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यह प्रार्थना अब्दुल-बहा द्वारा प्रकट की गई है और उनकी समाधि पर पढ़ी जाती है। यह व्यक्तिगत प्रार्थना के रूप में भी प्रयुक्त की जाती है।
”...जो भी इस प्रार्थना को गहन भक्ति और विनम्रता से पढ़ेगा वह इस सेवक के हृदय को प्रसन्नता, आनन्द और उल्लास प्रदान करेगा,...यह साक्षात् उससे मिलन के समान होगा।“
वह सर्व-महिमावान है!
हे ईश्वर, मेरे ईश्वर! दीन और अश्रुपूर्ण मैं अपने याचक हाथ तेरी ओर उठाये हूँ और अपना मुखड़ा तेरी देहरी की उस धूल से मंडित करता हूं, जो ज्ञानवानों के ज्ञान और उन सबकी स्तुति से परे है, जो तेरा महिमागान करते हैं। अपने द्वार पर खड़े अपने दीन और विनीत सेवक को दयापूर्वक देख, उस पर अपने करुणामय नेत्रों की दयादृष्टि डाल और अपनी अनन्त कृपा के महासागर में उसे निमग्न कर दे।
स्वामी! तेरा यह तुच्छ और निम्न सेवक, तेरे वशीभूत और तुझसे याचनारत तेरे हाथों में बंदी, उत्साहपूर्वक तुझे प्रार्थनारत, तुझमें आस्थावान, तेरे सम्मुख अश्रूपूर्ण, तेरा आह्वानकर्ता और तुझसे विनती करता हुआ कह रहा है:
हे स्वामी, मेरे ईश्वर! मुझे अपने प्रियजनों की सेवा करने की कृपा प्रदान कर, अपने प्रति मेरे सेवाभाव को दृढ़ कर, अपनी पावनता के प्रांगण में, आराधना और प्रार्थना के प्रकाश से मेरे ललाट को आलोकित कर दे, और अपनी महिमा के साम्राज्य की प्रार्थना की ज्योति प्रदीप्त कर दे। अपने दिव्य प्रवेश द्वार पर स्वार्थविहीन रहने में मेरी सहायता कर और अपनी पावन परिधि में समस्त वस्तुओं से अनासक्त होने में मुझे समर्थ बना। स्वामी! निःस्वार्थता के पात्र से मुझे पान करा, और इसका ही परिधान पहना और इसके सागर में निमग्न कर दे। मुझे अपने प्रियजनों के मार्ग की धूल बना, और मुझे ऐसा आशीष दे कि मैं, अपनी आत्मा को उस धरा के लिये बलिदान कर सकूँ जो तेरी राह में तेरे चुने हुये जनों के पगों से सम्मानित हुई, हे सर्वोच्च महिमा के स्वामी।
इस प्रार्थना के द्वारा तेरा यह सेवक दिन-रात तेरा आह्वान करता है, इसके हृदय की अभिलाषा पूर्ण कर दे, हे स्वामी! इसके हृदय को प्रकाशित कर दे, इसके अंतर्मन को आनंदित कर दे, इसकी ज्योति जला दे, ताकि यह तेरे धर्म और तेरे सेवकों की सेवा कर सके।
तू दाता, दयालु, परम उदार, कृपालु, दयावान, करूणामय है।
- `Abdu'l-Bahá