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तेरे नाम की स्तुति हो, हे मेरे ईश्वर! और समस्त वस्तुओं के ईश्वर! मेरे गौरव, और सभी वस्तुओं के गौरव! मेरी कामना और समस्त वस्तुओं की कामना! मेरी शक्ति और समस्त वस्तुओं की शक्ति! मेरे सम्राट, और समस्त वस्तुओं के सम्राट! मेरे स्वामी और समस्त वस्तुओें के स्वामी! मेरे लक्ष्य और समस्त वस्तुओं के लक्ष्य! मुझे गति देने वाले और समस्त वस्तुओं के गतिदाता!
मैं तुझसे याचना करता हूँ कि अपनी मृदुल कृपा के महासिंधु से मुझे वंचित नहीं रख और न ही अपनी निकटता के तटों से अति दूर ही रख। तेरे अतिरिक्त मुझे कुछ भी लाभ नहीं देता है। तेरी समीपता से बढ़कर और किसी से अन्य कुछ प्राप्य नहीं है। मैं विनती करता हूँ तुझसे तेरी विपुल समृद्धि के नाम से, जिसके द्वारा तू स्वयं को छोडकर सब कुछ दान कर देता है, कि मुझको उनमें गिन जिन्होंने अपना मुखड़ा तेरी ओर कर लिया है और तेरी सेवा में उठ खड़े हुए हैं। हे मेरे स्वामी, अपने सेवकों और अपनी सेविकाओं को क्षमा का दान दे। तू सदा क्षमाशील, और परम कृपालु है !
- Bahá'u'lláh