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हे स्वामी, मेरे ईश्वर तू महिमावंत है! जितनी बार भी मैं तेरा नाम लेने का प्रयत्न करता हूँ, मैं अपने प्रबल पापों और तेरी इच्छा के विरूद्ध किये गये अपने कर्मों को याद करता हूँ मैं अपने आपको तेरी स्तुति कर पाने में शक्तिहीन पाता हूँ। लेकिन तेरी अनुकम्पा में मेरा सम्पूर्ण भरोसा, तुझमें मेरी आशा को पुनर्जीवन देता है और मेरा यह भरोसा कि कुछ भी हो जाये तू कृपा ही देगा, मुझे तेरी ओर उन्मुख होने, तेरी स्तुति करने में और याचना भरे हाथ तेरी ओर फैलाने में समर्थ बनाता है। हे मेरे स्वामी! मैं तेरी उस दया की याचना करता हूँ जो समस्त सृजित वस्तुओं से श्रेष्ठतर है और जिसके साक्षी वे सभी लोग हैं जो तेरे नाम के महासिंधु की अतल गहराइयों में निमग्न हैं। हे मेरे स्वामी! मुझे मेरे ऊपर ही न छोड़, क्योंकि मेरा मन दुष्कर्मों में प्रवृत्त हो जाता है। अपनी सुरक्षा के दुर्ग में मुझे शरण दे, मेरी रक्षा कर! मैं वह हूँ, हे मेरे ईश्वर! जो तेरी इच्छा के अनुरूप चलने की कामना रखता है, मैंने उसका ही चयन किया है जो तेरे विधानों और तेरी इच्छा के अनुरूप है। मैंने वही चाहा है जो तेरे आदेश और निर्णय के प्रतीक है। हे ईश्वर! मेरे ऊपर इतनी अनुकम्पा कर; हे तू जो उन हृदयों का प्रिय है, जो तेरी कामना करते हैं ! तेरे धर्म के प्रकटीकरण, तेरी प्रेरणा के दिवास्रोत, तेरी भव्यता के प्रवक्ता, तेरे ज्ञान के कोषागार के नाम से मैं तुझसे याचना करता हूँ कि अपने पावन निवास से मुझे वंचित दूर न कर, अपने मंदिर और मण्डप वितान से मुझे दूर न रख। वर दे, हे मेरे स्वामी! कि तुम्हारे गरिमामय प्रांगण तक पहुँच पाऊँ, उसकी परिक्रमा करूँ और तेरे द्वार पर विनम्र खड़ा रह सकूँ।
तू वह है, जिसकी शक्ति शाश्वत है। तेरे ज्ञान से परे कुछ भी नहीं हैं। तू सत्य ही शक्ति का ईश्वर, महिमा और प्रज्ञा का ईश्वर है। ईश्वर की स्तुति हो, जो समस्त लोकों का स्वामी है।
- Bahá'u'lláh