान करने और तेरी सुमधुर सुरभि को दूर-दूर तक फैलाने के प्रयासों में जुट जायें, हम अपने अहम् को भूल जायें और केवल तुझमें ही रम जायें और तेरे अतिरिक्त अन्य सब का त्याग कर तुझमें ही तल्लीन रहें।
तू दाता, क्षमाशील है! हमें अपनी अनुकम्पा और स्नेहिल कृपा प्रदान कर, अपने उपहार दे, हमारा पोषण कर, ताकि हम अपने लक्ष्य को पा सकें। तू शक्तिसम्पन्न, सुयोग्य, ज्ञाता और दिव्य द्रष्टा है। सत्य ही तू उदार है, सत्य ही तू सर्वकृपालु है और सत्य ही तू सदा क्षमाशील है। तू वह है जिसके समक्ष पश्चाताप करने वाले के समस्त पापों को भी तू क्षमा का दान दे देता है।
- `Abdu'l-Bahá